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अधूरी

forhindi 19 जुलाई 2022 0 comment

 

अधूरी

इस दुनिया ने अधूरी चीजों को समेटे रखा है,  बड़ी प्यार और मैं एहसासों से। चाहे वह राधा –
कृष्ण का प्यार हो या हो हीर –
रांझा की,  कबीर की मनोकामना हो – या चंद्रशेखर आजाद की अजदी। या शाहजहां का ताजमहल हो
या जौन इलिया कि मोहब्बत हो या अमृता की असंख्यता का सून्य में सिमट जाना हो – चाहे वो सूरज की पूरी जिंदगी का जीना हो –
आसमान से तारों का बिछड़ना हो –  या हो फलों का पेड़ों से पक के गिर जाने से पहले ही बिछड़ना ।
चाहे वह हिटलर का स्टग्रलैंड का हार जाना हो – बापू का सत्याग्रह हो या  अंग्रेजों का ख्वाब या चाहे वो रावण के  ख्वाबों का ख्वाब रह जाना हो।
या किताबों  में पड़े – पड़े  गुलाबो का सूख जाना हो।
अधूरी  ,#neverquitbestinspirationalstoryinhindi,#beststoriesinhindionneverquitinspiration,

 

 लंगोटिया दोस्त हो या मां-बाप हो – रिश्ते-नाते हो या हो बंधन। इस दुनिया ने हर अधूरी चीज को बड़े प्यार से जोड़े रखा है
चाहे वो ऐन फ्रेंक की आजादी हो – माही के पिता की अर्जियां हो  – या हो वो केकैइ के ख्वाब पर खड़ाऊ का ताज होना।
सिकंदर का सपना हो – या बुध्द के पिता का सपना – या कंस का वचन ,  दुर्योधन की लालसा हो – अर्जुन का ना लड़ने का मन –
कर्ण कि अभिलाषा हो या हीनयान – महायान का बटना हो या इसाइयों को दो भागों में बांटना।
अधूरी  ,#bestmoralstoriesinhindiforkids,#hindistories

 

इस दुनिया ने हर अधूरी बातों को ऐसे संभाले रखा है , जैसे मां – बाप अपने बच्चों को,
बादल पानी के बूंदों को, सूरज ने रश्मियों को – देह ने प्राणों को – किसानों ने फसलों को –

तितलियों ने रंगों को –  जो कि यह दर्शाती है कि अधूरी चीजें कितनी अहम है। पृथ्वी का जीवन अधूरा है –

इसलिए हम सब हैं, लेकिन जिस दिन पूर्ण हो जाएगी। यह पूर्णतया समाप्त हो जाएगी। इसलिए कह रहा हूं –
कुछ बातें अधूरे छूट जाए तो मरना नहीं क्योंकि अधूरी चीजें प्रतीक है कि अभी – भी उम्मीद बाकी है।
उम्मीद किस चीज की, किसी ऐसी चीज वस्तु की जिसे अधूरा छोड़ देना ही बेहतर था और
जिससे उन्हें वैसे ही छोड़ किसी और को पूर्ण करने की। क्योंकि हर चीज का पूरी होना जरूरी नहीं होता।
अधूरा प्रतीक है – पूर्णता की जीवन की अभिलाषा की – अधूरा मरने की डर नहीं है।
क्योंकि आधी जिंदगी को आप जी सकते हो। जिंदगी पूरी हो जाती है – तो जिया नहीं जाता।
1. क्या गांधी को राष्ट्रपिता बोस ने बनाया था ? या किसी और ने ?
2. ये कैसी शर्म ? 😱👀😅😂🤣
3. भगवान की बराबरी ! क्या यह मुमकिन है ? 👀🤔
———–{Meri Books }————–
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ना-जाने मैं कैसे लिखने लगा

forhindi 4 जुलाई 2022 0 comment

 ना-जाने मैं कैसे लिखने लगा

 

मेरे सारे दूधिया दांत तो टूट गए हैं –  पर बात आज उसी दौर की है।

जब मेरी दूधिया दांत शायद एक या दो साल पुराने हो चुके थे। 

 ना-जाने मैं कैसे लिखने लगा,
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मेरी -3 , महीने बाद की फोटो

मेरी स्मरण  शक्ती बचपन की उतनी तेज तो नहीं,  पर लोड़ीया भूल जाऊ तो शायद आज भी सही से सो-ना पाऊं,

यह ख्याल इस सवाल पर आया ना जाने मैं कैसे लिखने लगा।

मुझे मेरे बचपन के उस समय ले गया जब चांद रानी नहीं – मामा हुआ करता था।

यह रिश्ता भी चांद और मेरा लोड़ियो ने जोड़ा’मां’की। मां बताती है, कि मैं कितना शैतानी करता था।

दिन को सोता – और रात को रोता था। पर वो अगर लोड़िया  नहीं सुनाती तो शायद मेरी पलकें दिन भर आराम करने के बाद –

दुबारा आराम ना करने लग जाती। “चंदा मामा दूर के पूवा पकावे खिड़ के, अपने खाए थाली में, मुन्ने को दे प्याली में,

मैं ठीक जैसे ही वह प्याली टूटती, मुन्ना रोता और मैं अक्सर उठ जाता।

तो कभी-कभी वह लोरी के रूप में मुझे ,’ क, ख, ग, सुनाती तो कभी-कभी एक-दो-तीन, वन-टू- थी

की प्रतिध्वनिया मुझसे सुनती। जाहिर है कि ए-बी-सी-डी भी उन्होंने सिखाया। आप सोच रहे होंगे कि यह मैं कहां से दूधिया दांत,

ए-बी-सी, क- ख- ग,  1-2-3 की बात करने लगा। मैं भी यही सोचता पर उससे पहले याद आया कि नींव के बिना दिवार नहीं खड़ी होती –

तो महलों की बात तो छोड़ ही दो । मैं कैसे लिखने में आया यह बात उतनी ही विश्मय से भर देती है मुझे –

जितनी कि  एक नटखट नादान सी, बिटिया का बड़े होकर मां,

बन के अपनी मां – दादी -नानी से ही सुनी – सुनाई शब्दों की रासलीला को नादान-नासमझ –

नटखट को शांत करने के लिए, लोड़ियो सुनाने का अनजान सफर की शुरुआत करना।

 ना-जाने मैं कैसे लिखने लगा,Lullaby, #bestbiographyshortstoryinhindi,#hindistories

 

 

 पर यहां पर वह नटखट – नादान – बालक मैं हीं था।

और उसके मन को शांत करने के लिए शब्दों की रासलीला रचने वाला भी मैं ही था।

यह तो नींव की बात हुई।  सावाल अब दीवारों का  तो जवाब मिलता है,

मास्टर जी की छड़ी, मैडम जी का कलम, काला बोर्ड, मेरे ही उम्र के और लड़के और लड़कियां,

