मोटे- होंठ
उस दिन बड़ा खुश था मैं। पता नहीं मगर इतना पता है कि बहुत खुश था मैं।
शाम के 7:30 बजे थे। तम था क्योंकि ठंड का मौसम था।
मैं घर से निकला जेब में यही कुछ 100-200 लेकर पापा ने कहा जा-जाके जलेबी ले आ। मैं दौड़ा गया।
जब मिठाई वाले के पास पहुंचा तो देखा भीड़ लगी थी।
सो मैं थोड़ी देर ठहर गया। और यहां- वहां देखने लगा। होठों पर मुस्कान थी
और आंखों में चमक। मुझे उस वक्त बहुत अच्छा लग रहा था।
तभी मिठाई वाले की आवाज दे मुझे अपनी ओर खींचा। बोला क्या चाहिए मैं खुशी से बोला जलेबी!
कितनी? तो बोला आधी किलो। तो मेरा ऑडर पैक होने लगा।
तभी एक आदमी आया शायद काम से लौट रहा था। कमीज़ साफ थीं
और पेंट फैला वो दुकान पर आया और मिठाई वाले से पूछा कि,
यह कचोरी कितने के दिए। जब वह बोल रहा था। जब वह बोल रहा था।
मैंने उसकी ओर देखा ना वो हंस रहा था ना उदास। उसके होंठ बड़े थे।
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एकदम सहज भाव में खड़ा था। शायद बच्चों के लिए खरीद रहा था ।
जब मिठाई वाले ने बोला है ₹15 का एक। अब उसने सिर ऊंचा किया और गर्दन को हाथ से सहलाता है।
और सिर झुका के जैसे ही निकलन को हुआ। मिठाई वाले ने बोला दस का एक। कितने कर दुं।
बोला दो कर दो। मैं खड़े-खड़े अपने आर्डर के इंतजार में उस स्थिति में आ गया।
जहां मैं ना मुस्कुरा रहा था ना उदास था ।मेरे सामने उसकी चित्र और वह बड़ा होंठ सामने आकर मेरे याददाश्त में खड़ा हो गया।
वह तो चला गया फिर मुझे मेरा माल मिला। मैं वहां से उसे लेकर तो चल रहा था
मगर अब मुस्कुरा नहीं रहा था बस उस आदमी के मोटे होंठ को याद कर रहा था।
कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि उस आदमी के ₹15 के सोचने पर उदास हूं
या मिठाई वाले के 5 रूपए कम करने पर खुश।
बस में जलेबी लिए सोचते-सोचते कहीं गुमशुम हुए घर आ गया जलेबी भी खत्म हो गई और उसकी मिठास भी।
मगर वह आदमी आज भी वहीं खड़ा मिलता है जहां मैं उसकी ओर देख रहा होता हूं।
♣♣♣♣♣♣♣Aur Padhe ♣♣♣♣♣♣♣
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♣♣♣♣♣♣♣Aur Padhe ♣♣♣♣♣♣♣
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(मोटे- होंठ)
(मोटे- होंठ)
ज़िन्दगी भर – ज़िन्दगी के लिए !