मैडमों
Office |
एक ऑफिस था और काम करने वाले स्टाफ और उनके काम करने वाले जगह को साफ रखने वाले/वाली “स्टाफ वहाँ काम करते थे।
इन्ही जगह साफ करने वाली में से एक नई देहात से आई थी। देहात की यानिकि :- 👇
Village |
शर्म-हया-खुलेपन-मदमस्त और अपनापन का मिजाज वाले लोगों का बसेरा।
ये वहाँ से हाल ही में किसी के कर्जा चुकाने के खातिर अपनी पति की कमाई मे मदद कराने आई थी।
उसक पति काफी सालों से काम कर रहा तो आसानी से कंपनी में भर्ती करवा देता है।
ऑफिस यानिकि व्यवस्था सीनियरों का रिस्पेक्ट। ये रंगीन दुनियाँ में सादगी (ब्लैक एंड व्हाइट) का मिश्रण था ।
सादगी बेचारी इतनी रंगीन दुनिया को देखती तो देखती रह जाती – इतने फ्लोरो कौन से में से फ्लोर में जाना है,
खोजते रह जाती – पगडंडियों यानिकि पगों के निशाने के पिछे चलने वाली – फर्श पर चलने आई थी – परेशानी तो थी ।
लहजा जरा गाँव वाला था – करती तो काफी लोग समझ नहीं पाते और काफी समझना नहीं चाहते थे।
ये मैडम को मैडमो कहकर पुकारती। व्यवस्था परेशान थी, नाखुश थी- पर सादगी पसंद सबको है।
पति काफी सालों से सुपरवाईजर था और मैंनेजर को पता था कि बेचारे पर काफी कर्जा है
तो उस सादगी को कभी दरवाजा नहीं दिखाया उन्होंने।
पर वो हर दरवाजा देखती। क्योंकि उसे शीशों का चक्कर समझ में नहीं आया था।
पुरानी आदत थी तो – वैसे ही जीते जैसे अपने गाँव में – पर शहर का थोड़ा ख्याल रखने की कोशिश करती ।
पर रख पाने में असक्ष्म थी। तो जो इसके साथ काम करते वो बड़ा परेशान थे –
क्योंकि इसको काम करना सही से आता नहीं था- मिट्टी को गोबर से लिपकर तो स्वच्छ कर देती थी –
पर फर्श के दाग हटाना इसको नहीं आता था । ये रंगीना दुनियाँ से परेशानी थी और रंगीन दुनियाँ इसकी –
सादगी से। इसको व्यवस्थित रहना – नही आता – जैसे मन करती रहती और लहजा गाँव वाला ही रखती ।
एक दिन मैडमों सब चाय पी रही थी कि इसकी नदानी – की वजह से हाथ से मैडमो का कप गिरा
और उनका ड्रेश गंदा हो – गया। जिस तरीके से कप बिखड़ा इनका गुस्सा कुछ ऐसे ही खंडीत हुआ।
सादगी बेचारी डर गई जैसे नई दुल्हनियाँ घबरा जाती है अपनी सास की डाँट सुनकर।
ये बोली, “माफ कर दो मैडमों- हमसे गलती से टूट गया। हम को नहीं दिखा था।
मैनेजर साहब से हमारे ऊ का कहते हैं शिकायत मत करना ।
चाहे हमको कितना भी कुछ कह लो या मार लो।” पर मैडम का संयम कप के गिरने से ही बिखड़ गया था।
और सभी उसकी ओर देख रहे थे उसकी दोस्त भी तो वो, “यूँ जाहील- गंवार ना जाने कहाँ-कहाँ से आ जाते है?”
जब काम करने नही आता तो क्यों आईं हो यहाँ। अभी रूको तुमको तुम्हारी औकात दिखाती हूँ ।”
सादगी बेचारी कांप उठी थी। मैनेजरे में सुनाया बहुत पर ऑफिश से निकाला नही ।
दूसरी काम करने वालो ने उन बिखड़े कप के टुकड़ो को तो उठा लिया और
फर्श पर कैमिकल भी गिरा दिया। पर मैडमों का दाग, जल्दी नहीं हट रहा था ।
अब ये मैडमों से बच-बच के रहती और इसको मैडमों देखकर चिड-चिड़ी सी हो जाती।
‘काफी दिनों तक ऐसे ही चला। दो-चार महीने इसी लुका-छुप्पी में बीत गई।
पर दाग अभी- भी था – थोड़ा-थोड़ा, पर था। तो आज क्या हुआ कि ये मैडमों उस वाशरूम में थी
जिसमें वह काम कर रही थी। इसने सैंडल पहने थे।
Sandal |
जिसके कारण इससे सही चला नही जा रहा था।तो ये लड़खड़ा रही थी और गिरने ही वाली थी की –
कि सादगी ने हाथ थाम लिया और बोली संभाल के मैडमों। कहीं आपको चोट ना लग जाए समान तो टूटते रहते है –
पर चोट लग जाय तो आदमी काम का नहीं रहता – कुछ दिनों, लिए।
और रंगीन जो लड़खड़ा के गिरने वाली थी – सादगी ने उसको बचा लिया।
यज देख के मैड्मों बोली “थैंक्स ! दी-दी आज आपने मुझे गिरने से बचा लिया।”
यह , ” ये ” – तो मेरा फर्ज था इसमें शुक्रिया वाली क्या बात है! ”
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