लक्ष्य:- जरूरी क्यों ?🤔👇
घने जंगल जंगल में आमो के वृक्षों के पास गुरुदेव कविंद्र,
अपने शिष्यों के साथ धनुर्विद्या की परीक्षा के लिए पहुंचे थे।
ऐसा कहा जाता था कि जो भी बच्चा गुरुदेव कविंद्र से शिक्षा प्राप्त करके धनुर्विद्या सीखता है।
उसका निशाना कभी नहीं झुकता है। और सारे बच्चे उर्फ शिष्य पारंगत हो गए थे।
धनुर्विद्या में उनकी परीक्षा का अंतिम चरण था। और बच्चियों की मूल्यांकन का दिन ऐसा कहकर वह अपने शिष्यों को वहां घने जंगल में आम के बगीचे के पास लेकर गया।
पहले गुरु जी ने प्रत्येक शिष्यों को उनका निशाना बता दिया।
और वो इतने निपुण थे कि आंख पर पट्टी बांधकर ही बिना किसी संकोच के पलक झपकते ही अपने निशानों को बिंध दिया।
सब का निशाना बिल्कुल सटीक और सही था। उनका आत्मविश्वास उत्तेजित होकर गुरु जी बताइए अब किसे बिंधना है।👇
गुरु बोलते हैं शाबाश बच्चों। अब तुम्हारा लक्ष्य अभी कुछ देर विश्राम करो इंगित करके आता हूं।
सभी शिष्य जी गुरु जी! गुरुदेव आम के बगीचो के बीच में पहुंचे और बीच वाला पेड़ चुना जिसमें आम बड़े अच्छे थे।
और इशारा पाते ही वह आम भी बिंबित कर दिया गया। लक्ष्य मुश्किल था मगर एक ही वार में काट दिया गया।
तो आत्मविश्वास और बढ़ा और शिष्यों को यकीन हो गया था कि वो इस सृष्टि के महान धनुर्धारी है ।
एकलव्य के समान और सच कहें तो थे भी लगभग। क्योंकि गरु कविंद्र से जो सीखा था।
वह जो धनुर्विद्या के सबसे बड़े आचार्य थे । अंतिम चरण था और गुरु ने सबसे पहले वाला पेड़ के पीछे जो पेड़ था उसके आम पर चिन्ह लगा दिया।
और शिष्य को बताया गया कि तुम्हें उस आम को तोड़ना है। जो इस पहले वाले पेड़ के पीछे वाले पेड़ पर लगा है।
सब चिल्लाए गर्व से जी गुरु जी। मगर यह क्या पहला वाला गया निराशा हो के लौटा
दूसरा वाला गया परेशान होकर लौटा। ऐसे ही सारे गुरुदेव कविंद्र के शिष्य एकलव्य की तुलना के विद्यार्थी;
सर नीचे झुकाए खड़े थे। गुरु ने बोला एक बार और प्रयास करो मगर निशाना किसी का भी सही नहीं लगा।
सारे तीर खत्म हो गए और घमंड चूर-चूर हो गया। उन्हें शक होने लगा अपने आप पर, अपने गुरु के शिक्षा पर।
तो एक शिष्य ने साहस कर पूछ ही लिया गुरु जी हमसे आज तक इन 4 वर्षों में एक अंगूर का दाना भी नहीं बच पाया।
हमसे एक ही में वार में बिंबित हो जाता था। हमसे इतने सालों के प्रयत्न और लगन के बाद भी।
आपसे शिक्षण बाद भी।वह लक्ष्य इतना बड़ा होने के बाद भी बच गया। क्या हम अच्छे धनुर्धारी नहीं है?
क्या हमारी शिक्षा अभी पूर्ण नहीं हुई है?
उन सब को समझाते हुए कहा इसमें कोई शक नहीं कि तुम सारे योग्य धनुर्धारी हो, तुम सारे पारंगत हो।
तुम मेरा अभिमान हो। इसी बीच वह कैसे गुरुदेव। जब हमसे वह आम नहीं टूटा।
गुरुदेव मुस्कुराए और बोले वह जिसे तुम लक्ष्य करके मार रहे थे पता है वह कहां है?
तुम्हें दिख रहा था कि वह कहां है? नहीं गुरु जी! गुरु ने बोला यही तो बताना चाहता हूं
बिना लक्ष्य को लक्षित किए बिना उसको देखे उसको बिंबित नहीं किया जा सकता।
जब तक उसके बारे में पता ना हो उसकी स्थिति पता ना हो चाहे तुम कितने ही परिपूर्ण हो हमसे चूक होगी।
जब तक तुम्हें अपने लक्ष्य का पता नहीं होगा। तुम अंधेरे में तीर चला कर सही फल 100 में से एक बार ही प्राप्त कर पाओगे।
मगर रोशनी में चलाओगे तो एक बार में ही बाजार टूकड़ों में उसे खंडित कर दोगे।
इसमें गलती ना ही तुम्हारे शिक्षा या काबिलियत की नहीं है। गलती लक्ष्य का बोध ना होना है।
गांडीव धारी अर्जुन भी चिड़िया की आंख में इसलिए मार पाए क्योंकि उसे उन पत्तों-पेडों के बीच वह साफ-साफ दिख रही थी।
उन्होंने कभी नहीं मारा जिन्हें नहीं दिख रही थी। इसका मतलब यह नहीं कि वह काबिल नहीं थे।
वह काबिल थे उनका लक्ष्य लक्षित नहीं था। इसलिए वो अर्जुन से कम थे।
इसलिए हमेशा याद रखना जिंदगी में कुछ भी करने से पहले उस गंतव्य का अनुमान/पता होना जरूरी है।
वर्ना अंजान शहर में लोग अक्सर रास्ता भटक जाते हैं भले ही पहुंच जाते हैं मगर कभी भी सही/सार्थक समय पर नहीं पहुंच पाते।
गुरूदेव ने सभी शिष्यों को लक्ष्य को बिंबित कर के दिखाया।यह देख शिष्य हैरान थे। यह कैसे हुआ?
गुरू मुस्कुराए और बोले कि मुझको पता था कि वह कहां है, कितना पीछे है, किस दिशा में है, कितने पत्तों के पीछे हैं, कितना वेग चाहिए होगा।
इसलिए बिंबित हो पाया।अब तुम सब देखकर आओ और निशाना लगाओ।
और इस बार सभी मुश्किलों के बावजूद वह आम हजारों टूकड़ों में विभागीय था।एक बार में ही तीर पहुंच गई थी।
___________*Meri Kitabe*___________
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लक्ष्य:- जरूरी क्यों ?
लक्ष्य:- जरूरी क्यों ?
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