सुबह की प्रार्थना, एक बैठने की सीट, एक भारी बैग, उसकी कई मधुर और खट्टे पल।

ये तो मेरी नींव और दिवाले है पर इन सब में मैं कब से रहने लग गया – कैसे मेरा मन रम गया,

कुछ पता नहीं। पर एक किस्सा याद आता है मेरी एक सहपाठिका का जो कहती थी कि,

कलम और किताब मेरी गर्लफ्रेंड है। वह मजाक में कहती थी क्योंकि मेरी कोई दिलरुबा नहीं थी

और ना मुझे जरूरत थी ।‌आ पर जो चाहे समझ ले । उसका वह मजाक एक व्यंग्य था, कि सच में उसका व्यंग्य मेरा सच साबित होगा ।

पर आंगनबाड़ी के रोना और बारहवीं का आखिरी दिन का आंतरिक रोना ।

इन दो आंसुओं के पलों की दौर ने मुझे रोग लगा दी , – शब्द – अर्थ’ की रासलीला की दुनिया का।

मुझे नहीं पता कि मैं कैसे लिखने में आया ।

 

मुझे सही से नहीं पता कि मैं कैसे लिखने लगा ? पर वह दौड़ दसवीं का था जब मैंने कुछ तुके जोड़ना शुरू किया था।

पर वो जोड़ना इसलिए शुरू हुआ होगा क्योंकि नींव में मेरी लोरिया थी

और दीवारों में मोहब्बत- व्यंग्य और राजनीति जो काफी था लिखवाने के लिए।

और वैसे भी पहले से मै किताबों पर मरता था।

 

1. पाप कर्म की धुलाई 👈🤔

 

2. इंसान कब:- क्या हम सब इंसान हैं?‌

 

3. चांद चोरी कैसे हो गया ?

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कल्पना और यथार्थ

forhindi 18 जून 2022 0 comment

 कल्पना और यथार्थ 

 

 

कल्पना कहती है – तू और बुन मुझको –

यथार्थ कहती है – तू उलझकर रह जाएगा मुझमें –

कल्पना प्रेरणा देती है –  यथार्थ दर्द ,

कल्पना यथार्थ की नींव है – यथार्थ कल्पना की जन्मदाता,

दो पहलू है यह एक ही सिक्के के,

पहलू :-  कल्पना और यथार्थ

सिक्का 👉 जिंदगी ,

 

 कल्पना और यथार्थ ,#bestspeechondreamandrealityeverinhindi,# #dreamandreality,#besreducationalstoriesinhindi,#bestspeechonrealiryanddreaminhindi

 

जिस तरह सिक्का उछलता है और आसमान की तरफ बढ़ता है वह कल्पना है।  उस सिक्के का जमीन पर वापस आना यथार्थ । इसका मतलब यह नहीं कि यह कल्पना का अंत है। इसका अर्थ होता है यह कल्पना की जड़ है। और जड़ पृथ्वी पर ही लगता है – आसमां में नहीं।

 

और यथार्थ को कल्पना की दुश्मन मानना कल्पना की मृत्यु है।

और कल्पना  को यथार्थ के सामने कुछ ना मानना सृजन का दुश्मन।

और जैसे “हर चीज की अति बुद्धि भ्रष्ट कर देती है!”  ठीक उसी प्रकार कल्पना का ज्यादा या यथार्थ का ज्यादा होना एक पहलू को ही नहीं – बल्कि सिक्के को ही मार देती है। इसलिए यथार्थ और कल्पना संतुलित होने चाहिए और याद रहे यह एक दूसरे की दुश्मन नहीं बल्कि पूरक है। जैसे चंद्रमा के धब्बे और चांदनी एक दूसरे के।

और हमेशा याद रहे यथार्थ तब तक नहीं पनप सकता जब तक कल्पना ना की जाए और यथार्थ का निर्माण कल्पना को लक्षित कर के औजारों (आज + मेहनत )का प्रयोग करके सिद्ध होता है। इसको पाना आसान नहीं होता।

क्योंकि सृजन तत्परता का नहीं – समृद्धि का विषय है।

कल्पना और यथार्थ एक दूसरे के पूरक थी, है और रहेगी।

 

 

 कल्पना और यथार्थ ,#beststoryonimaginationandtruth

 

कल्पना-यथार्थ के लिए उतनी ही जरूरी है:-
जितनी की आत्मा भौतिक शरीर के लिए!

 

 

1. राधाकृष्ण जैसा इश्क – होना किसकी निशानी है:- राधे- श्याम

 

2. मन की कलुषिता को मिटाया कैसे ? 👈🤔🤔

 

3. आखिर क्या संदेश देना चाहते है भगवान कृष्ण – अपने खून से लिखें खतों से 👈🥀

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गांव वालों को जलना है 🔥 – शादी ऐसा करवाना है

forhindi 6 मई 2022 0 comment

 गांव वालों को जलना है 🔥 – शादी ऐसा करवाना है 

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Pic:- pinterest

 

 

 

शादी ऐसी की बेटी की, कि सारे गाँव वाले शादी के छ: महीने बाद भी लोग बात करते नहीं थकते थे।

कि  अरे ! बाप-रे, कितना कर्जा लिया है कि अभी शादी थी तक चुकाया नहीं गया है ।

पर शादी थी –   बड़े धूम-धाम की हर गोटियाँ- पटियादार- बहन- जीजी-जी-जा-बराती को बनारसी

साड़ी सारी औरतों को और दुल्हे को पूरा भर-भर  के दिया था। जितना आज से पहले उस गाँव में नहीं हुआ था।

शादी में सैकड़ों रिश्तेदार आथ थे और सारे के सारे बड़े खुश थे- ऐसी शादी देखकर।

इतना दिया था – खर्च किया था की दहेज देखकर गोटियाँ पटियादार की आँखे 👁️ खुली की –

खुली कई महीनों तक रह गई थी। पर ये आँख ज्यादा दिन नहीं खुली रही – क्योंकि उसके बाद जुबान खुल गई थी।

 

कि अभी बेटी की शादी की कर्जा नही उतडा है। शादी के एक साल बाद इकलौते बेटे की शादी की बात आई

तो भले ही अभी-तक बेटी की शादी कर्जा नहीं उतड़ा था पर बेटे की शादी थी- वो भी इकलौते तो खर्च करने से कौन बचें।

  “ऐसी शादी करनी है- कि सब लोग सारा गाँव बस देखता का देखता रह जाया ।

तो  उन्होंने बेटे की शादी के लिए हाथी-घोड़े का इंतजाम और खाने की की सारी

वैराइटीज और ऊपर से 20-30 गाड़ियां बरात जाने के लिए रखा था।

जिसके कारण आठ लाख का कर्जा लेना पड़ा। पर इकलौते बेटे की शादी थी-

तो इतना तो चलता है – वर्ना गांव में क्या साख रह जायेगी।

 

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तो कई सारी वैराइटी काफी पहले से ही चालू हो रखा था। सभी जो भी आय थे – बहुत खुश थे।

सबकी आंखों में जुबानों पर शादी की ही चर्चे रहती थी। शादी में आठ लाख का कर्जा उठाया था

गांव वाले तो देख कर कुछ दिनों के लिए आंखें फाड़े रहे पर उसके बाद

एक – दो महीने से भी लंबा एक – दो साल तक गांव के लोग तो जले नहीं पर बातें करते रहे कि बाप रे !

