लक्ष्य:- जरूरी क्यों ?🤔👇
और वो इतने निपुण थे कि आंख पर पट्टी बांधकर ही बिना किसी संकोच के पलक झपकते ही अपने निशानों को बिंध दिया।
गुरु बोलते हैं शाबाश बच्चों। अब तुम्हारा लक्ष्य अभी कुछ देर विश्राम करो इंगित करके आता हूं।
सभी शिष्य जी गुरु जी! गुरुदेव आम के बगीचो के बीच में पहुंचे और बीच वाला पेड़ चुना जिसमें आम बड़े अच्छे थे।
और इशारा पाते ही वह आम भी बिंबित कर दिया गया। लक्ष्य मुश्किल था मगर एक ही वार में काट दिया गया।
तो आत्मविश्वास और बढ़ा और शिष्यों को यकीन हो गया था कि वो इस सृष्टि के महान धनुर्धारी है ।
एकलव्य के समान और सच कहें तो थे भी लगभग। क्योंकि गरु कविंद्र से जो सीखा था।
वह जो धनुर्विद्या के सबसे बड़े आचार्य थे । अंतिम चरण था और गुरु ने सबसे पहले वाला पेड़ के पीछे जो पेड़ था उसके आम पर चिन्ह लगा दिया।
और शिष्य को बताया गया कि तुम्हें उस आम को तोड़ना है। जो इस पहले वाले पेड़ के पीछे वाले पेड़ पर लगा है।
सब चिल्लाए गर्व से जी गुरु जी। मगर यह क्या पहला वाला गया निराशा हो के लौटा
क्या हमारी शिक्षा अभी पूर्ण नहीं हुई है?
उन सब को समझाते हुए कहा इसमें कोई शक नहीं कि तुम सारे योग्य धनुर्धारी हो, तुम सारे पारंगत हो।
वर्ना अंजान शहर में लोग अक्सर रास्ता भटक जाते हैं भले ही पहुंच जाते हैं मगर कभी भी सही/सार्थक समय पर नहीं पहुंच पाते।
और इस बार सभी मुश्किलों के बावजूद वह आम हजारों टूकड़ों में विभागीय था।एक बार में ही तीर पहुंच गई थी।
___________*Meri Kitabe*___________
ज़िन्दगी भर – ज़िन्दगी के लिए !