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शरीर से आत्मा का बिछड़न

forhindi 25 अप्रैल 2022 0 comment
शरीर से आत्मा का बिछड़न

        शरीर से आत्मा का बिछड़न

 

काफी जटिल प्रक्रिया थी  – उन हड्डियों में जान- ना थी – मास लटके पड़े थे – नसे ढीले पर गय थे- चेहरों पर झुर्रियां थी

और मुँह में दांत एक भी नहीं थे। पर फिर भी काफी जटिल- मुश्किल प्रक्रिया थी -वो ।

शरीर से आत्मा का बिछड़न की प्रक्रिया । अभी हाल ही में तो जन्म हुआ था। उसका 80 साल पहले ।

दस साल तक बच्चा रहा 20-21 साल तक बचपना। 40-45 तक विषयों में व्यस्त 60 तक कमाने में।

बचे बीस वो पतझड़ और बसंत के आने-जाने में कट गए। मौका ही कहाँ मिलों इसे अपने और अपनों के साथ बैठने का ।

मिलना चाहता था। सबसे एक आखरी बार – हर रूठे को मनाना चाहता था- फलनवा-चिलनवा,

सबको पहचानता था, सब उसके पास थे। पर अजीब वो प्रक्रिया थी – सब अपने थे

पर वो जिसके कारण अपना था- वो बस अब उसकी नहीं थी ।

 

उसको जाना था – कैसे भी। पर इतनी आसानी से कैसे जा-सकता था ।

भले ही अभी – अभी  कुछ दशकों पहले पैदा हुआ था। पर चौबीस घंटे उसके साथ रहा था –

और हम यहाँ चार- पाँच दिन किसी ईलाके में रह ले तो जाते समय, रोते हैं।

वो तो आठ दशक बीता चुकी थी। हमेशा साथ रही थी । बिछड़ना आसान कैसे होता ।

भले ही घर का एक-एक भाग खंडहर हो चला था । नालियाँ सड़ने लगी थी –

खिड़कियाँ रोशनी नहीं ले पा रहीं थीं। रहने का कोई स्थिति नहीं थी – और जाना था – किसी हाल में।

क्योंकि जो आया है -वो जायेगा।

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पर आत्मा के लिए भी ये काम – आसान नहीं था। वो काफी सालों से खुद को उस घर को मालिक और

खुद ही को घर मान चुकी थी। बिछड़ना आसान कैसे होता – वो हर जानने वाले को अपना मानती थी।

और जिस पर हक होता है – जो हमारे हिस्से में होता है – उसे किसी हाल तक नहीं छोड़ा जाता –

तो वो कैसे छोड़ती । घर का एक-एक खंडहर कह रहा था निकल जाने को –

 

पर वो निकलने को राजी नहीं थी –

क्योंकि वो उस समय वो शरीर थी – जो आठ दशकों से बनी हुई थी।

 

उसने हर काम किए जो मन ने कहा  ना कि उसने – क्योंकि वो मालिक तो थी –

पर खुद को ही घर समझ बैठी थी। तो ऐसे में नौकर ने फायदा उठाया और

गुम रखा उसे इस बात में कि वही घर है – और घर उसी में है।

घर से अलग – उसका कोई अस्तित्व नहीं है।

 

वो घर से अलग नहीं-ना घर उससे अलग है। वो शरीर जिससे काफी शरारतें की,

जवानी से विषय-वासनाओं की भोग करते रहे- जो आनंददायी था।

ऐसे में उससे बिछड़ जाए तो आनंद कहाँ से आयेगा। मेरे सारे अपने कहाँ जायेगो?

इन सवालों के उधड़ – बुन में शरीर का हर भाग द्रवीत हो रहा था।

उस खंडहर में जान ना थी पर ना जाने उसमें उतनी शक्ति कहाँ से आ गई थी।

जो अपने मालिक को बांधे रखीं थीं।शरीर ने- मन ने- दिमाग ने -आत्मा ने- ने खूब कोशिश की।

मालिक को बांधे रखने की। पर मालिक को जैसे ही इसका अनुभव हुआ कि वो तो इनका मालिक है।

खुद उनमें नहीं है।

 

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तब-जाके दिमाग से – मन से- शरीर से बाहर आ पाया। पर ये प्रक्रिया काफी दुखदाई और संकटमई थी।