कितना कर्जा लिया है-रे! गांव कुछ दिनों तक तो शादी के मजा उठाएं और

खूब खाएं और उन लोगों के माने अनुसार उनके हाथी-घोड़े को देखकर जले।

 

  पर जैसे कहते हैं ना कि हम लोग घर में हाथी है – उसको देखना ही नहीं चाहते।

उसका घर अच्छा है – कई कमरे हैं और सभी सुविधाएं हैं। पर सिर्फ एक चीज नहीं रही शांति दायक घर का माहौल।

जलाने वाले भूल गए थे कि गांवों – घरों से बनता है गांव तभी जलता है जब घरे जलती है।

गांव तो कुछ दिनों तक जला।  पर पुराने और अभी के कर्जें से वो घर न जाने कितने सालों तक

जलेगा और अभी तो दो बहनों की शादी रही – रही है।

पर उनका अभी -भी यही मानना है:-‌

  कि गांव वालों को जलाना है शादी ऐसा करवाना है।

 

क्योंकि जो मजा दिखावा करके बड़ा बनने में है – उसका जायका अलग ही है।

भले ही बाद में कुछ भी हो और कितना भी दर्द हो।

 

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कहानियों के लिए 👇👇🙂👇

3.जिंदगी – पाप और कर्म (Hindi Edition) Kindle Edition

 

2.खुद डूबो – खुद सिखो (Hindi Edition) Kindle Edition

 

1.भगवान और इंसान:- 5 कहानियां : शिक्षाप्रद जो हर किसी को एक बार अवश्य पढ़नी चाहिए (Hindi Edition) Kindle Edition

 


गांव वालों को जलना है 🔥

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परिस्थितियां और हम

forhindi 1 मई 2022 1 comment

परिस्थितियां और हम

‌          परिस्थितियों का पक्का अनुमान रहे – 

             हम इंसान है ये ध्यान रहे !

 

एक पंडित था, जो कि काफी ज्यादा लोकप्रिय था। उसके कुछ शिष्य थे – जो उससे शिक्षा प्राप्त कर रहे थे।

तो क्या होता कि, गुरुकुल का एक नियम था – जिसके अनुसार एक निश्चित समय पर शिक्षा प्राप्ति के बाद

सभी शिष्यों को दक्षिणा लेने को जाना होता था। तो इस बार कुछ शिष्य अपने आश्रम के समीप स्थित राज्य के राजा के वहाँ गय,

इस उद्देश्य से कि एक बार राजा जी से माँग ले-तो रोज – रोज माँगने की नौबत ही नहीं आयेगी।

तो वो शिष्य निकल पड़े राजमहल की तरफा। राजमहल दो घंटे की दूरी पर था ।

आज से और आजम से राजमहल तक पहुंच कई रास्ते थे।और आश्रम से राजमहल पहुंचने तक के कई रास्ते थे।

उनमें से अधिकतर दो घंटे के आस-पास ही पहुंचाते। मगर एक रास्ता था – जंगल से होकर ।

जिससे राजमहल की दो घंटे की दूरी – डेठ घंटे में ही पूरी की जा सकती थी।

पर वो रास्ता अच्छा नहीं था इन्होंने – सुन रखा था। इसलिए उस रास्ते से कोई आता -जाता  नहीं था।

और जो कभी आते-जाते थे। बड़ी विपत्ति का सामना करना पड़ता था – उनको ।

जो उस जंगलों से भी आय थे । वो बताते थे कि वहाँ पर एक गौंग रहता है।

पर यह काकी साल पहले की बात थी – अब उस जंगल से आना-जान सुगम हो गया था।

कुछ लकड़हारे उसी जंगल में रहने लगो थे।

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रास्ता

 क्योंकि जो गैंग थी – वो राजा के डर  से कहीं और चली गईं थी- ऐसा सुनने में आया था।

तभी-से वहां लकड़हारे रहने लगे थे। तो जो शिष्य थे – वो थोड़े निडर थे।

निकल गय उसी रास्ते – से राजा जी के के पास जल्द से जल्द पहुँचने के लिए।

जाते समय उन्हें कोई तकलीफ नहीं हुई। लकड़हारों ने उन्हें पानी-वानी भी पिलाया  और

बातों- बातों में उन्हें पता चला कि वे आश्रम से आय शिष्य है – जो राजा जी के पास जा रहे हैं –

भिक्षा मांगने। लकड़हारों ने उनकी और मदद की  राजमहल जल्दी-से-जल्दी पहुंचने में ।

ये राजमहल पहुंचे। राजा से भीछा ली और यह सोचते-बतियाते खुशी से आ रहे थे।

 

 

कि हम तो जय हनुमान ने गए थे राजा साहब कितने अच्छे हैं इतने सारे अन्नों के साथ सोने-जवाहरात भी दे दिया है।

अब हमें मांगने की कोई जरूरत नहीं पड़ेगी और गुरुदेव भी हमारी बहादुरी से खुश होकर।

हमें इनाम देंगे। पर वो जब गुरुकुल पहुंचे तो – काफी डरे हुए और खाली हाथ लौटे थे।

जब गुरु जी ने पूछा, ” क्यों भाई आज तुम लोगों को किसी ने डराया है क्या ?

