कोहली:- एक दौर
धोनी-रोहित-अश्विन मेरे फेवरेट टीम इंडिया में । कोहली बिल्कुल तो नहीं मगर हां पसंद नहीं थे ।
एक शांत-कूल माइंडिड टीम का जो लड़ना जानती थी, मगर सुनाना नहीं। उसको सुनाना सिखाने वाला,
वह जिन्हें कभी कोई भी टीम कुछ भी बोल देती तो सुन लेने वाले। भले ही खेल से जवाब दे देने वाले।
मगर उन्हें बल्ले-गेंद के साथ-साथ आंखों में आंखें डाल कर, जुबान पर थोड़ी करवट रखकर लड़ना सिखा देने का वह शुरुआत।
जिसने एक शांत-सहनशील देश को आक्रामकता के साथ खेलना सिखाया। धोनी का उत्तराधिकारी धोनी के काम के विपरीत काम करने वाला।
कोहली! वो दौड़ जिसने फिके पड़ते क्रिकेट के सभी फाॅर्मेट में से एक टेस्ट का पिछड़ते जाने के सिलसिले को आगे लाने का।
यह दौर आसान नहीं था धोनी के दीवानों के देश का उन पर कोहली का रंग चढ़ना आसान कहा था।
मगर सब हुआ और अंत पर भी पहुंचा। मगर हमने क्या सीखा? बदलना तो प्रकृति है।
मगर कुछ ना सीखना हमारी बेवकूफी होगी। हमने यह सीखा की विदाई दुखदाई होता है।
अरे! मजाक मत कर यार। यह तो पहले ही पढ़ लिया। तो दूसरी बात:-
अंपायरों ने डांट लगाया। पूरे देश ने इस पर विरोध जताया। मगर पूरे देश को जवाब देना; चाहे जमीन किसी की भी हो,
खुद पर विश्वास करना सीख फिर तुझे नहीं रोक सकता है। कभी नहीं !
बस खुद के साथ खड़े रहना सीख!
ज़िन्दगी भर – ज़िन्दगी के लिए !