लेकिन तभी-तक जब – तक वो शरीर थी। जैसे ही वो आत्मा हुआ – अत्मज्ञान प्राप्त हुई।

उसके बिछड़ने में एक क्षण भी नहीं लगा । उसी शरीर से जिससे उसने संसार के सारे ऐश्वर्य भोगों थे।

और भोगना चाहती थी। लेकिन तभी-तक जब-तक वो घर (शरीर ) थी।

जब घर तर लेकिन जैसे ही मालिक बनी-उसका संचालक बनी  घर(शरीर) छोड़ दिया – बिना मादकताओं की ओर झुके।

 

ठिक इसी प्रकार हम हैं- हमारी आत्मा की ही  बात कर रहा हूं मैं।

 

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श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है कि कर्म में लिप्त हुए बिना कर्म करो।

पर हम हमेशा कर्म में आसक्ति होकर – लिप्त होकर ही कर्म करते हैं।

जिससे कि जब हम गिर जाते , हार जाते हैं। तो सत्य में मान जाते कि हम हार गय-

जबकि असल में / वास्तविकता में हारी हमारी मेहनत की हुई होती है।

क्योंकि जितना उस कर्म की होने के लिए मेहनत की जरूरत थी –

उतनी शायद हमने मेहनत नहीं की। इसलिए हार हुई । पर उसके हार से हमारे साथ यह होता है

कि हम मान लेते हैं कि

 

ये हमारी ही हार है – क्योंकि मेहनत तो हमारी ही थी।

लेकिन अगर हम कर्म लिप्सा में ना डूबे होते – तो हम यह कहेंगे की एक बार और कोशिश करता हूं।

लेकिन यह तभी संभव है जब आप उस काम में लिप्त यानिकि जुड़े नहीं है-

बस आप कर्म को कर रहे हो क्योंकि आपको लगता है कि वो आपका फर्ज है।

क्योंकि उसको फर्ज   समझोगो तो उसे करते रहोगे। लेकिन हकदार समझोगे तो

एक-दो-तीन-चार बार कोशिश करके बैठ जाओगों। क्योंकि हकदार को जब – तक यह एहसास है

कि के वो उसक है – तभी तक के उसका है-लेकिन जैसे उसे पता चलेगा की उससे-उसका हक ले लिया गया है

क्योंकि कोई और उसके योग्य है – तो हकदार यह समझ लेगा कि वो सच में उसके लायक नहीं।

लेकिन वही पर एक फर्जदार व्यक्ति तब-तक नही रूकेगा जब तक उसका फर्ज पूरा नही हो जाता ।

 

*********Meri Kitabein**********

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दुनियादारी और हम!‌

दौड़ दोनों की – पर सबसे ज्यादा दुखी पहले वाला ही क्यों?

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वादा👉🤔

forhindi 1 अप्रैल 2022 0 comment

    वादा

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☝️आपने पतझड़ का मौसम तो देखा ही होगा ।वे पत्ते जो एक पेड़ की शोभा होते हैं-

जिन्हें एक वृक्ष इतनी यत्न से पोषता है- उन्हें-ही अंत में सुखा के झाड़ देता है।

और आपने फिर बसंत-भी अवश्य देखा होगा। आप सोच रहे होंगो! ये बात आखिर मैं पूछ क्यों रहा हूँ ?

तो इसका जवाब यह है कि आज आप से कुछ इसी-से मिलती-जुलती बात करनी है।

बात ऊपरी शिर्षक यानिकि वादों कि है। वादे- जिनके  नींव पर रिश्ते बनते और बिखड़ते हैं।

हम-ना कभी-कभी या अधिकतर बार ये गलती करते हैं कि हम जोश- जोश में वादे कर लेते हैं।

जो जरूरी होता है। उस परिस्थिति के अनुसार । वर्ना अगर हम वचन ना दे-तो कुछ गड़-बड़ हो सकती है।

उसी गड़बड़ी को बचाने के लिए हम वादे कर लेते हैं। जैसे राजा शांतनु –

गंगा से ताकि किसी तरह गंगा से शांतनु का विवाह संपन्न हो सके।

 

और  वह वादा- क्या था- आप सब ने महाभारत पढ़ी होगी तो अवश्य जानते होंगे।

जो आठवें पुत्र देवव्रत अर्थात भीष्म-पितामह पर आकर टूट गया।

मैं टूटते पत्तों- वादों कि बात अचानक बात कैसे करने लगा। आप भी अवश्य सोच रहे होंगे।