और भिक्षा भी नहीं दिया क्या ? और तुम लोगों  की भिक्षा पात्र पोटली कहां है,

जो तुम लोगों के शरीर से लटकती रहती थी?” तो उन शिष्यों ने डरते-डरते सारी घटना सुना दी कि गुरुदेव हम राजा के पास गए थे।

भिक्षा प्राप्त करने। जल्दी जाने के चक्कर में हमने जंगल वाला रास्ता पकड़ लिया।

जाते वक्त तो कुछ नहीं हुआ बल्कि उन लकड़हारों ने मदद भी की थी।

आते वक्त उन्होंने हमें पानी पिलाकर बेहोश करके हमारा सारा धन समेत –

भीक्षा भी उन्होंने ले -लिया।

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और हमें अचेत अवस्था में वही जंगल में ही छोड़ दिया। जब चेतना आई तो – पाया कि अंधेरा होने लगा है

और हम लोग भटक गए थे, जंगल में कहीं। पर जैसे-तैसे हम लोग वहां उस जंगल से बच के आए।

गुरुदेव ने समझाया कि, वह जो लकड़हारे – हैं असल में वही वह गैंग वाले हैं ।

और जिन्हें वो उस जंगल से आने-जाने देते हैं वो उनके ही संगी-साथी होते हैं।

और या वो लोग जिनके पास ज्यादा कुछ नहीं होता है।

पर तुम लोगों ने मुझे बिना बताए राजा के पास गए और वह भी सोना-चांदी मांगने ।

इसकी मैं – तुम लोगों की अवश्य सजा देता पर तुम लोग पहले ही  सजा पा चुके हो – तो मैं क्या दूं!

 

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प्यार के सांय

forhindi 22 अप्रैल 2022 0 comment

प्यार के सांय

❤️प्यार या सिर्फ 😊एहसास पता नहीं, पर‌ तुम बिन अब ये दिन अच्छे नहीं लगते🥀

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Love 😔

 

कुछ टूट-टूटकर मुझसे यूँ बिखड़ गया। मुझे दर्द तो हुआ मगर, आँसू बहे नहीं।

शायद इसलिए, क्योंकि मैं उसे उतना नहीं चाहती  थी। मगर शायद वो चाहता था मुझे।

हमें मिले करीबन छ: महिने ही हुए थे ।मगर हम ऐसे जीने लगते थे।

जैसे बचपन से एक-दूसरे को जानते हो। वैसे मुझे कभी लगा नहीं कि मैं उससे प्यार करती हूँ।

मगर वो पागल था – पागल । चाहे रात के दो बजे हो,बरसात से सड़क जाम हो जहाँ बुलाती दौड़ा चला आता।

मैंने उसे औरों की तरह ही समझा । मगर ना-जाने आज भी मुझे क्यूँ याद आ रहा है।

उसको मुझसे दूर हुए दो साल हो गया है। और उसकी मौत भी शायद मेरी वजह से हुई थी।

बात यह थी कि वो प्यार करता था‌। और में उसे अपनी जीस्म की प्यासी समझती थी।

बाकि लड़को की तरह। मुझे याद हैं कि उसने मुझे सबके  के सामने प्रपोज किया था।

पर मैंने उसे सिर्फ एक दोस्त समझा था। खैर उसके बाद हमारी नराजगी बढ़ गई।

दूर हुए मगर यादे बरकरार थी। चाहते  बरकरा थी। और शायद वो और ज्यादा बेकरार था।

उसने मुझे एक दिन कॉल किया और बोला कि मैं तुम से मिलना चाहता हूं।

और मैं भी चाहती थी। मिले मगर मुझे वो थोड़ा बदला-बदल लगा।

 

मैंने पूछा “बोलो क्यों बुलाया मुझे?”

 

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❤️💐💐

 

जवाब मिला: दिल की तसल्ली के लिए।

मैं भड़क गई । मगर उसने जरा भी बुरा नहीं माना।

उसने उस वक़्त बस मुस्करा दिया था। मैं समझ नही पाई ।

मुझे लगा वो पागल हो गया है शायद ।मगर नहीं वो एकदम स्वस्य था । फिर मैंने पूछा।

“तुमने शादी कर ली?”

  बोला – “हाँ  करली। “

 

मगर वो झूठ बोल रहा था।

उसने पूछा मुझे, ” तुम क्या कर रही हो आज- कल?”

मै बोली बस अपने काम में लगी हुई हूँ।

हमारी बात ज्यादा देर नहीं चली। हम जादातर खामोश ही रहे।

मगर फिर मुलाकात नहीं हुई। क्योंकि सुनने में आया कि एक एक्सीडेंट में उसकी जान चली गई।

मगर मैं खुद को दोषी मान रही थी और आज भी मानती हूं। पता नहीं क्यूं?

जबकि उसके बाद मैंने उसे देखा तक नहीं था। शायद में भी उसको चाहने लगी थी।

मगर गलत-फेहमी थी मेरी कि उसे दुनियाँ के चक्कर में औरों की तरह ही समझ।

जिस्म का प्यासा । और हो भी क्यों ना। मैंने इससे पहले,किसी और से प्यार किया था।

मगर उसने धोखो दिया था और मैंने मान लिया था कि सब लड़के ऐसे ही है।

मगर उस आज-तक मुझे कभी परेशान नहीं किया।

 

मगर मैं तब भी परेशान थी। और आज भी परेशान हूँ। मैं ना जाने क्यूँ उसे याद कर रही हूँ। शायद वो प्यार था ।

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😌❣️😌

मगर मेरी गलतफेरमी वो अब नहीं है। मगर मुझमें है। मेरी कहानी में। खैर !

अब मैं बहुत आगो बढ़ चुकी हूँ, उस अध्याय से, मगर कुछ है जो आज भी टूट रहा है मुझमें।

 

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  प्यार के सांय  

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बदनाम

forhindi 19 अप्रैल 2022 0 comment

बदनाम

 

हमारे घर पर पंद्रह-बीस किलो गेहूँ आय थे। तो माँ ने उन्हें धो-के छत्त पर पसार दिया-सुखने के लिए और

मुझे आदेश मिला कि यही बैठ के इन गेहूंओ की रखवाली कर।

माँ का आदेश था तो टाल कैसे सकते थे।

ना – चाहते हुए भी बैठ गए – गेहूंओ की रखवाली में । पर  पूरा वक्त, कौन बैठता है –

इतना धीरज तो था नही मुझमे।

तो कुछ देर नीचे आकर पानी-वानी पी लिया और थोड़ी देर बैठ के सुस्ताने लगा

कि अचानक माँ चिल्लाई कि “गेहूँ कौन देखेगा।

सारा गेहूँ तो कबूतर खा-गय होंगो । तुझे एक काम दिया था – वो भी सही-से नहीं होता निकम्में कहीं का !

