खाली बैठें हैं:- सरकार
गेरू। उत्तर प्रदेश (सियासत मसलो और रंगबाजी का शहर) में पैदा हुआ। दसवीं तक वहीं पढ़ा। 11वीं में पहुंचा दिल्ली।
जब यह सिर्फ सातवीं में था । यह पूरी तरह पक्का हो गया था पॉलिटिक्स के मामले में।
इसको पता था कि कौन चल रहा है-कौन नहीं ? कौन कितना काम कर रहा है? कौन नहीं?
किसको किस पार्टी में होना चाहिए किस पार्टी में नहीं।इन बातों पर यह लंबी और गहरी टिप्पणियां कर सकता था।
और उसके दोस्त भी इसी की तरह थे।
अभी दिल्ली पहुंचा था। नया शहर-नई दनिया नए लोग-नई परवरिश। नए दोस्त-नए अध्यापक,
पर टॉपिक घूम फिर के पॉलिटिक्स और सिर्फ पॉलिटिक्स पर आके ही टिकता।
कोई भी बात पर पालिटिक्स पर छिड़ जाती है- तो यह उस रंगमंच का नायक बन जाता।
12वीं पूरी हुई ।कॉलेज के लिए भोपाल चला गया। नया परिवेश-नया वेश- नई दृश्य-नई ताजगी।
पर बातें फिर घुम फिर कर सिर्फ पॉलिटिक्स और सिर्फ पॉलिटिक्स पर ही आके खत्म होती। कॉलेज खत्म ।
काम मिला मुश्किल से तो बोला सरकार कुछ नहीं करती। सरकार कर रही होती तो आज देश में इतनी बेरोजगारी नहीं होती।
सरकार सिर्फ वोट के समय काम में लगती है।
बाकी फिर सारी उम्र खाली बैठी रहती है। बाकी लोग अगल-बगल के हूं-ऊं-ऊं ।
ठीक कहा गेरु। सरकार ही कुछ नहीं करती, वर्ना हम पढ़े लिखे को ग्रेजुएट को – अफसर का पद नहीं मिलता।
सरकार करती ही- क्या है? हूं-ऊं-ऊं बाकी सब बोले गेरू के साथ। हां में हामी।
और टॉपिक पॉलिटिक्स सदा बहार रहता इनके बीच। चाहे प्रमोशन के साथ जगह कोई भी हो- लोग नए हो पर हूं-ऊं-ऊं होती।
कि ठीक कह रहा है- गुरु।
शादी हो गई। बच्चे हुए। परेशानी बढ़ी क्योंकि जिम्मेदारी बढ़ी। तो बोला सरकार को कुछ दिख नहीं रहा।
महंगाई दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है और सरकार खाली बैठी है। बच्चे इसके बड़े हो गए थे।
वह भी पॉलिटिक्स में रम गए थे। यह सिर्फ उन्हीं दिनों पर पॉलिटिक्स की बात नहीं कर पाया,
जिन दिनों इसके घर में किसी का तबीयत बिगड़ा और इसको- उसके चक्कर में इधर-उधर सारा दिन
बिना फुर्सत के या फुर्सत के साथ काम में लगना पड़ गया।
सिर्फ वही दिन वह पॉलिटिक्स की बात नहीं कर पाता वर्ना बात घूम फिर के मैच देखते वक्त-दोस्तों के साथ
गप्पे मारते वक्त-ऑफिस के डेक्स पर बैठे वक्त बात घूम फिरकर टॉपिक सिर्फ पॉलिटिक्स का आ ही जाता।
और जिस दिन यह मर रहा था उस दिन बात पॉलिटिक्स नहीं थी।
बात थी की
सरकार खाली नहीं बैठी- खाली मैं बैठा था।
पर क्या करें अब खाली हो जाने का समय आ गया था।
उसकी मृत्यु अस्पताल में एक बहुत बड़ी बीमारी की वजह से हुई थी।
पर इतने पैसे इनके पास नहीं था कि इलाज हो पाए।
पिता के अंतिम संस्कार के बाद कुछ दिनों के बाद बेटो ने बोला कि अगर सरकार ने हेल्थ लाइन की तरफ ध्यान
दिया होता तो पापा जैसे लाखों लोग बच जाते । सरकार खाली बैठी है। हूं-ऊं-ऊं-ऊं ठिक कहा तुमने।समें सरकार खाली बैठी है।
>>>>>>>Meri Kitabein <<<<<<<<<<
(खाली बैठें हैं:- सरकार)
(खाली बैठें हैं:- सरकार)
ज़िन्दगी भर – ज़िन्दगी के लिए !