पर बाता इनके टूटने और जोड़ने की नहीं- बल्कि इनके अस्तित्व की है।

कि ये बनते क्यों है और कब इनका टूट जाना अनिवार्य हो जाता है।

आइए हम एक कहानी के माध्यम से इन को समझने का प्रयत्न करते हैं।

कहानी कुछ यूं है कि 👇:-

 

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एक जंगल था। वहां बहुत से जानवर सुख पूर्वक जीवन यापन कर रहे थे।

कि तभी अचानक उस जंगल में कुछ शिकारी आ-धपकते हैं।

शिकारी थे – तो अपना कर्म अच्छे से जानते थे। पहले दिन थोड़ा लालच देकर कई झुंड –

कई जानवरों को पकड़ के ले गए।

दूसरे दिन  दूसरे दिन भी यही हुआ – तीसरे दिन भी ऐसे ही सूर्यास्त हुआ।

बेचारे जानवर अपने ही घर में अब सुरक्षित नहीं थे।

कितना भी प्रयत्न कर ले हर रोज कोई ना कोई फंस जाता था।

 

दिन-प्रतिदिन जानवरों की संख्या घटती जा रही थी

और अब हाल यह हो गया था कि उन सब का अपने वंश के लुप्त हो

जाने का डर सताने लगा था।

सभी जानवरों ने सभा बुलाई और सभी जानवरों ने मिलकर यह तय किया कि शिकारियों का  सामना

नहीं कर सकते और कहीं और जाना तो मुमकिन नहीं है।

तो क्यों ना हम उन शिकारियों से कुछ बातचीत करके कुछ शर्ते रखवाले ।

जिससे हर रोज डर-डर के अपने घर में संभल-संभल कर चलना तो नहीं पड़ेगा ना ।

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तो शिकारी इस बात पर मान गए कि वह हर रोज जंगल नहीं आएंगे।

और हफ्ते में एक बार जानवरों की एक निश्चित संख्या को उनके पास पहुंचना था।

ऐसे जंगल में शांति तो आई ।

पर यह शांति ज्यादा दिन तक कायम ना हो पाई।

फिर वही डर उनके सामने आ गया वंश लुप्त होने का।

क्योंकि शर्त के अनुसार एक बड़ी संख्या को शिकारियों के पास शिकार बनने के लिए जाना पड़ता था।

जो शर्त बचाने की आशा से बनाया था वह भी – उनके अनुमान मुताबिक काम नहीं आ रहा था।

तो फिर जानवरों ने फैसला किया कि वह अब उन शिकारियों के वादे को नहीं निभाएंगे।

 

चाहे इसके लिए हमें उन से सामना करके मरना ही क्यों ना पड़े। जब शिकारियों के पास शिकार नहीं पहुंचा।

जब वह जंगल आय तो जानवरों – की शर्त ना मानने की बात पता चली।

तो वह वही अपनी पुरानी वाली चाल चलने लगे ।

फंसते थे कुछ जानवर- पर उतने नहीं मरते थे- जितने उन वादों को निभाते- निभाते मर जाते।

अब वादे नहीं थे- और जानवर मरते थे- तो

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जानवरों ने मिलकर कुछ शिकारियों का भी शिकार कर लिया।

ये जंग ऐसे ही चलती गई  जानवर ज्यादा मरे – शिकारी कम।

पर इनकी संख्या आज भी यह जंग लड़ रहे हैं और

वह इस बात की खुद को खुद किस्मत समझते हैं कि:-

कहां उनकी संख्या लुप्त होने वाली थी और आज कहां

वे लुप्त होने के डर से- यहां पर आ गया कि अब लड़ना सीख गए हैं।

और अब ज्यादा शिकारी के जाल में भी नहीं फंसते हैं।

 

लेकिन सोचो क्या होता अगर वह वादा निभाया-जा रहा होता- तो।

इससे शायद जानवरों की संख्या लुप्त हो जाती या फिर वैसे ही डर डर के जीते रहते हैं।

और इसलिए बच्चे से बड़े बनते ताकि किसी दिन शिकार बन सके। इस डर में जीते  और मरते जाते।

पर कभी-भी लड़ना नहीं सीख सकते थे। इसलिए वादों का टूटना जरूरी होता है कभी-कभी।‌‌

______________ ∆∆∆ _____________

 