जल्दी भाग के जा ऊपर!” आपको जैसे   पता ही-है – माँ का आदेश टाल नहीं सकता।

ना चाहते हुए भी भाग के गया तो देखा- पार्टी चल रही थी- कबूतरों की-एक – दो नहीं, दस-पंद्रह थे।

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पार्टी

 

और ऐसा लगा कि उनमें डर नाम की कोई चीज नही है। वो मुझे देख के भी नहीं भागे।

तो मुझे गेहूंओ के और पास जाना पड़ा। और मुझे उनके पास जाते

देख वो ऐसे भागे जैसे गधे के सर से सिंग।

वो मेरे  वहाँ पहुँचने पर भाग तो गाय पर ज्यादा दूर नहीं ।

मैंने कहा ना ” उनके दिल में डर नही था।

कोई छत के छज्जों पर बैठ गय – कोई टावर पर- तो कोई जहाँ जगह मिला वहाँ बैठ गया ।

और उन्हें देखकर मैं ! छत पर ही छायाँ ढूँढकर के बैठ गया – गेहूँओं से कुछ दूरी पर ।

और वो कुछ देर चुपचाप बैठे रहे और जब देखा मैं वहाँ पास चुपचाप बैठा हूँ ।

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बैठ-गय

 

तो गेहूं के पास से आकर वापस बैठ गए। “शी-शी -हुड़-हुड़” मैंने किया

पर इतने से वह सिर्फ पलक छपकाने वाले थे डर के भागने वाले नहीं।

तो फिर मुझे दो-चार पत्थर के छोटे-छोटे टुकड़े उनकी तरफ फेंकने पड़े।

जिससे हड़बड़ा कर वो काफी दूर भाग गए। पर वो तुलसीदास साहब कह गए हैं-

ना कि पेट की आग बड़वाॎगि्न से भी बड़ी होती है। यानी कि समुद्र

की आग से भी बड़ी पेट की आग होती है।

और जब इतने बड़े रचयिता ने लिखा है तो कुछ सोच कर ही लिखा होगा।

 

सोच गलत कह दिया अनुभूति और अनुभव से लिखा होगा। और यह बात हर किसी पर लागू होती है

चाहे उसके पास उदर हो या ना हो जैसे हम इंसान और वो समुद्र देख लो।

है बहुत विशाल पर इंसान को और-और-और चाहिए और समुद्र को जमीन।

और ये तो फिर कबूतर थे। वह भी जो इंसानी बस्ती में रहते हैं – आ रहे हैं।

जिनको इतनी मुश्किल से  एक-एक अन्न का दाना मिलता है

और  आज उनको दानों का भंडार मिल गया था- तो कैसे हटते।

वो डर से दूर थे पर भागे नहीं थे। और मैं भी उनके डर से वहीं बैठा था।

इस प्रकार वो मेरे दुश्मन थे और मैं उनके। 

 

पर कुछ रियासतों तक उनके जान को जोखिम में रखकर मेरे वहां  बैठने के बावजूद वहां गेंहू के पास आकर,

दाना चुगने की कोशिश करने से प्रभावित होकर जो दाने उन्होंने मेरे अनुपस्थिति में

बिछाई हुई पट्टी के नीचे बिखेर दिए थे,

उन्हें चुगने का आदेश या कहें कि स्वतंत्रता दे-दी थी- मैंने ।

इस प्रकार एक कबूतर के साहस करने से बाकी भी आ-गए।

जब-तक वो नीचे की चुग रहे थे – तब तक मैं शांत था।

लेकिन जैसे ही पट्टी पर हमला करते – मैं हिंसात्मक हो जाता।

जिससे वो भाग खड़े होते- इतने पर भी मैं उनका और वो छोटे उदर वाले मेरे दुश्मन थे।

मैं उनकी नज़रों में बुरा था और वो मेरे।

 

पर मैं ना बुरा था – ना वो। पेट दोनों की, भूख दोनों कि। हम कमाते हैं-

वह काफी मुश्किल से खाते हैं।

संघर्ष बराबर है। पर वह बेजुबान है, यह समझ कुछ दाने और

मैंने फेंक दिया अपने गेहूंओ से दूर उनके लिए,

पर वह बड़े वाले पर ही नजरे गर आए थे। जो कि स्वाभाविक है।

मैं अपनी पेट के लिए उन्हें वह धो-के पसारा था

और वह वहां उन्हें देखकर पसरे आ रहे थे। गलत हम दोनों गलत नहीं थे – सिवाय एक-दूसरे की नजरों के।

ऐसा ही कभी-कभार या सामान्यतः यह हमारे साथ होता है। मैं यहां इंसानो की इंसानों के द्वारा हुए गलत-

सही की बात कर रहा हूं।

वह भी वह वाले जिसमें आदमी दूसरे आदमी की नजरों में गलत होता है। हकीकत तो कुछ और होती है।

 

 

पर हमें लगता है कि उसने हमारे साथ बहुत गलत किया और उसे लगता  है

कि उसने सिर्फ वही किया जो करना चाहिए था।

और यह हर किसी के साथ होता है। जिंदगी में। तो बस यह कहना चाहूंगा कि

आप अपना पेट देखें वह जरूरी है

बस औरों की पेट पर लात ना मारे। अपनी हक रक्षा करें चाहे जैसे भी

औरों कि हकों को ना मारे।

फिर उसके बाद भले ही गुंडे – बदमाश समझे जाओ औरों की कहानियों में

पर आप सच में खुश रहोगे अंदर से।

जो कि इस बह्राड  में सबसे बड़ी चीज है। बस आप अपने आप को सही सिद्ध करने की कभी-

कोशिश करने मत लग जाना

बस कुछ विशेष परिस्थितियों को छोड़कर।

 

क्योंकि कभी-कभी औरों के नजरों में हमें बुरा बनना पड़ता है:- जिससे कि वो नायक/हीरों बन पाए! 

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अपने होते नहीं है – बल्कि बनाय जाते हैं

forhindi 16 अप्रैल 2022 0 comment

अपने बनाय जाते हैं 

 

 

चार-पाँच दिन पहले –

निकला था यूँ ही – कई दिनों बाद पार्क घूमने |

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किसी के साथ नहीं अकेले। शाम का वक्त-सूरज ढलने को था। मौसम मे अजीब-सी  पर मनमोहक रवानी थी।

पार्क घर से ज्यादा दूर नहीं था। बीस मिनट का पैदल रास्ता था- वो मस्ती के आलम में कट गया ।

कब पार्क में पहुँचा इसका अंदाज उस बुढ़े हो चले चेहरे को देखकर पता चला जो झुर्रियों के संग शायद मुझे देख के मुस्कुरा रहे थे।

शायद, इसलिए क्योंकि मुझे नहीं पता था कि वो मुझे देखकर मुस्कुरा रहे थे या – पहले से ही ।

पर उनकी मुस्कान बड़ी मनमोहक थी – वातावरण की तरह। मनमोहक थी – तो मन तो मोहना ही था –

मैं इतना बच-बच के रहने वाला – ना जाने कैसे बोल पड़ा पड़ा – “नमस्ते अंकल”।

वो मुझे और गौर से देखकर उस मनमोहक-सी मुस्कान के साथ “नमस्ते बेटा।”

बस बात यहां खत्म हुई। वो वॉक कर रहे थे और मैं घूमने पार्क गया था।

बस रास्ते में आमने-सामने मिल गय थे। रास्ता था और हम यात्री, एक-दूसरे को खुशी बांटकर आगो  निकल गय।

फिर अगले दिन ना-जाने मैं किस रस में डूबे पार्क गया।और फिर वही अंकल-

 

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और फिर वही राम-राम यानिकि नमस्ते। पर इस बार वो अंकल अकेले एक बैंच पर बैठे थे ।

तो उन्होंने ईशारे से मुझे अपनी ओर बुलाया ।यूं तो मां ने बचपन में क शई बार बता चुकी थी,

कि किसी भी अंजान से नहीं बोलना पर मैं थोड़ा बड़ा हो गया था- और  उससे भी बड़ी बात –

उनकी वो मनमोहक मुस्कान ने मुझे उनकी ओर अपने-आप धक्का दे-दिया। मैं गया।

“हाँ !

