भगवान इच्छा पूरी क्यों नहीं करते
एक परिवार था। बदकिस्मत तो हर बंदे की तरह खुद को ही मानते थे।
इसमें जो पिता था वो सरकारी नौकरी करता था।
और पत्नी चार बच्चे होने के बाद अपने आप को जलाकर राख कर देती है।
और बच्चों की जिम्मेदारी बाप के कंधों पर आ-जाती है। बिना मां के बच्चे कैसे पलते हैं
शायद ही किसी को बताने की जरूरत पड़े। जो की मां का किरदार जो हमारी लाइफ में है
शायद ही किसी और का हो माफ करना किसी का नहीं है । फिर भी बाप-बाप होता है ।
बच्चों की जिम्मेदारी संभालने के लिए सरकारी नौकरी छोड़ देता है।
और शहर से आकर अपने गांव मां के साथ मिलकर अपने बच्चों को पालने लगता है।
अपने बच्चों से बहुत प्यार करता है मगर बाप था ना बता नहीं पाता।
धीरे-धीरे करके उम्र बीतती गई और बेटियों की वक्त पर शादी कर दी।
अब उसका सिर्फ इकलौता बेटा बचा था। जो पढ़ता था।
तीनों बेटियों ने घर संभालने के चक्कर में चौथी-पांचवी कक्षा से ज्यादा पढ़ा ना था।
मगर भाई ने बी.ए. किया था और कॉलेज के लिए शहर गया था।
वहां बाप से पैसे लेता था पढ़ाई के नाम पर और खर्च करता था प्यार के नाम पर ।
और जब शादी की बात उठी तो बेटे ने धमकी दी आत्महत्या कर लेने की
अगर उसके प्यार के साथ उसकी शादी नहीं हुई तो। बाप बेटे से बहुत प्यार करता था।
उसे निराश नहीं कर सकता था। तो खुद को निराश कर अपने बेटे को खुश करता है।
और बहु रानी घर आती है। आते ही हूकूमत अपने हाथ में ले लेती है।
और नंदो को फूटी आंख न भाती है ना भाने देती है। उनसे अपनी सौतन की तरह ही जलती है।
और उन्हें अपने मायके के से दूर ही रखती है। और ससुर के पेंशन से जो भी तनख्वाह आती थी
यह कहकर छिन लिया करती थी कि सारे पैसे जुआ और शराब में उड़ा देते हैं
और जो बच जाता है अपनी बेटियों को दे देते है ।
इससे चाय वाला था उसके पास उसका उठना-बैठना कम होने लगा।
बहू ने और नकेल कसना शुरू किया और खाना भी कम कर दिया तो उसकी दो बेटियां थी
वो अक्सर इसके पास आती थी। तीसरी वाली शहर में रहती थी
तो बहुत कम ही मुश्किल से 10 साल में दो-तीन बार 15- 16 दिन के लिए जा पाती थी।
मगर वह दोनों बेटियां एक साल में 5-6 बार जरूर जाती थी। जिससे बहुरानी अपनी सौतन की तरह उन से चिढ़ती।
तो यह दोनों वहां रहती तो अपने बाप को देखती देखती तो पाती कि उनका बाप जो उनकी शादी से पहले थे
वह अब वैसा नहीं रहे। जो बासी खाना नहीं खाता था अब वह बासी भी चाव से खाता था।
यह देखकर बड़ा रोती। लेकिन तीसरी वाली को यह पता नहीं था। दोनों बेटियां कुछ कर नहीं सकती थी
तो एक ही दुआ करती थी भगवान से कि उनके पिता की आत्मा को शांति दे।
और जो शहर वाली थी तो उसका पिता उससे बात करने के लिए उनकी बेटी से बात करने के लिए फोन करता
और कहता तुम लोग मुझसे जल्दी मिलने आ जाओ वरना मुंह भी तुम्हें देखना नसीब नहीं होगा मेरा।
मुझसे मिलने आओ जल्दी। तो शहर वाली भगवान को 1 महीने से बोलने लगी हे भगवान!
बाप को 6- 7 साल और जिंदगी दे दे। ताकि वह खुशी से जी सके।
मगर पिता अगले महीने ही एक्सीडेंट से मर जाता है। और शहर वाली बेटी बोलती है
कि भगवान सच में होता भी है कि नहीं। अगर होता है तो उसने मेरे बाप को इतनी जल्दी क्यों मार दिया।
और यह फोन करके अपनी बहनों को बताती है।
और बहने बताती है कि हम 1- 2 सालों से विनती कर रहे थे भगवान से कि उन्हें जल्दआत्मा की शांति दे।
तो ऐसे में भगवान किसकी सुने आप ही जवाब दें और आगे बढ़े।
जिंदगी बदकिस्मत नहीं बदकिस्मत तुम्हारी सोच है हमारी सोच है।
उसे ठीक करो हालात को किस्मत का दोष मत दो।
हालात को किस्मत मत समझो।
.……🙏🙏🙏…….. राम-राम !……..🙏🙏🙏……
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2@..खुद डूबो – खुद सिखो (Hindi Edition) Kindle Edition
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3@..भगवान और इंसान:- 5 कहानियां : शिक्षाप्रद जो हर किसी को एक बार अवश्य पढ़नी चाहिए (Hindi Edition) Kindle Edition
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(भगवान इच्छा पूरी क्यों नहीं करते)
(भगवान इच्छा पूरी क्यों नहीं करते)
ज़िन्दगी भर – ज़िन्दगी के लिए !