चरित्र और चित्र
चरित्र और चित्र नैतिक हिंदी कहानियां
सनातन धर्म की सबसे पवित्र और प्रसिद्ध ग्रंथो में से एक महाभारत ग्रंथ की पहला प्रसंग पर आधारित है ये मेरी लेखनी |
महाराज शांतनु और माँ गंगा | याद तो आ ही गया होगा सब कुछ की महाराज शांतनु ने
माता गंगा को देखा और सौंदर्य
से इतने मोहित हो गए की – सारी शर्त मान ली गंगा मैया की |
बिना एक बार भी विचार किय – की सौंदर्य का आकर्षण ही
ऐसा होता है | की माता जो भी करेगी – उस पर महाराज न कभी रोकेंगे और न कभी सवाल करेंगे ,
और अगर ऐसा किया
तो मैया उन्हें छोड़ चली जाएँगी हमेशा – हमेशा के लिए | सौंदर्य ऐसा था की हां -में-हां और हामी की मोहर लगा कर माता
गंगा को बयाह कर राज्य में ले आय | काफी खुश थे दोनों दंपति और राज्य भी | क्युकी स्वयं माता गंगा जो थी – उनका चरित्र
उनकी जल की भॉंति ही स्वच्छ और निर्मल थी | पर एक दाग उन्हों ने खुद बनाया था | अपने ही पुत्रो को अपने जल में बहा देना का |
एक-एक करके महाराज शांतनु और माता गंगा के सात पुत्र हुए | बलवान और प्रतिभावान | पर माता गंगा एक विशेष उदेशय से अपने
जल में प्रवाहित कर आती | राजा जी हां-में-हां भर कर लाय थे | तो कही गंगा माता उनसे विलग न हो जाए –
इसलिए उनके इस कृत्य पर कुछ नहीं कहते | बाकि उनका यानिकि माता गंगा का का व्यवहार गंगा जितना शुद था |
पर जैसे ही आठवां पुत्र अपने देवद्रत यानी की पितामह भीष्म हुए | तो महाराज शांतनु से न रहा गया – की मनुष्य –
देवादि देव उनमे गोता लगा कर खुद को धन्य मानते और पवित्र होते और होते आय है |
उनका इस कृत्य के लिए बहिष्कार कर दिया |
सब कुछ शुद्ध पर सिर्फ एक दाग | माता का सौंदर्य वही था –
वही है पर महाराज शांतनु ने दिल पर पत्थर रख कर – मैया को भीष्म प्रवाहित करने से रोका |
इससे यही सीखने को मिलती है की चित्र तुम्हे सात दिन तक ही रोके रख सकती है –
पर चरित्र बिना उस-से ज़्यादा नहीं – भले ही वो स्वयं फिर उर्वशी ही क्यों न हो ?
माँ गंगा तो कल भी पवित्र थी – आज भी पवित्र है | उन पर कोई लांछन नहीं |
पर शांतनु को उन्हें त्यागना ही पड़ा – जैसा वो स्वयं चाहती थी |
इसलिए वो ऐसा कृत्य करती थी | क्युकी उनको भी पता था –
चित्र से आकर्षण होता है – चरित्र से वास |
जय हो गंगा मैया –
जय हो शांतनु महाराज –
जय महाभारत –
जय-जय श्री राम |
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