नमस्ते अंकल ।”

क्या हुआ”

“नमस्ते बेटा”- फिर से !

उन्होंने पूछा – “तुम्हारा नाम क्या है?”

मैं:-  “अंकल, वरून ।”

वो:- “क्या करते हो?”

मैं:- “अंकल अभी परीक्षा के दिन चल रहे है।”

वो: -“अच्छा । कौन- सी कक्षा की ?

मैं:- “बारहवी अंकल”।

वो:- “कितने पूरे हो चुके हैं ?

मैं:-“अंकल तीन”।

वो:-“कितने बाकि है?

मैं:- बस दो और रह रहे हैं।

वो:- अगल पेपर किस विषय का है ।

मैं:- ‘हिस्ट्री का’।

वो:- “फिर तो इस वक्त तुम्हें- अपनी पढ़ाई पर ध्यान देनी चाहिए। अच्छा खैर, तुम्हें हिस्ट्री बोरिंग नहीं लगती?”

मैं:- नहीं अंकल, बल्कि बड़ा अच्छा लगता है। और रही तैयारी कि बात यानिकि पढ़ाई की बात-तो दिन-भर वहीं करते हैं।

 

 और रही पढ़ाई की बात तो दिन-भर वहीं करते हैं। बस थोड़ा मन करता है घूम आने को कुछ पल  खुली हवा में, इसलिए आ-जाता हूं।

 

वो:- “पेपर के बाद क्या सोचा है?”

 

मैं:-‘सोच रहा हूँ । आई. टी. आई कर लूं।  मेरे कक्षा के अधिक बच्चे वही ले रहे है । ”

वो:- हूँ। अच्छा है! पर औरों के कारण क्यों? तुम्हारा मन है – कि नही।

 

मैं:-“वो अंकल मेरा भी मन है।” बस इसलिए।

 

वो:-अगर तुम्हारा भी मन है -तो ठीक है। वर्ना बस इसलिए मत करना कि बाकि कर रहे है ।

मैं:- ठीक है अंकल।  आपकी बात हमेशा याद रखूंगा।”अच्छा मैं थोडा़ अब पार्क के चक्कर  लगा – के आता हूं।

जब तक आप बैठे रहिए। फिर मिलते है। बाय-बाय।

वो:- “अच्छा ठीक है।”

 

मैं वहां से छूटते ही पार्क के चक्कर लगाने – लगा। पार्क काफी बड़ा था- और मैं अकेले तो खुद-से बातें होने लगी।

ना जाने अनयासा मेरे मन में कहाँ से ख्याल आया ? कि मैं जो इतना बच-बच के रहता हूं- मैं जो ज्यादातर अकेले ही रहता है।

इसलिए, पार्क भी अकेले आया। वो बंदा कैसे इतने-सारे और बूढ़े अंकलों के बीच मैं सिर्फ उन्हीं के पास क्यों गया ?

 

और इसी की जवाब खोजते-खोजते मेरा पार्क का चक्कर पूरा हुआ  और मैं वहां उनके पास आकर।

 

अच्छा अब मैं चलता हूँ।” मैं मुस्कुरा रहा था और वो भी। आज – से पहले में इतनी देर किसी भी अजनबी से बात नहीं कि थी।

पर वो मुझे बात करते वक्त अजनबी नही लगो ।

और इस प्रकार उनकी और मेरी एक नया संबंध बन गया खून  का नहीं था पर फिर भी, एक दोस्त के जैसे ।

उस दिन मुझे समझ में आया। अपने होते नहीं है-👇👇

बनाय जाते हैं। कुछ वक्त देकर कुछ समझकर और कुछ मुस्कुरा कर और समझाकर !

 

###############

अपने बनाय जाते हैं

###############

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वो पागल है(मंगु)…😁😄😆

forhindi 7 अप्रैल 2022 0 comment

वो पागल है (मंगु)…😁😄😆

अरे !

देखा तुमने,” मैनें कहा था ना – वो पागल है।”

” हाँ !

सच में !

तुम ने बिल्कुल ठीक कहा! वो सच में पागल है।”

 

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हाँ हाँ हाँ हाँ हाँ ! 😆😄😆

 

“वो बचपन से ऐसे ही है।”

यह उक्तियां दो सज्जन स्त्रीयाँ- मंगू के पड़ोस में रहने वाली मंगू के बारे मे कह रही थी।

और सिर्फ यहीं दो नहीं बल्कि पूरा समाज मंगु की ही देखभाली (कहने को) में जुटा रहता।

मंगु जन्म से कुछ मानसिक कमियों के साथ पैदा हुआ था। इसका शरीर तो बड़ा हो गया था।

पर दिमाग बच्चो वाला था। उसको अच्छे-बुरे का फर्क पता नहीं था। बस जैसा देखता –

वैसा करने की कोशिश करता। पर हर काम से वो लोगों के बीच हस्सी का पात्र बनता।

 

क्या आस-पड़ोस, क्या गाँव हर कोई मंगु के बारे में कुछ कहता और सुनता नजर आ जाता।

कि – तुम्हे पता है ‘आज मँगु ने-ना,

हाँ ! हाँ !