इसलिए वादों का कभी-कभी टूट जाना भी जरूरी होता है।

जैसे गंगा के यौवन की मदहोशी में शांतनु ने सात पुत्रों को तो

मरने दिया पर सही पर वादा तोड़ देवव्रत को बचाया

जिसने यह मार्ग प्रशस्त किया और आगो चलकर पूरे संसार को

महाभारत जैसे महान ग्रंथ और आदित्य सीख का जन्म हुआ।

पर शायद देवव्रत वो प्रतिज्ञा तोड़ देते- तो ना वो शर-श्यया पर लेटते ना इतना बडा़ नर-संहार होता।

मगर-अगर वो प्रतिज्ञा तोड़ देते- तो ना महाभारत होती ना गीता का जन्म हुआ होता।

इसलिए सिर्फ कुछ ही वादों का टूटना जरूरी होता है या अधिकतरों का – पर सबका नहीं।

 

 

 

वादे चाहे कितने भी मनमोहक क्यों ना-हो अगर यह जीवन नहीं बदल सकते हैं तो उन्हें तोड़ना आवश्यक होता है।

इसलिए कहते हैं कुछ वादे टूटने के लिए ही बनते हैं।

…..✍️ वरूण

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वादा

 

 

 

 

 

 

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नया विचार:- मेरे अनुसार राधा-कृष्ण

forhindi 27 फरवरी 2022 0 comment

   नया विचार:- 

                                     मेरे अनुसार राधा-कृष्ण

>>>मेरे अनुसार राधा-कृष्ण  – एक कल्पना मात्र है मेरी यह लेखनी :- पर आप सीख ज़रूर ले ?

एक सवाल राधा का,

“लोग हम पर शक करेंगे, अगर मुस्कुराते हुए देखेंगे बिना किसी वजह के?

यह कर्म मत करो कृष्ण !”

 

पर कृष्ण तो है नटखट और राधा तो उनकी संगिनी- सखा या सहेली।

दोनों एक-दूजे के लिए बने। कृष्ण गर बांसुरी तो राधा उसकी धुन।

राधा को प्यार में पड़ना ही था- चाहे लाख  समझाएं दिमाग, दिल को जीतना था।

राधा-कृष्ण ! प्रेम ऐसी की दुनिया देखी। बेचैनी एसी मिलन की की पार्वती भूखे-प्यासे रही वर्षों तक।

एक धुन सुनते ही ऐसे भागे आना जैसे सावन और भादो में बादलों का बरस जाना।

सबको बता के माता-पिता से, सखा से, और जमाना से; सब के समझाने के बाद भी कन्हा कि एक धुन

“पर राधा का बांसुरी का स्वर बन जाना।” ऐसा प्रेम जो दुनिया जानती है। लाखों मंदिर हैं राधा – कृष्ण के।

पत्थर के! वह जो धरातल पर लुटे-मिटे एक-दूजे के लिए। पागल इतने की शादी के बंधन में बंधने के बाद भी रोय एक-दूसरे के लिए।

पर राधा कभी जमीनी हकीकत से कृष्ण की नहीं हो पाई।

 

क्यों?

वह जिसे छलिया-रणछोड़ कहते हैं। वह जो छल से महाभारत जीताता है।

वह जो नरकासुर से 1600 नारियों के लिए लड़ जाता है।

वह कृष्ण जो पूर्ण पुरुष है। वह अपनी राधा को चाहते तो नहीं पा सकते थे?

वह श्राप अलग बात है। वह जिसे कोई लोक-लजा नहीं। गोपियों को तंग करने वाला।

उनके वस्त्र चुराने वाला। राधा को नहीं पना सकता था? क्या वह श्राप को नहीं बदल सकता था?

फिर उसने ऐसा क्यों किया? राधा रोती रही,

” दिल में प्रेम जगा कृष्ण तुम कैसे छोड़ गए, मुझे बीच बाजार ।”

कृष्ण भी रोम। पर क्यों?  एक ना होय। इतना कुछ होने के बाद भी कृष्ण की भी शादियां हुई- राधा की भी हुई!

