समय का फर्क !
कल उठा तो मैं जल्द था |
पर कोई काम नहीं था |
और ऊपर से ठण्ड थी |
तो बिस्तर में लेटे रहा |कुछ समय बीत गए | समय निकला जा रहा था –
पर समय बचना भी तो नहीं था – क्यों की कोई काम भी तो नहीं था |
मौसम ओस का था और महीना जनवरी का | और शरीर मिट्टी का |
पर इस मिट्टी से कोई काम लेना नहीं था |
तो मिट्टी में हल कैसे चलता | हल तो बीज डालने – खेती करने के उद्देश्य से ही चलता है |
लेकिन खेती न करनी हो तो – मिट्टी को बचा कर जैसा है
वैसा रखा ही जाता है |
इसी प्रकार इस मिट्टी से भी कोई काम नहीं था –
तो में बिस्तर में लेटा रहा | मुझे जगे हुए घंटे से – दो घंटे हो गया था |
पर में जग कर करू क्या ,इस लिए समय जाये चाहे बहे मुझे कोई फर्क नहीं पर रहा था |
तभी अचानक याद आया की अड़े यार मुझे तो आज सुबह कही जाना था |
पर जिस समय जाना था वो समय तो मै मिट्टी को कम्बल में ढके रखा रहा |
अब समय नहीं था – और अगर जाता तो जाने का कोई फायदा नहीं होता |
मै अब सिर्फ सोने के अलावा कुछ कर भी नहीं सकता था |
क्युकी समय का फर्क मुझे नहीं पड़ रहा था |
तब मुझे समझआया की अड़े यही तो ज़िन्दगी है | बस जग गए है सब सपने से –
कुछ समय के लिए | पर काफी लोगो को पता ही नहीं है – वो जगे क्यों है |
उनको जाना कहा था जिसके कारन एक काफी प्यारे सपने को छोड़
कर जागा गए | पर जैसे जगाने के बाद हम अपने जैसे अधिक सपने को भूल जाते है|
हम सब भी भूल गए है | और जो जगे हुए समय में – जो मिटटी को आराम देने के बाद –
भी जगे है | वो बस इसलिये जगे हुए है – की बस नींद खुल गई
| फिर उन्हे फरक नहीं पड़ता – समय जाए चाहे बहे | जैसे बेरोज़गार उठगये – किस लिए ?
तो सिर्फ इसलिए की आँख खुल गई | और भूख को और शरीर को बस आराम के लिए |
फिर उनको समय से कोई फर्क नहीं पड़ता | वो बस जग कर – बिस्तर में ही पड़े हुए है |
उनको लग रहा है की वो जग गए है – पर उनको ये
नहीं पता की उनका वो जगा होना – उनके न होने के बराबर ही है |
क्युकी सोए हुए को भी समय का फरक नहीं पड़ता –
क्युकी उसको भी कही जाना ही नहीं है | दोनों एक सामान है |
जाग गए हो – या जागे हो !
समय से पहले जग कर भी करोगे क्या ?
अगर समय का तुम्हारे जागने और न जागने पर एक ही प्रभाव हो !
ज़िन्दगी भर – ज़िन्दगी के लिए !