   क्या ?👂

एक अदमी को दाँते काट लिया।”

अरे बस।

कल तो उसने-इससे भी बुरा किया था? बिल्कुल पागल है वो – पागल।

उसे तो पागलखाने में होना चाहिए। ना जाने  हमारे बीच क्या कर रहा है।

इतना बड़ा हो गया है ” पर अक्ल नाम की चीज़ नहीं है- उसमें।

पर मंगु को इस बात से उतना ही फर्क पड़ता – जितना उसके  समाज को मंगु समझ में आता।

यानी कि मंगू उन्हें पागल समझता  और समाज वाले मंगू को। मंगु कुछ कहता नहीं था-

चाहे लोगों उसे कितना भी डांट ले- या मार ले।या उनके मम्मी -पापा को उल्हने दे -दे।

क्योंकि उसे समझ में बस हाओ-भाव दिखते थे – जो क्या कहने की कोशिश कर रहे हैं –

ना समझ आता था – ना जानना चाहता था – वह बस मुस्कुराता था।

 

एक दिन मंगू ने किसी बच्चे का खिलौना छिन- गलती से तोड़ दिया।

शायद खेलते-खेलते टूट गया था। खिलौना वैसे भी पुराना हो गया था।

और बच्चे की मां तो मां होती हैं। वो चढ़ आई। क्यों-रे मंगु! जब तेरे को अक्ल-वक्ल नहीं है

 

तो चुपचाप घर में क्यों नहीं रहता। उसके मां-बाप से,”आर्य समाज में रहने वाला नहीं पागलखाने में रहने लायक है।

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इतना बड़ा हो गया है, पर फिर भी बच्चों के खिलौने से खेलता है। हाथी कहीं का !

आप लोग इसे घर में रखे क्यों हो ? रखना ही है- तो हाथ-पैर बांध के रखो।

और काफी देर तक मंगु को और उसके माता-पिता को सुनाते रहती है।

इस पर मंगू के पापा ने वह खिलौना दुकान से खरीद के दे दिया।

और गुस्से में ले जाकर मंगू को घर में बंद कर दिया। और भगवान को कोसने लगे

उसकी मां का तो रो-रो के आंखें लाल हो गई थी। पर मंगू अभी- भी मुस्कुरा रहा था।

 

वह बच्चा जिसका खिलौना टूटा था, उसे नया खिलौना मिल गया था। इसलिए वह भी मुस्कुरा रहा था।

बच्चे की मां का सारी रात सर में दर्द रहा। पति के के पूछने पर बोली यह सब किया धरा उस पागल हाथी का है।

शाम को जब उसका पति वापस लौटा था तो अपने बच्चे के लिए नया खिलौना वह भी लाया था।

क्योंकि उसको भी पता था कि उसके बच्चे का खिलौना पुराना और खराब हो चूका था।

पर मंगु के मां-बाप नया समझदार मंगु नहीं ला सकते थे। और ना नया खिलौना मंगु के लिए।

क्योंकि मंगु को अपना और पराया खिलौना नया-पुराना खिलौना समझ में ही नहीं आता था।

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पर मांगू के मां बाप अपने बेटे के लिए नया खिलौना नहीं ला सकते थे।

क्योंकि उसको मुस्कुराने के लिए किसी को खिलौना लाने या बनाने की जरूरत नहीं होती।

मंगू अभी-भी मुस्कुरा रहा था। मंगू के लिए कोई भी चीज का खिलौना इसका-उसका नहीं था।

बल्कि सबका था। जो उनके संग जब चाहे खेल सकता था और खेला करता था।

पर उस औरत के सिर में दर्द नया खिलौना ना ठीक कर पाया।

कल सुबह समाज के जुबान पर मुस्कान थी की मंगु को तो पागलखाने में रहना चाहिए यहां हमारे बीच नहीं।

हां! मैं भी कहता हूं उसे उनके बीच नहीं बल्कि उस चारदीवारी के बीच गेट पर लिखे पागलखाने में रहना चाहिए।

जहां ना कोई अपना होता है ना कोई पराया और ना ही किसी का दिल दुखा कर खुद को समझदार सज्जन समझने वाला  समाज।

जिनकी सीमा एक चारदीवारी है। और इधर-उधर की बात और खुद को समझदार समझने के लिए एक मंगु की तलाश।

इससे अच्छा वह पागल खाने में रहता।

असली पागलों से दूर।

….. वरूण

 

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जिद्दीयाया- चांद :- आखिर क्यों 🤔

forhindi 4 अप्रैल 2022 0 comment

 जिद्दीयाया- चांद 🌙

बात यह उस वक्त की है। जब सभी के काम विष्णु तय कर रहे थे।

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चांद जिद पर अड़ गया था – कि उसको सिर्फ-और-सिर्फ सूरज ही बनना है।

वह चाहता था कि वह किसी की रोशनी ग्रहण करने वाला नहीं – रोशनी देने वाले के नाम से जाना जाए।

कि जब वह आए तो बाकी सब फीके पड़ जाए – दिखाई ही ना दे। वह सर्व शक्तिशाली बनने की जिद पर अड़ा था

और विष्णु यह बात नहीं मानते । और बिना किसी की इजाजत के वह किसी  और को इसका भार भी नहीं दे  सकते थे।

विश्व के कल्याण की बात थी – यह – इसलिए किसी और को दे भी नहीं सकते थे।

पर चांद वह छोटा बच्चा बना था जिसे बड़े वाला ही खिलौना चाहिए था।

चांद को इंद्र ने समझाया, पंचतत्वों ने,श्रषियों ने सब ने समझाया। पर वह मानने वाला कहां था ।

उसके नाराज हुए – जिद पर अड़े काफी दिन हो गए थे। विश्व की – ब्राह्मड की कार्यों में विघ्न उत्पन्न हो रहा था।

तो तिस पर विष्णु ने वक्त की लाज रखते हुए – चांद की जिद को मानकर। दे दिया उसे कार्यभार सूर्य का।

चांद सूर्य था तो चांद कुछ पल के लिए सूर्य को बनाया गया था। चांद खुश था क्योंकि उसे उसके जिद का फल जो मिला मिल गया था।

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1.First-day 👇

ब्रह्मांड का पहला दिन। पर यह क्या, सूर्य काफी छोटा था – जो इतनी उर्जा उत्पन्न नहीं कर सकता था

कि पृथ्वी जैसे और बृहस्पति और इससे भी बड़े-बड़े ग्रह और उपग्रह चक्कर लगा सके।

जैसा होना चाहिए वैसा तो कुछ भी नहीं हुआ। कुछ हुआ पर वो कुछ ही थे- पर वैसे नही जैसे ब्रह्मांड की उपेक्षा- थी,

ब्रह्मा-विष्णु-महेश की चाहत । पर चांद को क्या था? उसे कौन समझाता। रात हुई चांद निकला चांद जो काफी बड़ा था।

सूर्य की शक्ति इतनी काफी नहीं थी कि चांद को चमका सके। चांद चमका पर काफी फीका था ।

चांद को जो करना था वह भी काम ना हो पाया। जो जीव पनपे ना सूरज को पसंद करते – ना चांद से प्यार।

 

2.Second-day 👇

दूसरा दिन सूरज निकला पर जब वह निकला तो – जो जीव थे- उनका हंसी निकला, “यह कैसा सूरज है – जो चांद से इतना छोटा है।

