ना-चाहना
मेरी मां चाउमिन- पिज्जा -हट और फास्ट फूड की बहुत बड़ी विरोधी।
के महिने में क्या! छः-छः महीने तक घर में कोई फास्ट फूड तो क्या उसका नाम तक किसी के होठों पर नहीं आता था ।
मगर हम तो छोटे थे और मेरी छोटी बहन मेरा मतलब सबसे छोटी वाली से
इतनी चंचल की चंचलता को सोचा ना पर जाए की हम दोंनों में से सबसे ज्यादा चंचल कौन है?
वह देखती किसी को बहार सड़क पर चौमिन- मिर्च-आलू-समोसा-अगेरा-वगेरा खाते हुए तो आ जाती एक जिद्द लेकर ।
उसके अभिलाषा सुन कर हमारे मुंह में भी पानी आ जता।
और यह तो सिरफ एक उदााहर था। दो-तीन और है जो मेरी माँ हमे उदाहरण के रूप मे देती है। उसमें से मेरी एक और मौसी की छोटी बेटी के बारे में बताती जिसका पेट इस वजह से खराब हो गया था क्योंकि वह घर का कम और बहार का ज्यादा खाती थी ।मगर एक शराबी को देखो लो। शरााबीे छोड़ो, मेेेरर पापा को ही देख लो।
मगर बात यहाँ ,इनकी नही है,बात है चाह कि।
जो आप से उसको करने या ना करने के कई वजह दे-देता है।इसलिए जिंदगी मे एक चाह जरूरी है, अब वो कैसी होनी चाहिए ये आप पर निर्भर करता है!
(धन्यवाद)
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4..अपनी संस्कृति को बचाना और मातृभाषा को जानना-उन पर गर्व करना जरूरी क्यों है?
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ज़िन्दगी भर – ज़िन्दगी के लिए !