स्वर्ग से बहिष्कृत एक राज्य !
स्वर्ग से बहिष्कृत एक राज्य, जो स्वर्ग से निकाला निकाल दिया गया हो |
नहीं ! मैं नर्क की बात नहीं कर रहा |
क्योंकि स्वर्ग से बहिष्कृत हो तो क्या वह नरक हो जाएगा |
यानी कि आपने यह काफी प्रसिद्ध लाइन तो सुनी ही होगी कि,
‘ मेरे सही होने के लिए -तुम्हारा गलत होना जरूरी नहीं है |’
तो ठीक ऐसे ही स्वर्ग से निकाले जाने का मतलब नर्क नहीं |
नर्क अपनी जगह पर है और स्वर्ग अपनी |
बस यह जो स्वर्ग से निकाला गया है| वह यह अपनी धरती है |
जो ना -ही स्वर्ग है और ना ही नरक | यानि की ना ही बुरा है और ना ही अच्छा |
यह हमारी पृथ्वी है | पर इसे इतना बड़ा दंड किस अपराध का मिला | जो इसे स्वर्ग से बहिष्कृत करना पड़ा |
दरअसल यह बात उस वक्त की है जब यह दृश्यम – दृश्य हुआ | और स्वर्ग और नर्क उजागर हुए |
और जैसा कि हमारी इंसानी प्रवृत्ति है जो अच्छा-सुंदर और भव्य लगे उसको हम पाना चाहते हैं |
वो भी उसी के साथ उजागर हुई | तो नर्क का राजा मान लो नरकासुर स्वर्ग को जीतना चाहता था |
क्योंकि स्वर्ग-स्वर्ग था और है ठीक वैसे ही जैसे की नर्क था और है |
तो नरकासुर ने काफी बार स्वर्ग पर हमला किया | पर हर बार देवों के हाथों मुंह की खानी पड़ी |
पर लालसा तो लालसा होती है| माया बड़ी मोहिनी होती है|
नरकासुर ने स्वर्ग पाने के लिए परम पिता ब्रह्मा का योग करने लगा|
तपस्या करने बैठा तो हजारों वर्ष बीत गए| उसकी इतने वर्षों की तपस्या ने ब्रह्मा को मजबूर कर दिया |
नरकासुर को यह वरदान देने के लिए कि देवता – यक्ष उसे मार नहीं सकते |
पर वह बंदी बनाया जा सकता है| तो वह स्वर्ग पर सीधा-सीधा हमला नहीं करता है |
बल्कि अपने निवासियों को अच्छाई की सूरत में डाल स्वर्ग भेजा करता |
पर सिर्फ यही ऐसा नहीं करता भगवान भी अपने अच्छे लोग नर्क भेजा करते|
इसे ही ख़ुफ़िया एजेंसी कहते हैं|
पर जब दोनों पक्ष एक-दूसरे में मिले थे | तो ये राज कब – तक राज रहता |
ये उस दिन खुल गया जिस दिन इंद्र और नरकासुर आपस में टकराय |
नरकासुर को मारना आसान नहीं था पर उसे बंधी तो बनाया जा सकता था |
तो देवो ने नरकासुर को बंदी बना लिया |
और इंद्र और नरकासुर को उस वक्त को पता चला कि उसके कुछ साथी स्वर्ग लोग में
और कुछ इंद्र के नर्क लोक में है | तो इंद्र ने जिन्हें नर्क लोक भेजा था |
उन्हें जीत की जश्न में शामिल किया पर जश्न की रात किसी दगाबाज ने नरकासुर का बंधन से मुक्त कर दिया |
अब यह किसने किया इसकी पड़ताल हुई तो पता चला यह उन्हीं में से कुछ बंदे थे जिन्हें स्वर्ग लोक से नरक लोक भेजा गया था |
जहां वह काफी साल रहे और स्वर्ग से ज्यादा ऊंची गद्दी और सत्ता पर बैठकर मौज उड़ाते थे |
जिसके कारण संगती ने स्वर्ग लोक के खुफिया लोगों को नरकासुर ने नर्क लोक का राजा बना दिया |
छोटे कस्बे और राज्य का | जो उन्हें स्वर्ग में भी नहीं मिला था |
तो उन लोगों ने नरकासुर को पूरे नर्क लोक के लालच में उसे रिहा कर दिया |
और जैसे संगति का असर स्वर्ग वासियों पर हुआ तो – वैसे ही नर्क वासियों पर भी हुआ |
संगत का असर ही ऐसा है |
और वह भी इतने लंबे वर्षों तक रहने पर कैसे अछूते रहते |
तो उन्होंने इंद्र को नरकासुर की जगह बता दी और इंद्र दोबारा अपनी सेना लेकर वहां पहुंचे तो पता चला नरकासुर कहीं और लुप्त हो गया |
नरकासुर नर्क लौट आया और इन्द्र स्वर्ग | पर दोनों अस्थिर थे क्योंकि दोनों के राज यहां-वहां भटक रहे थे |
स्वर्ग और नरक लोक में मरे हुए को मार नहीं सकते थे|
तो इंद्र और नरकासुर दोनों पहुंचे परमपिता ब्रह्मा के पास और उपाय यह निकाला गया कि
जितने लोग गए थे स्वर्ग और नर्क लोक उन्हें और उनके सारे वंश को स्वर्ग और नरक से अलग भूमि का टुकड़ा करो और उन्हें प्रदान करो |
जिसमें हुआ यह कि ब्रह्मा ने दोनों स्वर्ग से बहिष्कृत और नर्क के भागों को जोड़कर उसे अच्छाई और बुराई रहित कर दिया |
और यह वरदान दिया कि जो जैसा करेगा उसी के अनुसार स्वर्ग और नरक मिलेगा |
इसलिए यह पृथ्वी ना स्वर्ग और ना ही नरक है |
पर ये थे तो इंद्र और नरकासुर का ही |
तो नरकासुर अपनी सेना बढ़ाना चाह रहा है और इंद्र अपनी |
इसलियी यहाँ राम की अयोधया भी है और रावण की लंका भी |
हस्तिनापुर में पांडव भी है और कौरव भी |
पर यह पृथवी न तो बुरी है और ना -ही अच्छी | यह सिर्फ कर्म क्षेत्र है पांडवो का भी और कौरवों का भी |
यह स्वर्ग से बहिस्कृत पृथवी है पर नरक नहीं |
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