और ना-ही ज्यादा रोशनी ही दे पाता है।” और जब चांद निकला तो फिर वही,” यह कैसा चांद है जो चमकता ही नहीं है।

इसको मामा कौन कहे ? कौन ऐसी बीवी ढूंढने को कहें‌? इससे अच्छा तो सूरज चांद होता है –

और चांद सूरज की जगह। खैर यह तो गैरों की राय थी- तो उनके मुताबिक कौन चलता।

3.Third-day👇

तीसरा दिन, ब्रह्मांड का कोई कार्य पूर्ण नही हुआ था। उस पर काऊ दबाव पड़ा-

कि क्यों सृष्टि का ना – संसार हुआ। सूर्य जो चांद बना हुआ था – उस पर भघ दबाव पड़ा।

उस पर भी सवाल उठे – पर उस पर ज्यादा दबाव नहीं था। जितना सूरज बने चांद पर था।

4.Fourth – day👇

चौथा दिन, पर-ये, क्या बच्चा सयाना हो गया था। उसे समझ में आ गया था,

कि वह एक मात्र- बच्चों वाली जिद थी – कच्ची उम्र वाली। वह वापस चांद ही बनना चाहता था।

पर विष्णु ने कहा यह क्या चल रहा है – चंद्रदेव ? कभी सूर्य – कभी चांद।

आप समझ रहे हैं। यह खेल नहीं – ब्रह्मांड की रचना की सवाल है।

एक बार और सोच ले बार-बार आपके जिद को नहीं माना जाएगा।

तो चांद ने बोला भगवान मैं समझ गया मैं पहले  नासमझ बालक था

पर जो अब  समझदार बन गया है। मुझे अब समझ में आ गया है

कि बड़े खिलौने – छोटे खिलौने, आनंद-प्रतिष्ठा नहीं देते, बल्कि बचपन में गुड़िया-गुड्डो

वाला खेल और थोड़े बड़े होने पर बैट-बल्ला-फुटबॉल-कबड्डी प्रिय लगते हैं।

यहां ना गुड्डा छोटा है ना बैट-बॉल बड़ा।

 

बल्कि असली मर्म पद और पदवीं का है- लड़कियों के हाथ में ही गुड़िया शोभा देती है –

लड़कों के हाथ में नहीं। इसका मतलब‌ यह नहीं कि पुरुष समर्थवान है और महिलाएं नहीं।

बल्कि सत्य यह है कि महिलाओं के बिना पुरुष कुछ नहीं – पुरुषों के बिना महिलाएं।

मोल दोनों का है। इसलिए मैं चांद बनने को तैयार हूं । विष्णु मुस्कुराए और दोनों के रोल बदल-दिय।

चांद-चांद बन गया सूर्य-सूर्य। दोनों अपने वास्तविक पद‌ पर विराजमान।

5.Fifth-day 💐

पांचवा दिन, सूरज विशाल और भव्य। ब्रह्मांड नई ऊर्जा  नए जोश में। नए -नए ग्रह-उपग्रहों का निर्माण हुआ।

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रात में चांद निकला और ये चांद बड़ा नयारा था- छोटा था – पर बड़ा प्यारा था।

हजारों तारों के बीच यह इकलौता था। उन सब को अपने साथ रखें यह चमकता रहता है।

इसलिए यह सूरज से भी ज्यादा प्यार किया जाता है- लेखकों द्वार लिखा  लिखा और माओ के द्वारा बच्चों का –

यह मामा बनाया जाता है – तो कभी चांद सी बीवी ढूंढ लेने का ख्वाब दिखाया जाता है।

इसके होने से आज जहां रोशन है। समुंद्र – नदिया अपनी सीमा में है।

इसलिए कहते हैं:-

 कि आप-आप बनो,फिर दुखाया नहीं सजाए जाओगे, हजारों दागो के बावजूद – सबसे खूबसूरत माने जाओगे।

वरना चांद-सूरज बनकर देख लो, एक दिन खुद ही मर जाओगे!…

……✍️ वरूण

 

हम कभी-कभी ना औरों को देखकर औरों की तरह बनने का मन करता है।

जैसे कभी, यूट्यूब पर देख लिया किसी मिलेनियर को या किसी अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर या कहीं-भी ।

और उनकी लाइफ स्टाइल को और हमें बस कभी-कभी जिद्द चढ़ जाती हैं – उनकी तरह बनने की।

यहां तक तो सब ठीक होता है- पर गलती हम यह करते हैं -कि हम उनकी सारी चीज़ें नकल- पर-नकल करने लगते हैं।

और जब वैसे परिणाम नहीं आते – तो हम जल्दी हार जाते हैं। और हमें लगता है कि यार हमारी किस्मत ही खराब है।

या हमारी किस्मत में उनकी जैसी जिंदगी कहां लिखी है। पर यहां ना असल गलती हमारी ही होती है-

जो उनकी तरह बनना चाहते हैं। हमें ना उन-से जिसकी प्रेरणा लेना होता है- उसके बाद अपनी कमजोरियां और

अपनी ताकतों का निरीक्षण करके – उनके किए गए कार्यों का समीक्षा करके,

कि वो वहां तक कैसे पहुंचे- उन्होंने क्या-क्या किया। उसके लिए कौन-कौन से तरीके बनाए।

उनकी कमियां क्या थी-  ताकतें क्या थी। और फिर सबसे जरूरी मैं उनसे किन-मामलो में अलग और

अनोखा दिख सकता हूं- कहां तक मैं अपना व्यापार बढ़ना चाहता हूं ।

आपको आगे बढ़ाता है- ना कि अंधाधुंध कोई और बनने की चाहत।

 

 

 

 

जैसे इंडियन क्रिकेट टीम में कई प्लेयर है कोई बॉलर तो कोई बैटर है।

और अधिकतर -ज्यादातर अधिक सैलरी बैट्समैन को दिया जाता है।

और वो ही अधिकतर लैम-लाइट में होते हैं। पर सोचों यह सोच के कोई बॉलर बैटर बनना चाहें।

और बन -भी जाय तो क्या वो टीम में जगह बना पायेगा।शायद हां, कभी-कभी यह हो सकता है पर सिर्फ कभी-कभी ही।

 

रोहित शर्मा बैटर है – विराट भी है- शिखर भी है- धोनी भी है।

कहने को तो ये सब बैटर ही है- एक ही काम करते हैं।

पर इनका नाम सुन आपके दिमाग में क्या एक ही छवि पनपती है।

नहीं-ना।‌‌‌‌‌‌‌‌‌ इसलिए हमें हम बनने की कोशिश करनी चाहिए ना‌‌ कि  कोई और।

(धन्यवाद)

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जिद्दीयाया- चांद 🌙

जिद्दीयाया- चांद 🌙

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