अपने बनाय जाते हैं
चार-पाँच दिन पहले –
निकला था यूँ ही – कई दिनों बाद पार्क घूमने |
किसी के साथ नहीं अकेले। शाम का वक्त-सूरज ढलने को था। मौसम मे अजीब-सी पर मनमोहक रवानी थी।
पार्क घर से ज्यादा दूर नहीं था। बीस मिनट का पैदल रास्ता था- वो मस्ती के आलम में कट गया ।
कब पार्क में पहुँचा इसका अंदाज उस बुढ़े हो चले चेहरे को देखकर पता चला जो झुर्रियों के संग शायद मुझे देख के मुस्कुरा रहे थे।
शायद, इसलिए क्योंकि मुझे नहीं पता था कि वो मुझे देखकर मुस्कुरा रहे थे या – पहले से ही ।
पर उनकी मुस्कान बड़ी मनमोहक थी – वातावरण की तरह। मनमोहक थी – तो मन तो मोहना ही था –
मैं इतना बच-बच के रहने वाला – ना जाने कैसे बोल पड़ा पड़ा – “नमस्ते अंकल”।
वो मुझे और गौर से देखकर उस मनमोहक-सी मुस्कान के साथ “नमस्ते बेटा।”
बस बात यहां खत्म हुई। वो वॉक कर रहे थे और मैं घूमने पार्क गया था।
बस रास्ते में आमने-सामने मिल गय थे। रास्ता था और हम यात्री, एक-दूसरे को खुशी बांटकर आगो निकल गय।
फिर अगले दिन ना-जाने मैं किस रस में डूबे पार्क गया।और फिर वही अंकल-
और फिर वही राम-राम यानिकि नमस्ते। पर इस बार वो अंकल अकेले एक बैंच पर बैठे थे ।
तो उन्होंने ईशारे से मुझे अपनी ओर बुलाया ।यूं तो मां ने बचपन में क शई बार बता चुकी थी,
कि किसी भी अंजान से नहीं बोलना पर मैं थोड़ा बड़ा हो गया था- और उससे भी बड़ी बात –
उनकी वो मनमोहक मुस्कान ने मुझे उनकी ओर अपने-आप धक्का दे-दिया। मैं गया।
“हाँ !
नमस्ते अंकल ।”
क्या हुआ”
“नमस्ते बेटा”- फिर से !
उन्होंने पूछा – “तुम्हारा नाम क्या है?”
मैं:- “अंकल, वरून ।”
वो:- “क्या करते हो?”
मैं:- “अंकल अभी परीक्षा के दिन चल रहे है।”
वो: -“अच्छा । कौन- सी कक्षा की ?
मैं:- “बारहवी अंकल”।
वो:- “कितने पूरे हो चुके हैं ?
मैं:-“अंकल तीन”।
वो:-“कितने बाकि है?
मैं:- बस दो और रह रहे हैं।
वो:- अगल पेपर किस विषय का है ।
मैं:- ‘हिस्ट्री का’।
वो:- “फिर तो इस वक्त तुम्हें- अपनी पढ़ाई पर ध्यान देनी चाहिए। अच्छा खैर, तुम्हें हिस्ट्री बोरिंग नहीं लगती?”
मैं:- नहीं अंकल, बल्कि बड़ा अच्छा लगता है। और रही तैयारी कि बात यानिकि पढ़ाई की बात-तो दिन-भर वहीं करते हैं।
और रही पढ़ाई की बात तो दिन-भर वहीं करते हैं। बस थोड़ा मन करता है घूम आने को कुछ पल खुली हवा में, इसलिए आ-जाता हूं।
वो:- “पेपर के बाद क्या सोचा है?”
मैं:-‘सोच रहा हूँ । आई. टी. आई कर लूं। मेरे कक्षा के अधिक बच्चे वही ले रहे है । ”
वो:- हूँ। अच्छा है! पर औरों के कारण क्यों? तुम्हारा मन है – कि नही।
मैं:-“वो अंकल मेरा भी मन है।” बस इसलिए।
वो:-अगर तुम्हारा भी मन है -तो ठीक है। वर्ना बस इसलिए मत करना कि बाकि कर रहे है ।
मैं:- ठीक है अंकल। आपकी बात हमेशा याद रखूंगा।”अच्छा मैं थोडा़ अब पार्क के चक्कर लगा – के आता हूं।
जब तक आप बैठे रहिए। फिर मिलते है। बाय-बाय।
वो:- “अच्छा ठीक है।”
मैं वहां से छूटते ही पार्क के चक्कर लगाने – लगा। पार्क काफी बड़ा था- और मैं अकेले तो खुद-से बातें होने लगी।
ना जाने अनयासा मेरे मन में कहाँ से ख्याल आया ? कि मैं जो इतना बच-बच के रहता हूं- मैं जो ज्यादातर अकेले ही रहता है।
इसलिए, पार्क भी अकेले आया। वो बंदा कैसे इतने-सारे और बूढ़े अंकलों के बीच मैं सिर्फ उन्हीं के पास क्यों गया ?
और इसी की जवाब खोजते-खोजते मेरा पार्क का चक्कर पूरा हुआ और मैं वहां उनके पास आकर।
अच्छा अब मैं चलता हूँ।” मैं मुस्कुरा रहा था और वो भी। आज – से पहले में इतनी देर किसी भी अजनबी से बात नहीं कि थी।
पर वो मुझे बात करते वक्त अजनबी नही लगो ।
और इस प्रकार उनकी और मेरी एक नया संबंध बन गया खून का नहीं था पर फिर भी, एक दोस्त के जैसे ।
उस दिन मुझे समझ में आया। अपने होते नहीं है-👇👇
बनाय जाते हैं। कुछ वक्त देकर कुछ समझकर और कुछ मुस्कुरा कर और समझाकर !
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अपने बनाय जाते हैं
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ज़िन्दगी भर – ज़िन्दगी के लिए !