कलयुग एक पर्दा मात्र है !
लोग कहते हैं कि कलयुग है –
सही कहते हैं- वह कलयुग में जी रहे हैं !
कलयुग तब नहीं आया| जब युग परिवर्तन हुआ | कलयुग इतना आतुर है – था कि उसका खुद पर ही नियंत्रण नहीं था -ना है|
तो बताओ जिसका खुद पर नियंत्रण नहीं वह एक जगह पर बस कैसे सकता है?
इतने लंबे समय के लिए| और रावण , कंस , दुर्योधन आदि सबको अपने पर नियंत्रण नहीं था|
तो वह जिए कितने साल ? तो सवाल तो बनता है की यह कलयुग जो इतना अनियंत्रित –
अनियमित – इतने सालों से है और ना जाने कितने सालों चलेगा ? पर जैसे बच्चे अस्थिर होते हैं – एक जगह टिकते नहीं|
तो यह कलयुग अपने प्रकृति के विरुद्ध टिका कैसे है!
तो जवाब इसका काफी सरल और सहज है | वो ऐसे टिका है की जैसे नदियाँ जो एक जगह नहीं टिकती – हमेशा बहती रहती है|
कैसे एक जगह से – दूसरे जगह यात्रा करने पर भी खत्म नहीं होती| बल्कि जितनी दूर होती जाती है –
उतना ही विशाल बन जाती है | ये कैसे ? ये ऐसे की नदी जहाँ से निकलती है – वो सोता हमेशा रिसता रहता है |
और अन्य स्रोतों से पिघल – पिघल कर आने वाले जलों से मिलकर वो नदी और विशाल और सदाबहार कहलाती है |
पर नदी भी सिर्फ कुछ ही राज्यों से गुजरती है| पर ये कलयुग जो इतना अस्थिर – अनियंत्रित- बेकाबू है-तभी तो कलयुग है !
टिका कैसे है ? इसके लिए इसके लिए कौन रिस रहा है ? मिल कौन रहा है इसमें? यह सवाल उतना कठिन नहीं है|
और इनका जवाब सिर्फ इतना है -कलयुग चल रहा है – कुछ भी हो सकता है | कहने वाले और मानने वाले हैं!
ये वो असंख्य है जिन्हें अपनी इंद्रियों पर काबू नहीं है| सिर्फ इन्ही के कारण कलयुग जो की सिर्फ एक पर्दा मात्र है|
अभी तक है और ना जाने कब तक रहेगा |पर पर्दे की औकात इतनी नहीं होती की वो आग लगने से बचा ले घर को और उसमें रहने वाले को!
हर युग एक पर्दा मात्र है-
जिसके पीछे लोग अभिनय करते हैं!
और कलयुग भी एक पर्दा मात्र है –
जिसके पीछे अनियंत्रित -बेकाबू इन्द्रियों वाले
अभिनय कर रहे हैं ! …..
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कलयुग एक पर्दा मात्र है !