मेरे अनुसार राधा-कृष्ण,hindimoraleducation,#hindimoralstories,#storyinhindi,#radha_krishna

 

 

क्या बताना चाहते थे कृष्ण, आइए जानते हैं। वह एकमात्र यह बताने आए थे

कि एक लड़की एक लड़के के लिए पागल हो सकती है, लड़का भी।

लड़की सब के मना करने के बावजूद उस लड़के से मिलने जा सकती है।

लोक लजा की शर्म की ओट लिए मिल सकती है। एक पुकार पर बेचैन हो सकती है।

हो यह भी सकता है कि उसका एक दिन भी ना कटे उसको देखे बिना- मिले बिना।

इतना सब कुछ होने के बावजूद एक लड़की उतनी ही पवित्र हो सकती है जितना जन्म के समय।

यह बताने आए थे कृष्ण। एक नर और नारी के बंधन को बदनामी मुक्त करने आए थे-कृष्ण।

यह बताने आए थे कृष्ण। एक नर और नारी इतने पागल होने के बावजूद पवित्र हो सकते हैं

कि उनकी समाज में शादी हो सके। कृष्ण चाहते तो भाग जाते-राधा तो तैयार थी।

मगर बात नारी की इज्जत, नर-नारी के पवित्र संबंध की आ गई थी। वर्ना तो कृष्ण कहते ही थे,

” काले को काहे की लजा?”

बिना संबंध के रिश्तो को, वो रिश्ते जो शादी के बिना पाप समझे जाते थे। उन्हें शुद्ध करने आए थे कृष्ण। बोलो,” राधे राधे।”

मेरे अनुसार राधा-कृष्ण,#hindistories,#moraleducationbytheloveofradha_krishna,

 

 

कान्हा की बांसूरी अभी भी बजती है। राधा अभी भी नृत्य करती है। और दुनिया अभी भी सोई हुई है।

विशेषकर आजकल के बच्चे जो ईश्क को बदन मात्र समझते हैं।

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रिश्ता किन कारणों से टूटता है ?

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बिना धब्बे का चांद

forhindi 24 फरवरी 2022 0 comment

         बिना धब्बे का चांद

.इंसान

.राधा _ कृष्णा से सीख

 

                  बिना धब्बे का चांद

 

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बात तब की है-जब अमावस्य चांद के हिस्से नहीं आई थी। इंसानियत तो छोड़ो आदिमानव का अंश तक जमीन पर नहीं पनपा था।

चांदनी इसकी लटों में थी- रवानी बातों में और खुशहाली उसकी हर सांसों में।

जब भगवान चांद पर विराजते थे ,उसी दौरान एक दिन भगवानों की सभा में देवराज इंद्र किसी असूर पर क्रोधित हो गए।

वे सारे असुरों का विनाश कर देना चाह रहे थे, क्योंकि उनमें से किसी ने चांद पर अधिकार करने की चेष्टा की थी।

उस चांद पर जो देवताओं का था। दरअसल बात यह हो गई थी, कि चांद की राजकुमारी चांदनी

अपनी खूबसूरती पर कुछ ज्यादा ही गुरूड़ करने लगी थी। और देवताओं के निवास के कारण अपनी शक्ति पर।

वो मुहावरा है ना कि ” चाय से ज्यादा गर्म- उसकी केतली होती है!” सों- ही इनके साथ था।

 

खूबसूरती बचपन से और सबके प्रिय होने के कारण लाडली होने कारण, गुस्सा नाक पर था, और घमंड सिर माथे पर।

इसी कारण वह सब को छेडझती- सताती घूमती रहती। काला अमावस्य उसको फूटी आंख नहीं सुहाता था।

इसी कड़ी में छोड़ दी थी उसने अमावस्या की बेटी को, दुश्ती हुई यह कहते हुए की” ये कहां की महारानी काली- कलूटी सी”

इसी का बदला लेना अमावस्या ने हमला कर दिया चांद पर। इसी वजह से देवराज क्रोधित थे असूरो पर।‌

युद्ध हुआ बड़ा भयंकर। सुर-असुर दोनों के क्रंदित हो रहे थे, और अंत में जैसा होता  आया है

असुरों को घुटने टेकने पड़े देवताओं के आगे। और जैसा कि  देवों के देव महादेव का अधिकार सबको है।

अमावस्या के उनके पास जाने पर उन्होंने बोला ” हे देव और असूरो , मेरा आप दोनों पर ही समान अधिकार है।”

 

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अमावस्या की बेटी ने पूछा शिव से कि क्या मेरा कालापन मेरी कमजोरी है।और उसका गोरापन उसकी ताकत।

शिव मुस्कुराए और बोले,” काला और गोरा दोनों सिर्फ रंग है। कोई ताकत या कमजोरी नहीं।”

तो चांदनी मुझे चिढ़ाती क्यों है? और देव हमसे दूर भागते क्यों है?

