वादा
☝️आपने पतझड़ का मौसम तो देखा ही होगा ।वे पत्ते जो एक पेड़ की शोभा होते हैं-
जिन्हें एक वृक्ष इतनी यत्न से पोषता है- उन्हें-ही अंत में सुखा के झाड़ देता है।
और आपने फिर बसंत-भी अवश्य देखा होगा। आप सोच रहे होंगो! ये बात आखिर मैं पूछ क्यों रहा हूँ ?
तो इसका जवाब यह है कि आज आप से कुछ इसी-से मिलती-जुलती बात करनी है।
बात ऊपरी शिर्षक यानिकि वादों कि है। वादे- जिनके नींव पर रिश्ते बनते और बिखड़ते हैं।
हम-ना कभी-कभी या अधिकतर बार ये गलती करते हैं कि हम जोश- जोश में वादे कर लेते हैं।
जो जरूरी होता है। उस परिस्थिति के अनुसार । वर्ना अगर हम वचन ना दे-तो कुछ गड़-बड़ हो सकती है।
उसी गड़बड़ी को बचाने के लिए हम वादे कर लेते हैं। जैसे राजा शांतनु –
गंगा से ताकि किसी तरह गंगा से शांतनु का विवाह संपन्न हो सके।
और वह वादा- क्या था- आप सब ने महाभारत पढ़ी होगी तो अवश्य जानते होंगे।
जो आठवें पुत्र देवव्रत अर्थात भीष्म-पितामह पर आकर टूट गया।
मैं टूटते पत्तों- वादों कि बात अचानक बात कैसे करने लगा। आप भी अवश्य सोच रहे होंगे।
पर बाता इनके टूटने और जोड़ने की नहीं- बल्कि इनके अस्तित्व की है।
कि ये बनते क्यों है और कब इनका टूट जाना अनिवार्य हो जाता है।
आइए हम एक कहानी के माध्यम से इन को समझने का प्रयत्न करते हैं।
कहानी कुछ यूं है कि 👇:-
एक जंगल था। वहां बहुत से जानवर सुख पूर्वक जीवन यापन कर रहे थे।
कि तभी अचानक उस जंगल में कुछ शिकारी आ-धपकते हैं।
शिकारी थे – तो अपना कर्म अच्छे से जानते थे। पहले दिन थोड़ा लालच देकर कई झुंड –
कई जानवरों को पकड़ के ले गए।
दूसरे दिन दूसरे दिन भी यही हुआ – तीसरे दिन भी ऐसे ही सूर्यास्त हुआ।
बेचारे जानवर अपने ही घर में अब सुरक्षित नहीं थे।
कितना भी प्रयत्न कर ले हर रोज कोई ना कोई फंस जाता था।
दिन-प्रतिदिन जानवरों की संख्या घटती जा रही थी
और अब हाल यह हो गया था कि उन सब का अपने वंश के लुप्त हो
जाने का डर सताने लगा था।
सभी जानवरों ने सभा बुलाई और सभी जानवरों ने मिलकर यह तय किया कि शिकारियों का सामना
नहीं कर सकते और कहीं और जाना तो मुमकिन नहीं है।
तो क्यों ना हम उन शिकारियों से कुछ बातचीत करके कुछ शर्ते रखवाले ।
जिससे हर रोज डर-डर के अपने घर में संभल-संभल कर चलना तो नहीं पड़ेगा ना ।
तो शिकारी इस बात पर मान गए कि वह हर रोज जंगल नहीं आएंगे।
और हफ्ते में एक बार जानवरों की एक निश्चित संख्या को उनके पास पहुंचना था।
ऐसे जंगल में शांति तो आई ।
पर यह शांति ज्यादा दिन तक कायम ना हो पाई।
फिर वही डर उनके सामने आ गया वंश लुप्त होने का।
क्योंकि शर्त के अनुसार एक बड़ी संख्या को शिकारियों के पास शिकार बनने के लिए जाना पड़ता था।
जो शर्त बचाने की आशा से बनाया था वह भी – उनके अनुमान मुताबिक काम नहीं आ रहा था।
तो फिर जानवरों ने फैसला किया कि वह अब उन शिकारियों के वादे को नहीं निभाएंगे।
चाहे इसके लिए हमें उन से सामना करके मरना ही क्यों ना पड़े। जब शिकारियों के पास शिकार नहीं पहुंचा।
जब वह जंगल आय तो जानवरों – की शर्त ना मानने की बात पता चली।
तो वह वही अपनी पुरानी वाली चाल चलने लगे ।
फंसते थे कुछ जानवर- पर उतने नहीं मरते थे- जितने उन वादों को निभाते- निभाते मर जाते।
अब वादे नहीं थे- और जानवर मरते थे- तो
जानवरों ने मिलकर कुछ शिकारियों का भी शिकार कर लिया।
ये जंग ऐसे ही चलती गई जानवर ज्यादा मरे – शिकारी कम।
पर इनकी संख्या आज भी यह जंग लड़ रहे हैं और
वह इस बात की खुद को खुद किस्मत समझते हैं कि:-
कहां उनकी संख्या लुप्त होने वाली थी और आज कहां
वे लुप्त होने के डर से- यहां पर आ गया कि अब लड़ना सीख गए हैं।
और अब ज्यादा शिकारी के जाल में भी नहीं फंसते हैं।
लेकिन सोचो क्या होता अगर वह वादा निभाया-जा रहा होता- तो।
इससे शायद जानवरों की संख्या लुप्त हो जाती या फिर वैसे ही डर डर के जीते रहते हैं।
और इसलिए बच्चे से बड़े बनते ताकि किसी दिन शिकार बन सके। इस डर में जीते और मरते जाते।
पर कभी-भी लड़ना नहीं सीख सकते थे। इसलिए वादों का टूटना जरूरी होता है कभी-कभी।
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इसलिए वादों का कभी-कभी टूट जाना भी जरूरी होता है।
जैसे गंगा के यौवन की मदहोशी में शांतनु ने सात पुत्रों को तो
मरने दिया पर सही पर वादा तोड़ देवव्रत को बचाया
जिसने यह मार्ग प्रशस्त किया और आगो चलकर पूरे संसार को
महाभारत जैसे महान ग्रंथ और आदित्य सीख का जन्म हुआ।
पर शायद देवव्रत वो प्रतिज्ञा तोड़ देते- तो ना वो शर-श्यया पर लेटते ना इतना बडा़ नर-संहार होता।
मगर-अगर वो प्रतिज्ञा तोड़ देते- तो ना महाभारत होती ना गीता का जन्म हुआ होता।
इसलिए सिर्फ कुछ ही वादों का टूटना जरूरी होता है या अधिकतरों का – पर सबका नहीं।
वादे चाहे कितने भी मनमोहक क्यों ना-हो अगर यह जीवन नहीं बदल सकते हैं तो उन्हें तोड़ना आवश्यक होता है।
इसलिए कहते हैं कुछ वादे टूटने के लिए ही बनते हैं।
…..✍️ वरूण
———–>Meri Kitab <—————-
वादा
ज़िन्दगी भर – ज़िन्दगी के लिए !