बदसूरत
काला रंग, छोटे कद-काठी का। वो बंदा था भिवंडी का।बचपन मे ज्यादा दोस्त नही।
बस वही दोस्त के नाम पर चाचा-चाची के बेटा-बेटी और एक स्कूल का दोस्त।
बस इतनी-सी थी उसकी यारो कि गलियाँ।वो अपनी गली मे भी ना पसंद किया जाता
और स्कूल मे भी उससे अच्छे से व्यवहार नही किया जाता।जैसे-तैसे बचपना बीता।और इसके अंदर ऋणात्मकमता का अंकुर सिंचा।
काम ढूंढने गया तो जल्दी काम नही मिला, शादी की बात आई तो जल्दी लड़की नही मिली।
इससे इसकी सोच मे और खोट आई।एक दिन यह एक गली से गुजर रहा था, तो टक्कराया कुछ लड़कियो के झुुंड से।
“छी! तोबा-तोबा, ना जाने कहाँ से आ-जाते है ऐसे लोग।और बाकि सहेलिया हाँ-हाँ-हाँ! करती हुई चली गई!”
यह बस उसके साथ यही होना चाहिए सोच के चला गया। यह उसकी जिंदगी मे पहली बार नही हुआ था, यह उसकी आदत थी।यह सिर झुकाए चुप-चाप चला गया। यह सिर झुकाए चुप-चाप चला गया।
बदसूरत यह तन से था पर मन से कौन? 🤔
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ज़िन्दगी भर – ज़िन्दगी के लिए !