पहला कदम
आसान नहीं होता पहला कदम –
हमारे विश्वास हमारी टाँगे पकड़ी ज़मी
पर दबी रहती है –
उन बसी-बसाई विश्वासों का खंडन
करना सरल काम नहीं होता –
रात को दिन – दिन को रात –
और न जाने कितने दिन और रात
बिन सोये बिताने पड़ते है ,
माँ-बाप भी कुछ असमंजस में –
निःसहाय प्रतीत होते है –
हमको ऐसे देखते है जैसे –
कोई पाप करने जा रहे हो |
घर-बाहर -अंदर सब बैचेन रहते है –
सबसे ज़्यादा हम खुद परेशान रहते है –
और ठीक इसी समय कभी ना –
भटकने वाला इश्क़ में मन –
प्रेम कथाएं लिखने को कहता है –
सही-गलत से फर्क पड़ना बंद हो –
जाता है इसको –
अंदर-ही-अंदर इंसान कई बार –
टूट चुका होता है –
पहला कदम अहम और सबसे मुश्किल
होता है |
पर अगर लक्ष्य सही हो –
तो फैसला लेना बनता है –
कदम उठाना बनता है |
टूटना बनता है –
चीखना बनता है –
चिल्लाना बनता है –
रोना बनता है – थकना बनता है –
पर डरना नहीं – रुकना नहीं –
क्युकी पहला कदम ज़रूरी होता है |
ज़िंदा तो सब है –
पर है सिर्फ वही –
जो सच में ज़िंदा है !…वरुण
——> चाँद <——
आसमां में लाखों तारे –
तारों का प्यारा कौन –
चाँद और कौन ?
चाँद मामा किसका –
कौन देखे है चाँद को –
हम और कौन |
न मानो , न जानो –
इसमें चाँद का जाता क्या है ?
तुम्ही मरते हो –
तुम ही तकते हो –
वो तुमको बुलाता थोड़ी है –
तुम ही छत्त पर जाते हो –
चाँद को निहारने !
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पहला कदम