समाज और मैं 👈🤔
किसी ने पूछा है तुम्हारा नाम क्या है?
हमारा जवाब :-👇
अरबों की भीड़ में- वैसे तो मैं भी एक भीड़ का हिस्सा हूं-पर जो भी जान-पहचान वाले हैं। वो ना जाने क्यों मुझे वरुण कहते हैं।
उन्होंने बोला :- तो आपका नाम वरूण है?
मैं:- जी, हां ! मैं तो बचपन से इसी नाम पर हामीं भरता आ रहा हूं।
वो:- आप सच बोल रहा है ना!
मैं :- सच का पता नहीं पर बचपन से यही सुनते और इसी पर हामी भरते आ रहा हूं।
वो:- पागल है आप ?
मैं:- मेरे करीबी भी यही कहते हैं। हो भी सकता हूं।
मैं:- खैर, आपका नाम क्या है?
वो:- समाज ।
मैं :- क्या आप सच में समाज हैं! मेरा मतलब कि क्या आपका नाम सच में समाज है?
वो:- मुझे जब से समझ आई तब से मुझे इसी नाम से बुलाया जाता आ रहा है।
मैं:- यानिकि आपकी और मेरी दोनों की एक ही हालत है।
मैं :- मैं एक वरूण नाम के अस्तित्व में इंसान हूं !
मैं :- आप ?
वो:- मेरा पता नहीं पर समाज हूं। क्योंकि सभी मुझे इसी नाम से बुलाते हैं। और जो सभी बुलाते हैं, वो अधिकतर सत्य ही – होते हैं।
मैं:- हूं! यूं तो आप ठीक ही कह रहे हो। पर मैने सभी के मुंह से तो बस यही सुनता हूं कि जंगल का राजा शेर है। पर कभी उसके सिर पर ताज आजतक नहीं देखा, किसी तस्वीर में भी नहीं ।
वो:- जब सभी बोलते हैं । तो सही ही होगा। तुम भी मान लो।
मैं’- आप ठीक कह रहे हैं। आप समाज जो है। आप मुझसे ज्यादा जानते हैं।
अच्छा चलता हूं! 🙂
👋👋 फिर-मिलेंगो।
वो:- हूं। ठीक है!
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बुराई और अच्छाई
बुराई पूरी तरह कब्जा करना चाहती है, पर अच्छाई मुस्कुरा के उसे दरकिनार कर देती है।
यह अच्छाई और बुराई का जंग काफी सदियों से चला आ रहा है। काफी वर्षों की संघर्ष है।
हर कतरे-कतरे की कहानी है। जीत-हार, प्रेम-वार, शाम-दाम-दंड-भेद हर शस्त्र का इस्तेमाल होता है-यहां इस युद्ध में। मैं-आप-हम-तुम अनादि कोई भी अछूता नहीं रहा इस युद्ध से। क्या भगवान-क्याअसुर, क्या सतयुग और क्या कलयुग। सत्य-असत्य धर्म-अधर्म का टकराव सदैव बरकरार रहा है। एकांत-भीड़, निष्कासित-समजिक, शिक्षित-अशिक्षित-सब त्रस्त हुए हैं-इस युद्ध से। यह युद्ध पूर्णता की खोज की है-आधार की-सहनशीलता की खोज की। यह युद्ध कभी आसान नहीं था – ना है – ना होगा। क्योंकि आधार कमजोर नहीं होना चाहिए। और पूर्णता सहज नहीं होती और सहनशील यूं ही नहीं बना जाता। यह सब श्रेष्ठतम गुण है- और श्रेष्ठता कभी-भी सहजता से प्राप्त नहीं होता। पर याद रहे जो सहजता से प्राप्त हो जाए वह श्रेष्ठ नहीं होता। आप कोई भी बड़े चरित्रवान-गुणवान-धनवान-बलवान या भगवान का नाम लीजिए और आप पाएंगे कि उनमें पूर्णता-सहनशीलता- आधारशीला जैसे गुण समान्यता से दिख जाते हैं।पर जितनी समान्तय से यह गुण दिखते हैं-प्राप्त नहीं होते।
एक बड़े लंबे द्वंद से गुजरना पड़ता है – इन सबको। तब जाकर ये गुण फलित होता है-मनुज में। बिना लड़े ये जंग आप में आधार नहीं पनपा सकता और बिना आधार के सहनशीलता- कहां से आएगी। और बिना सहनशीलता- स्थिरता के पूर्णता की कामना करना उतना ही दुष्कर है जितना बिना नींद से जागे-सुबह देखना। और बिना दिनों में कठिन परिश्रम किया रातों में गहराई के संग सोया नहीं जा सकता।
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ज़िन्दगी भर – ज़िन्दगी के लिए !