काफी देर तक –
नहीं कर सकते !
आलस पन से छुटकारा हिंदी कहानी
रात की शिफ्ट – दो बजे छुट्टी | माँ की परेशानी – और मैं ज़िद्दी | काफी दुबले-पतले होने लगा थे |
और माँ को तो आप सब जानते है | पर मुझे यह फर्क नहीं पड़ता था |
क्युकी सपने मेरे खुराक (प्लान ) हो चुके थे |
और उन्ही प्लान की वजह से मैं जॉब पर भी जा रहा था |
खैर माँ की और मेरी बात कभी ख़तम नहीं होगी | अपने पर लौटते है – अपने पर भी नहीं ,
जिसकी बात करनी है – उसकी करते है | रात की शिफ्ट और दिन में सोना |
दिन में उठता खुद से तो – उठते – ना – उठते चार – साढ़े चार बजे उठते | तो माँ ने एक युक्ति
लगाई और पड़ोस की आंटी को बोल दिया की मुझे वो बारह बजे तक उठा दे |
वो भी किस लिए
की पांच बजे मुझे जाना होता था –
और ठीक उससे पहले मैं दो बार खा चूका हूँ |
आंटी उठती तो उठ जाता – खाना खाता – कुछ यूटूब देखता – कुछ काम करता |
फिर बिस्तर पर पड़ जाता और आलस इतना होता की मैं उठते – उठते चार बजे ही उठता |
और आज -कल यह मेरी आदत – ऐसी आदत है – जो मुझे मैं कितनी भी कोशिश कर
लू पर ये मुझ पर विजय प्राप्त कर ही लेती है |
मैं आंटी के उठाने पर उठ जाता – पर फिर वापस बिस्तर पर पड़ जाता |
तो यह कल की ही बात है – आंटी ने आके उठा दिया 11 :45 पर उठा दिया
पर दो बजे तक जगा फिर आलस ने ऐसा घेरा की मैं मदहोश हो गया –
आँखें चिपकने लगी – मैं सो गया |
लैपटॉप ऑन रहा – वीडियो चलता रहा – पर मैं अपने आलस के बस में पड़ा रहा |
लैपटॉप की बैटरी मेरी इतनी लो हो चुकी थी की डेंजर जोन का प्रतिक बन गया था |
मेरे विफई का ऑन रहा – लाइट – मीटर सब बढ़ रहे थे |सब बह रहे थे |
पर मुझे कुछ भी फर्क नहीं पड़ रहा था |
क्युकी उस समय मुझ मे चेतना नहीं थी – सिर्फ – और – सिर्फ मदहोशी थी – मुझ पर छाई हुई |
मैं उठता – मुश्किल से खड़ा होता – पर फिर वही बिस्तर पर निंद्रा मुझ पर बाज़ी मार जाती –
और मैं सोने फिर लग जाता |
न तन स्वस्थ था – न मन चाह रहा था |
पर जैसे ही चार बजे से घड़ी ऊपर उठी नहीं की –
इतना गहरा – इतना मादकत –
जहां न तन स्वस्थ था – न मन – वो सब एक साइड रखी – और मैं उठ खड़ा हुआ –
पहले जैसा नहीं |
वो आलसी तन-मन न जाने कहा चला गया – जो मुझ पर काबू पा चुकी थी |
मैं उठा अपने कपडे बदले – मुँह पर पानी डाली – और तैयार हो गया |
तब समझ आई की जब एक समय सीमा तय कर दी जाय – तो उस सीमा के डोर के बाद आप-अपनी
आलसपन – निंद्रा को लेकर नहीं जा सकते | चाहे कितना भी आलसी और मादकत मन क्यों न हो |
क्युकी समय कभी रूकती नहीं – और सीमा आलसपन को आगे बढ़ने नहीं देता |
इसलिए आज आप से एक बात कहना चाहूंगा : –
की “हम सब आराम पसंद – लोग है-
हमें काम नहीं पसंद –
और अगर काम पूर्ण करना है तो –
समय सीमा तय करो – वर्ण ये आराम पसंद देह तुम्हे –
कभी चेतना से जीने नहीं देगा |” ….. वरुण
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