 

शिव मुस्कुराए और बोले,” ये काले को दोष समझते हैं-इसीलिए।

तो इस पर अमावस्या की बेटी बोली कि क्या सच में हम दोषपूर्ण है?‌‌

 

शिव मुस्कुराए और बोले मेरा बदन नीला है । मेरी गर्दन नीली है। गोरा नहीं क्योंकि इसने विश पी है।

इसका मतलब क्या मैं कमजोर हूं? रात्रि काली है। कोयल भी काली है। कौवा भी काला है।

समुद्र का तल जिसने समुद्र को धारण किया है वह भी काले हैं। विष्णु श्याम(काले) है।

तो क्या वह कमजोर है? वही जो तारे इतने गोरे हैं। क्या दिन में वह कहीं दिखते हैं?

वो विष जो श्वेत है क्या कोई उन्हें छूता है? जो सबूत हैं कि कोई कमजोर और बलशाली नहीं।

सब विशेष है अपनी-अपनी स्थान पर। काली रात आराम है- प्रतीक है काम से थके हारों का पुकार का।

गोरा दिन थका देता है- इंसान को। रात इंसान को इंसान बनाता है। श्वेत- कृष्ण रंग है।

यौवन- रूप सौंदर्य का प्रतीक नहीं- यौवन ऊक सोच है। और सोच सूर-असूरो की जीवन शैली है।

अगर यह काले को गलत या दुश्मन मानते हैं, तो कहीं ना कहीं वह सत्य हैं।

क्योंकि वह काले से डरते हैं।(गलत डर का अभिप्राय है)।

 

 

अपने आधार की नींव को जानने से डरते हैं। इसीलिए काले से दूर भागते हैं।

पर उन्हें पता नहीं वो तल जो अंधकार में है। समुंद्र का अगर वह हट गया- गोरे से जल के तो सारे संसार की उत्पत्ति कैसे होती?

काला रंग है जो कभी बदलता नहीं। वह स्थाई रहता है। और अगर किसी को सच में देव बनना है।

तो उन्हें अपने स्थाई डर को समझना पड़ेगा। सहारा मांगना और देना पड़ेगा। जैसे मैं हूं आदि भी- अनंत भी।

डर भी -निडर भी, दुख भी- सुख भी। इसलिए मैं महादेव हूं। तुम्हारा कालापन कोई कमजोरी नहीं। वरदान है।

तुम आराम हो। तुम ही हो जिसके कारण चांद और देवताओं की जरूरत है। तुम कमजोर नहीं- तुम सर्वशक्ति हो।

और रही चांदनी की बात तो वह ही दंड की पात्र है। और उसको मैं यह श्राप देता हूं कि वह थोड़ी काली हो जाए-ताकि उसमें स्थायित्व आए।

चांद उसके पिता होने के नाते कई सारे अनुनय विनय के साथ अपने माथे वह श्राप ले लिया।

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 और बिना धब्बे वाला चांद- धब्बे वाला हो गया। जो चांद को अब एक अलग पहचान देती है।

लोगों को कहानी, बच्चों को मामा, और मांओ को बहू देती है। जो पहले चांद के सिर्फ गोरे होने से नहीं हो सकता था।

क्योंकि इसने गोरे को देखा नहीं जाता। क्योंकि उसमें कोई कृति और अकृति नहीं होती।

पर उस धब्बे ने हर मनुष्य को अपनी सोच को खरोचने का मौका दिया है।

इसलिए चांद और ताकतवर हो गया है- क्योंकि उसे स्थायित्व और अमावस्या का साथ मिल गया है।

जो उसे दुनिया की नजरों से भी बचाता है- और कईयों को ख्वाब सजाता है।

और चांदनी अब झुकना सीख गई है। उसके लिए गोरा और काला काला होना मात्र एक रंग है।

 

 

 

काला होना कोई पाप नहीं। समझना कोई गलत नहीं। पर रुक जाना महापाप है।

नीलकंठ इसलिए नीला है क्योंकि उन्होने विष पिया है। जिन्होंने पिया ही नहीं उनके- नीलकंठ कैसे हो सकते हैं?

