मशीने बड़े या हम
एक प्रतियोगिता सदियों से स्मार्ट कंप्यूटर और इंसानी दिमाग की।
कौन बड़ा कौन छोटा, ये सवाल शायद हर किसी से कभी-न-कभी पूछा या सोचा गया है।
इसका माकूल जवाब सब दे – देते हैं। ह कि कंप्यूटरों को इंसानों ने बनाया है।
कंप्यूटरो ने ईसानों को नहीं। तो, ये तो तय हो जाता है – ‘कि इंसान बड़े हे ।’
पर ये बात हम अक्सर हज्म नहीं कर पाते क्योंकि इतना सरल – व्यापक जानकारी है
ये कि इसको अक्सर, नजरअंदाज कर दिया जाता है। जैसे गार्डन में घासों को –
पर मैं जिन के साथ अभी काम कर रहा हूँ। वो उम्र में काफी बड़े और
उतने ही बड़े अनुभवी जितने की इंसान | उन को जो भी समझाना होता है, वो लौटकर
के आते है इस समाधान के साथ की जो कुछ भी बना है। इंसानों के ऊपर ही बना है।
जैसे मुझे समझाते वक्त जैसे एक मास्टर एक नौसीखिय को समझाते वक्त कि देखो
ये सेन्सर इंसानों की आँख की तर्क पर बना है। जैसे कोई भी चीज कैसी है ये आँख देखकर बताती है।
ठीक वैसे ही उसके आधार पर सेन्सर बना है। लिफ्ट पैरों की ताल पर बना है।
ये बी. एम.एस. ऑपरेटर इंसानी अंगो के जैसा कार्य करता है।
और भी कई मशीन उन्होंने मुझे दिखाई , और कहा की ये सब तुम्हें समझने है
तो ऐसे समझना की जैसे तुम्हारे शरीर पर बने है ।
तुम्हें समझ भी आसानी से आ-जायेगी और याद रखने में भी कोई तकलीफ नहीं होगी।
बस एक छोटा-सा फर्क याद रखना। आप सजीव है और यज सब निर्जीव ।
ये बातें चलती गई - काम होता गया ।
दिन ढलते गया । और एक दिन जब कोई मशीन हल्की सी लीक क्या हुइ ।
बड़े साहब ने छोटे पद वले उस आदमी को धक्के मारो दस-पंद्रह गालियाँ देकर भगा दिया।
उसे जिसने कई बार उन मशीनों को ठीक किया था ।
ना समझो को समझाने के लिए मशीनों के पार्ट को इंसानी बॉडी का पार्ट बताया था।
और यह अक्सर, हर जगह होता है :- हम अपनी मशीनों का कितना ध्यान रखते हैं।
कुछ खराबी हो जाए ठीक करवा लाते है। लेकिन तब-तक नहीं बदलते जब-तक
वो काकी पुरानी या ना पसंद ना हो जाए और उसके साथ इमोसेंस जुड़े हो-तो उसकी बात ही अलग है।
अब लगता कि उन्होंने ठीक ही कहा था- सबकुछ इंसानों के पार्ट पर ही बना है।
क्योंकि बनाया इंसान और इंसानी दिमाग ने ही है। पर पता नही कब मशीने बनाते- बनाते
इंसान कब खुद मशीन बन गए । जो अपने से छोटे पद वालों की छोटी-सी गलती पर जान को जान समझते ही नहीं है।
मशीन जब ठीक करवा सकते हो – तो क्या इंसान को एक छोटा सा मौका भी नहीं दे सकते ?
क्या हम सच में मशीन बन गए- मशीन बनाते-बनाते। या सिर्फ इंसान समझ रहे हैं- क्योंकि हम मशीनों को बना सकते हैं।
क्या सच में अब मशीनें इंसानों के अंदर पनपने लगी है ताकि वह इस जंग को जीत सके
‘कि मशीन बड़ा है – या इंसान !’
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इंसानों ने मशीनों को इंसान बनकर ही बनाया है मशीन बनकर नहीं !
ज़िन्दगी भर – ज़िन्दगी के लिए !