Teacher’s day
मै बहुत उत्साहित था, क्योकि मुझे टीचर बनने का मौका मिला था।
और मेरे दोस्त भी थे, हम सब मे उत्साह था, सब बोल रहे थे कि मै ये बनूँग तो मै वो बनुँगा।
मगर वहाँ पर भी कई हाथ नीचे थे, नजरे छूपा रहे थे। मुझे बोला कि मै संस्कृत का अध्यापक बन जाऊँ।
मैंने सर झुका दी और बचपन से जो आदत थी, अध्यापक के हाँ मे हामी भरने की ना चाहते हुए भी भर दिया।
चलो यह सुन के खुशी हुई की संस्कृत का ही सही मगर मै अध्यापक तो हूँ।
मगर उनका क्या जिन्हने किसी के लिए हाथ ना उठाया। क्या वो कुछ नही बनना चाहते।
तो मैने अपने एक दोस्त से पूछा भाई तु अध्यापक क्यू नही बन रहा? जवाब मिला यार कपड़े नही है।
मगर हकीकत तो ये कि पिसे खर्च करना उसकी आदत थी , मगर कपड़े नही है।
खैर; यह मसला हम लोगो का-भी था। हम भागो-भागो गय, सदर दो बजे और लौटे छः बजे के करीब। क्यू ?
कपड़ा खरीद रहे थे, ताकि टीचर दिखे। सबने फाॅरमल खरीदा, एकदम फीट-फीट ।
और थके हारे घर आके बैठ गय। और अब होने लगी सुबह की इंतजार।
सुबह हुई दोसतो का फोन आने लगा। भाई सब साथ मे चलेंगो। एकदम अच्छे फाॅम मे।
गय सब ,मुस्कराते -मुस्कुराते। स्कूल मे पहुँचे तो थोड़ी शर्म आने लगी।
और फिर जब बुलाया कुछ बोलने की तो पैर नाचने लगो, होठ रूकने लगो।
और हम भी जैसे-तैसे बोल के किनारा कर लिय।
मगर फिर भी जान ना आई। कपड़े अच्छे थे, और हम भी चमक रहे थे।
मगर फिर कुछ था जो मुझे और मेरे दोस्तो को फिर भी डरा रहा था।फिर क्लास मे गय,
बच्चो से सोचा था मस्ती करेंगो।मगर बच्चो ने जिद्द कर दी पढ़ा दो सर। बोला चलो लाओ टॉपिक क्या है, चलो मै पढ़ता हूँ।
मगर पढ़ाने बैठे तो गले मे जैसे कुछ अटक रहा था। कपड़े अच्छे थे,
सब की नजरे हमी पर थी, मगर अब उन्ही नजरो से हम।बचने कि कोशिश कर रहे थे।
फिर जैसे-तैसे दिन बित गय, और हमे अंत मे कुछ बोलने को फिर से पूछा गया।
भीड़ मे हम सारे मुस्करा रहे थे। मगर जब अकेला बुलाया गया, तो मेरे पैर मुस्कुरा रहे थे, और होठ चिपक रहे थे।
कपड़े अच्छे थे, मगर फिर भी हमे बुरा लग रहा था। और सबकी नजरो से हम छूपने की कोशिश कर रहे थे।
टीचर बनने के लिए कपड़ो की खूबसूरती जरूरी नही है, टीचर बनने के लिए एक साफ नियत की जरूरत है!
जिंदगी जीने के लिए दिखावे की नही, ठहराव की जरूरत है!
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Teacher’s day
Teacher’s day
ज़िन्दगी भर – ज़िन्दगी के लिए !