डाकिया का पता
चिट्ठी – पत्रिकाओं का वो दौर –
जहाँ दूरसंचार के साधन के नाम
पर कलम और कागज़ पे दिल के जज्बात हुआ करते थे |
“ संदेशे आते है – हमे तड़पाते है , की चिट्ठी आती है – ये पूछे जाते है |
” या ‘खत’ हमने कभी देखा नहीं – वो डाकिया जो
भगवान के दूत कहलाया जाते थे , कभी जैसा मैंने किताबो में पढ़ा या फिल्मो में देखा है |
वो न जाने कहा चले गए |
डाकघर आज भी मौजूद है और संयोगवश वो डिब्बी भी देखने को मिल जाती है जिसे “लेटरबॉक्स” कहते है |
पर वो डाकिया नहीं दिखा आज-तक |
जो अनगिनत खातों को लोगो के गुप्त-से-गुप्त बातो को उतने ही विश्वास से ले – जाता था –
जितना विश्वास से उन चिट्ठियों को लेटरबॉक्स में वो संदेश ग्राही डालते थे |
पर अचानक आज ये मैं डाकिया – खत – वगैरा क्यों लेकर बैठ गया |
चलिए जानते है | दरासल हुआ ये की गांव से वो भी नानी गांव से एल. आई. सी.
का कोई चेक आने वाला था |
क्युकी हम तो गांव छोड़ प्रदेश आ-गए थे |
पर फिर भी चेक को तो आना था – क्युकी ₹ रूपए चीज़ ही ऐसी है |
तो माँ ने मुझे कहा की मामा को यहाँ का पता भेज दे |
सो मैंने जस -का-तस उसी समय भेज दिया |
पर आज -तक वो चेक हमारे पास नहीं पंहुचा और खबर मिली की वो वापस वहीं चला गया
– जहां से आया था यानि की एल. आई. सी. के ऑफिस|
पर ऐसा नहीं था की हमने प्रयास नहीं किया था |
किया था | अपने शहर के दो डाकघरों में जा कर पता किया तो |
एक डाकघर ने कहा चिट्ठिया यहाँ नहीं आती – डाकिया के घर जा कर पता करो |
अब डाकिया जिसे कभी देखा नहीं –
उसका घर वो बताने को तैयार नहीं थे क्योंकि उनको और भी काम था |
और मुझको उसके घर का पता नहीं था |
जिसके पास मैंने सुना है –
सबके घरों की पता रहता था |
डाकिया का पता अब पता नहीं था तो लौट आय डाकघर
से वापस क्युकी उनके पास चिट्टिया नहीं आती | मैं निराश वापस लौट आया |
उस दूत को याद करते हुए – जिसको फिल्मों और किताबों के सिवा कहीं देखा नहीं था – है |
डाकिया का पता |
———— *Meri Kitabe *——