खुदा : हिंदी कविता !
की दर्द – ए – वफ़ा भूल गए –
तेरे घर का पता भूल गए –
और जिसे देखने में उम्र गुजरी थी इक –
ना -जाने वो कब से खुदा बन गए |
और हां ;
है लोग कई अभी – भी दुनिया में
मगर !
खुदा ही अच्छा लगता है – मांगता है –
इस दुनिया में जनाब ;
और
यही इक खता – हर रिश्तो को
तोड़ गई –
पास वाले अच्छे नहीं –
जो अच्छे है-वो पास नहीं !
जीने की ललक !
दर्द से से गुजरे तो जमाना भूल गए-
हम ऐसे लूटे कि हम मुस्कुराना भूल गए –
साथ थे बहुत मगर अफसाना भूल गए –
इश्क में डूबे तो समंदर का किनारा भूल गए-
किनारे पर पहुंचे तो गहराई भूल गए –
बड़ा अजीब दौर था – गुजरती रही जितना –
उतना ही जीने की ललक कम हुई!
जज़्बात – खत -और – डाकिया !
वो दूरसंचार का ज़माना साहब –
जहां दिल की जज़्बातो को –
कागज पर कलम से उकेरा जाता था –
इस विश्वास से उसे मोड़कर – चूमकर-
अपने शहर का स्टांप लगा कर –
उनके अपनों – अपनों के पास भेजा जाता था –
और ऊपर से वो डाकिया जो उन्हें –
जस का तस निकालता –
और बिना खोलें – बिना पढ़े-
एक की दिल की बात दूसरे (जिसके लिए) ,
तक बिना किसी स्क्रीनशॉट के भेजता था –
यह हम कहां समझेंगे के प्रेम के ढोंगी !
——-^Meri Kitabe^———
1.हाथ जोड़ ली – और शक्ति छोड दी : समझ ज़रूरी है! (Hindi Edition) Kindle Edition
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