 

हिंदी कहानी 👈❣️❣️🪶❤️😘😘😘

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#bestforbeginnersstoryinhindi#moralshorthindistories#short_hindi_stories#short_hindi_stories_for_class_1#why_family_divide_in_hindiसास-बहू

सास-बहू

forhindi 27 दिसम्बर 2021 0 comment

सास-बहू

एक गांव में राम-श्याम और रीता तीनो भाई-बहन। अपनी मां पापा के साथ रहते थे। तो राम सबसे बड़ा था

और नौकरी भी करने लगा था। तो मां ने राम की शादी करवा दी।

बहू आई तो मां रीता को कहती है कि तेरी भाभी है ध्यान रखियो।

और बहू से पहले रसोई के दिन बहू के सामने,

” यह सब बनाना है तुम्हें , और मन में पता नहीं कैसे बनायेगी?

दूसरे घर की‌ है ना!” और बहू ठिक है मां-जी ; और मन में पता नहीं कितना खाते हैं? कितना हूकूम जमाते हैं।”

ऐसे ही 6-7 महीने बाद घर का बंटवारा हो-गया। श्याम-रीता, मां-बाप एक साथ ।

और राम दूसरी तरफ।फिर कुछ दो-चार साल बाद रीता की शादी हुई।

रिता की मां रीता की सास को बोलती है कि हम अपने घर की बेटी दे रहे हैं

ध्यान रखना, अपनी बेटी की तरह।

और रीता की सास रिता के पहले रसोई के दिन वही करवाती है

जो रिता की मां ने उसके बड़े भाई की पत्नी उर्फ उसकी भाभी के साथ।

और इसमें भी वही मन में कहा जो उसकी बड़ी भाभी ने अपने रसोई के वक्त कहा था।

और 5 महीने बाद यह भी अपने सास-ससुर से अलग हो गई।👇

सास-बहू,Hindi_moral_story_on_family_dividends

 

 

अब ध्यान देने वाली बात यह है कि ऐसी कौन सी चीज है जो एक बेटी को अपने बाबा के घर पर हर काम भले ही

थोड़ा रूठ के पर करने पर जिम्मेदारी के साथ करती है। भाई के दबाव,

पिता की डांट मां के काम के बाद भी सारे घर को मुस्कुराते हुए संभालने वाली।

दूसरे के घर में जा के अलग हो जाती है। और दूसरी बात ध्यान देने की यह है कि ऐसी कौन सी चीज है

जो एक मां को अपनी बेटी की साथ स्थिति कितनी भी खराब हो जोड़ें रखती है। मगर पतोह के संग नहीं।

क्यों जमती नहीं है? चलो साथ में इन रिश्तो के आगाज से देखते हैं। पहले बात बेटी की जो बाद में बहू बनती है।

 

एक बेटी अपने मां-बाप आके घर को संभालती है। जोड़े रखती है। चाहे दर्द कितना भी हो।

क्योंकि वह दिल से उसे अपना घर और वहां के सदस्य को अपना मानती है।

मगर शादी के बाद (उसको यह बताया गया होता है कि तुझे वहां बहुत काम करना होगा

भले ही उतना ही काम मिले जितना उसे अपने घर पर मिलता हो)। दूसरा पत्नी जो बेटी से पतोह बनती है।

तो इसे यह भी पता होता है कि वह जिनकी पत्नी है वह उनके बेटे हैं। तो वह उनके बात मानेंगे हमारे मानने से ज्यादा।

तो वह यहां से अपना वर्चस्व जमाने की कोशिश करती हैं।तो वहीं दूसरी तरफ जो कहीं उसकी बेटी को ज्यादा काम ना करना पड़ जाए

इसके लिए काम पहले ही कर लेती थी। अब वह काम बढ़ाती है। इतना बदलाव जमीन आसमान का आखिर आता कहां से है।

यह इस समाज से आता है, जो यह बताता है कि एक बहू अपनी सास के लिए कितना दुखदाई होती है।

जब उनके बेटे की शादी होती है तब यह इस बात से प्रभावित हो जाती है कि उनका बेटा अब इनकी नहीं सुनता।

उनके साथ सही से बात नहीं करता। वह अब उन पर ध्यान नहीं देता। तो वह अपने बेटे को खोने का डर से अपनी बहू को दुश्मन मान बैठती है।

 

और अपनी बहू को महारानी की संज्ञा दे देती है। जो अपनी बेटी को कभी राजकुमारी कह कर बुलाती।

रानी यानी कि राज करने वाली और राजकुमारी यानी कि राज करने योग्य वाली।

बड़ा फर्क है दोनों में जो यहां मां-सास जितना ही है‌।

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मगर यह बात भी सच है कि ताली एक हाथ से नहीं बजती। जिम्मेदार दोनों होते हैं।

