टप-टप-टप
शांत अकेले में बैठा था, तो एक टप टप की आवाज ने मेरा ध्यान अपनी ओर खींचा।
यह आवाज मेरे कमरे के किचन में जो नल्का लगा है,
उसकी गिरती हुई एक बूंद का है।👇
नल से गिरती तो संयुक्त है और बड़े रफ्तार के साथ गिरती है। मगर जैसे ही उतनी ही रफ्तार से धरा से टकराती है तो बिखर जाती है।
और जब वह संयुक्त टूट कर बिखर जाती है।तब यह आवाज टप-टप-टप की पैदा होती है।👇
जो इस वक्त मुझे अपनी ओर आकर्षित कर रही है । अमूमन मेरे नल के से ऐसे ही टप-टप गिरते रहते हैं।
और जितनी आसानी से मैंने इसे अमूमन कहा है इतनी आसानी से मैं उसे इग्नोर कर देता हूं;
क्योंकि यह इसकी रोज की क्रिया है और मेरा विश्वास की यह एक-एक बूंद थोड़ी ना पूरा टंकी खाली करेगा।
मगर आज मेरे दिमाग में एक दूसरी ही खिचड़ी पक रही है। इसकी टप-टप-टप सुनके।
हमारा समाज- परिवार- प्यार ऐसा ही होता जा रहा है। जो ऐसे ही संयुक्त टंकी से निकलते जा रहे हैं।
किसी ने आकर ऊपर से नल का छूआ नहीं कि हम बहना शुरू हो जाते हैं।
और किसी के खोल कर वापस ढीला बंद कर देने से हम पूरी दिन-रात टप-टप-टप गिरते रहते हैं।
क्योंकि हमारा तो अपने ऊपर पानी की तरह कोई कंट्रोल तो है-ही नहीं। हमें जितनी जल्दी होता है
टंकी में संयुक्त होने की हम उससे भी कई गुना रफ्तार से उसे बाहर हो जाते हैं।
किसी बाह्य इंसान के सिर्फ स्पर्श मात्र से ही। उन्होंने ढीला बंद किया तो हम दिन-रात सिर्फ एक-एक करके गिरते रहेंगे।
इतनी रफ्तार में कि जैसे हम किसी जेल से आजाद हो गए। लेकिन जब वह बूंद उतनी ही रफ्तार से जमीनी हकीकत से टकराती है
तब-जब वह कुछ नहीं कर पाती, तब जब वह सिर्फ खत्म होने वाली होती है। बिखर रही होती है तब चिल्लाती है टप-टप-टप।
मगर वह चिल्लाना उसे रोक नहीं सकता विनिष्ट होने से क्योंकि वह खुद ही तो बाहर निकली थी।
किसी बाह्य के सिर्फ ढीला कर देने से। मगर दुख की बात यह है कि इसकी बिखड़ने की आवाज इसके बाद गिरने वालों को भी नहीं सुनाई पड़ती है।
तब तक-जब तक वह खुद उस धरा को ना छू लेती है। और अंत में वह भी बिखर के इधर-उधर
अलग अलग होकर छितरा जाती है समाप्त हो जाती है। और टंकी 0.1% खाली हो जाती है।
और हर-हर अगले पल होती रहती है जब तक पूरी तरह से वह भी खत्म नहीं हो जाती।
लेकिन हमारे घर का नल ढीला छोड़ा किसने है। हमने ही तो हमारे घर का नल का ढील बंद किया है।
और हमें या विश्वास है की यह टप-टप हमारी टंकी को खाली नहीं कर सकता।
और हम इसी ऐसे ही ढीला बंद कर इग्नोर कर देते हैं। जिसका खामियाजा तब भुगतना पड़ता है
जब प्यास लगी हो और पानी नहीं मिल रहा हो।
Quote for us:👇
इसलिए अपने टपकते नलो को थोड़ा कसके बंद करो। जल भी बचाओ-जीवन भी बचाओ और संयुक्त परिवार की संयुक्ता को भी बचाओ।
एक एक बूंद की कीमत है यह बात एक – एक बूंद के बिखर के खत्म होने से पहले समझो और समझाओ।
वरना बाद में पछतावा और फिर प्रस्ताव !
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