मधुमक्खी का दर्द
मैंने बचपन में एक साधु की कहानी पढ़ी थी | जिसने अपने हाथ में एक केकड़े को उठाकर ,
उसे वापस नदी में डाल आता है | जबकि वह केकड़ा उस साधु को बार-बार काट रहा था |
लोगों ने पूछा तो बताया कि वह (केकड़ा ) अपना काम कर रहा था – और मैं अपना |
पर जैसे यह कहानी मेरे मस्तिक से ओझल हो चुकी थी |
पर आज मैंने जब एक मधुमक्खी को मारा, तो यह कहानी मुझे याद आ गई |
हुआ कुछ नहीं था | पर आज से ठीक 1 या 2 हफ्ते पहले एक मधुमक्खी ने मेरी बहन को काट लिया था |
और आज एक और मधुमक्खी हमारे कमरे में आ गई |
बहन देखकर डर गई और कहा मुझे कि मैं उस मधुमक्खी को मार डालू |
पर तभी मैंने उससे कहा कि जब तक वह उधर उड़ रही है – उड़ने दे – वह अपने आप चली जाएगी |
जब वह इधर-उधर कुछ करेगी , तब देखा जाएगा |
क्योंकि कहीं मैंने सुन रखा था कि जब एक मधुमक्खी डंक मारती है |
तब वह अपने जीवन के जीव को खो देती है, और मर जाती है |
हमें ज्यादा से ज्यादा क्या सिर्फ दर्द ही तो होता है | पर वह पूरी अपनी जिंदगी खो देती है |
इसीलिए उसे कम से कम अपनी पूरी जिंदगी जीने दो |
हमें कोई अधिकार नहीं है – किसी को मारने का |
यह कह कर तो मैं बैठ गया और मेरी छोटी आराम से सो गई |
और कुछ देर बाद ही वह मधुमक्खी कमरे से बाहर जा ही नहीं रही थी |
कभी इधर – कभी उधर और हमारे पास आ रही थी |
और उसके डंक से हमको दर्द होगा |
यह सोच कर मैंने अपने दर्द को उसके जीवन से ऊपर समझा और
उसके बाहर निकलने का कुछ और समय इंतजार किया |
जब वह पंखे से टकराई और नीचे गिरी तो मैंने उसे मार ही दिया |
तब पता चला मैं अपने दर्द को महसूस करता हूँ – और उनके सिर्फ जानता हूँ |
पर आज कुछ अच्छा नहीं लगा – या कुछ समझना था , इसलिए लिख दिया |