आत्मीय – राक्षस
आत्मीय – राक्षस |
हम सबके अंदर एक राक्षस रहता है। जो हरदम इस ताक में रहता है कि कोई देख तो नहीं रहा।
और जब पाता है एकांत तो निकल पड़ता है। हम को दबाने लगता है। हाथ नहीं है – उसके नहीं पैर।
पर फिर भी वह बहुत तेज जकड़ता है। ऐसे कि जैसे मार ही देगा और हम पर काबू कर लेगा।
और अधिकतर समय कर भी लेता है। लेकिन तब – तक ही ताकतवर रहता है –
जब तक उस एकांत को कोई भंग ना करने आ -जाय।
भीड़ में खत्म हो जाता है यानी कि छुप जाता है। क्योंकि उस भीड़ में उसको देखने वाला जाते हैं।
यकीन मानिए आप उस बिन सिर – पैर वाले राक्षस पर तब-तक नहीं पा सकते।
जब तक आप खुद में भीड़ नहीं बन जाते। मेरा मतलब है उसको देखने वाला या मानने वाला कि राक्षस है।
वह अब मुझ पर हावी हो रहा है। क्योंकि वह राक्षस एकांत ( अनजाने – अनदेखे – अज्ञान ) में पनपता है
लेकिन जैसे ही उसे एहसास होता है कि किसी और की उपस्थिति (ज्ञान – एहसास और रोशनी ) की तो
वह अपने आप खत्म हो जाता है। इसलिए इस राक्षस से लड़ने पर यह और ताकतवर हो जाता है।
इसको हराने का सिर्फ और सिर्फ एक मात्र यही तरीका है कि उसे समझा जाए।
या यह अपनाया जाए जाए कि वह हमारे अंदर है – अब पनप रहा है।
क्योंकि वह रहस्यमी राक्षस है और रहस्य तब – तक ही रहता है।
जब तक उसे देख ना लिया जाए – जान ना लिया जाए। स्वीकार न कर लिया जाए।
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यहां मैंने जो भी लिखा है। वह सब अपने अनुभवों और मेरी आप – बीती का किस्सा है।
ऐसा नहीं है कि मैंने इसे खत्म कर दिया है लड़ाई चल रही है।
यह ध्यान रखना कि इस राक्षस को पूर्णता मिटाया नहीं जा सकता है।
गुलाम बना सकते है – काबू कर सकते हैं क्योंकि यह कहीं बाहर नहीं हमारे अंदर ही रहता है।
जो कि बड़ा चतुर है – अनुभवी और दैत्य भी।
इसके अनुभव को मारने का सिर्फ एक ही कारगर हथियार है
जिसे अनुभूति कहते हैं और यह राक्षस उतना ही अधिक शक्तिशाली होता है
जितना अधिक आप इस पर जबरदस्ती काबू करना चाहते हैं
भौतिक चीजें तो कंट्रोल हो जाती है – पर यह भौतिक नहीं है आत्मिक है (आत्मा नहीं कहा) ।
भौतिक चीजों को आप जबरदस्ती कंट्रोल कर सकते हो –
आत्मिक चीजों को खत्म करने के लिए आत्मीयता की जरूरत होती है।
इस राक्षस का आहार तम (गलत संगत, अनाप-शनाप खाना, कुछ भी देखना,
खुद को ना जान ना इसको छुपाना – नहीं मानना कि वह मुझ में है) है।
जैसे स्त्रियों को देखकर पुरुषों का विचलित होना आम बात है या स्त्रियों का पुरूषों को देखकर।
उतना ही साधारण यह है। जब यह तम को देखता है – एकांत को पाता है – निकल पड़ता है।
और दबाने लगता है। इसलिए आप कभी भी एकांत ना हो खुद में हो क्योंकि अंततः आपको ही इसे समाप्त करना है।
बाहर वालों को यह तब दिखेगा जब यह आप पर पूर्ण रुप से अधिकार कर लिया होगा।
इसके समाप्ति के लिए आपको इसके आहार तम को कम करना होगा।
इसके लिए कृष्ण की जरूरत होगी – राम की जरूरत होगी।
क्योंकि यह भगवान तभी बने जब यह राक्षस इनके गुलाम हुए।
महादेव महाकाल है क्योंकि राक्षस भी उनके अधीन है।
और प्रभु को पाने का सरल उपाय है विद्या – ग्रहण – सत्संगति – खुद को जानना – अच्छे कर्म करना ।
यह जंग आसान नहीं होगा – ना ही जल्द खत्म होगा। पर यकीन मानिए यह आप से है – आप इससे नहीं है।
आप इसको कमजोर कर सकते हैं बस जरूरत है तो आत्मज्ञान – आत्मसमर्पण की और अनुभूति की।
और यह स्वीकार करने की हां यह मुझ में है।और यह मेरे लिए खतरा बन सकता है।
OOOOOOOO<Meri Kitabe>OOOOOOOO
ज़िन्दगी भर – ज़िन्दगी के लिए !