बेटा-पति  इस पर हक के लिए घर के दो टुकड़ों में बांट देते हैं।

मगर हर मां ऐसी नहीं होती और हर बहू भी ऐसी नहीं होती। क्योंकि सास भी मां होती है

और बहू भी बेटी होती है ।बस जरूरत होती है तो एक-दूसरे का हाथ थामने की नाकि उठाने की।

 

 

वर्ना हर सास भी बुढ़ी होती है और हर बहू भी मां बनती है।

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भास्कर

forhindi 21 अक्टूबर 2021 0 comment

भास्कर

 

भास्कर, #Hindistoriesforkids, #Hindistoriesformoral, #Moralstoriesinhindi

 

ये बात उस साथी की है जो इतना गहरा नही था-

मगर फिर भी कुछ तुक उसके साथ भी जुड़े है मेरे।

नाम वैसे तो दिवाकर है-मगर ऊपर भास्कर लिखा है, वो इसलिए क्योकि हमारी।

एक अध्यापक जो संस्कृत पढ़ाती थी वो अक्सर इसे भास्कर कह के बुलाती थी।

आज यह दो-सालो बाद अचानक याद कैसे आ-गया यही सोच रहा हूँ मैं भी ।

मगर जो भी कहो बंदा था सबसे अलग, स्कूल की पढाई मे अच्छा नही था।मगर अध्यापक कहते थे,

कि इसमे कुछ दाना है।दाना यानिकि ज्ञान।  इसको मै दूसरी से जानता हूँ- बदमाश-शैतान-थोडा आलसी और थोड़ा फनी।

 

 

डर किसी का नही सिवाय पिता के।पिता बाकियो की तरह भी इसे पढ़ाई मे अच्छा बनते देखना चाहते थे।

चाहे कौन-ना ! वो गलत नही थे।ये अक्सर हमे बताता कि

तुम्हारे पापा तो कुछ नही मेरे जो मारते है- वो अलग लेवल पे है।

वैसे ठिक ही कहता था ; हमने भी उसे मार खाते देखा था।वो पढता नही था।

मगर यह आत्मविश्वास कह लो या अति-आत्मविश्वास; यह कहता था मैं पास हो जाऊँगा।मगर दसवी मे यह लुढ़क गया।

मगर इससे मैं किसी को नही आँकता। मैं फिर भी कहता हूँ कि वो बंदा अलग था।

स्कूल की चार-दिवारी के बाहर का ज्ञान रखता था।अक्सर स्कूल लेट पहुँचता-बिखड़े बड़े बाल।थोड़े पीले दाँत ।

और खूब सारे सवाल-जवाब के साथ एक अलग मस्ती का लेवल रखता था।

 

 

कुछ साल मेरे ही साथ पढा नौवी मे इसका और मेरा सैक्सन अलग हो गया।

मगर स्कूल एक थे और संस्कृत की कक्षा मे रोज मिलते थे।

उससे बहुत कुछ सिखने को मिलता।वो नलायक दिखता था मगर था नही।

वो सी-बैच मे शामिल हुआ एक्स्ट्रा क्लास लेने लगा।

मगर एक बात बताऊँ उसी क्लास मे हमारी साइंस की टीचर उसकी माता के नाम वाली किरण मैम का ध्यान उस पर गया।

जब वो दूसरे स्कूल को ट्रांसफर हुई तो कहा कि मै प्रिंसिपल बनने जा रही हूँ।और मै चाहती हूँ कि दिवाकर तुम मेरे स्कूल मे पढने आओ।

और बुलाती भी क्यो नही!बंदे मे दम था। मगर स्कूल पिछे छूटा तो शायद मैम भी भूल गई और यह फेल हो गया तो हम भी।

मगर जब से वो फेल हुआ है तब-से ईद का चाँद छोडो ना दिखने वाला तारा बन चुका है।यह उसकी गलती नही शर्म है।

हम सब जानते है उसके  घर का पता और घर भी स्कूल के रास्ते मे ही पड़ता है। मगर वो लापता रहता है।

इसमे उसकी शर्म है जो उसे रोकती है और हम उसे कायर कहते है। मगर यह हमारे समाज की आँखे नंबर ही देखती है।

आइंस्टीन को – ऐडीसन को कहाँ स्कूल मे पूछती है।हर क्षमता को नंबर से आँकती है। इसलिए वो बाहर आने से डरता है।

 

___^ ___^ Aur Kahani ^___^ ___

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