फुस-फुसाना
मैं आज नानी गांव आया तो देखा कि सारी औरतें फुस-फुसा रही है। जोर-जोर से बात कोई-कोई ही करता था।
सारे फुस-फुसा के।मेरे को पहले-पहल लगा कि शांति बरकरार रखने के लिए कर रहे हैं।
मगर मां से पूछने पर पता चला कि अशांति के लिए फुस-फुसा के बात करते हैं।
क्योंकि एक दूसरे की कमियां ढूंढने के सिवाय कोई काम ही कहा था इनके पास।
सारे-सारा दिन जल्दी जल्दी काम निपटा अपने- अपने काम में लग जाते हैं।
वही फुसफुसाना। फुस-फुसाते वक्त यह समझते हैं कि ऐसा करने से बात भी किसी और को बता देंगे,
और सामने वाले को पता भी नहीं चलेगा।
मगर असलियत यह केवल क्षणिक मात्र ही होता है। और लंबे समय में यह बात आग की तरफ फैल ही जाती है।
और कौन दोषी है यह भी पता चल ही जाता है। और लड़ाई के साथ-साथ वह भी फसते हैं जो फुस-फुसाते है।
फुस-फुसाने से इतना फर्क तो अवश्य पड़ता है कि सामने वाले को कुछ समय के लिए कुछ पता भी नहीं चलता।
लेकिन बुराई यह है कि वह बात उस आदमी के कान में आकर जरूर पड़ता है।
जो ऊपरी शांति तो बरकरार रखता है मगर आंतरिक को हिलाकर रख देता है।
फुस-फसाने से राज- राज नहीं रहता बल्कि आज बचा रहता है मगर कल आवश्यक राख हो जाता है।
“फुस-फुसाना-राख कर रहा है समाज को-
परिवार को – प्यार को-
व्यापार को!”…❣️❣️❣️
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(फुस-फुसाना)
(फुस-फुसाना)
ज़िन्दगी भर – ज़िन्दगी के लिए !