साथ निभाने वाले लोग यहां के
मैंने बोला कि मैं गांव जा रहा हूं मुझे छूट्टी चाहिए तो बोला गया ठिक है जाओ।
मगर प्रिंसिपल से पूछकर जाना।
तो प्रिंसिपल से इजाजत मिल गया इस शर्त पर की जैसे ही कक्षा इंचार्ज मैसेज करेंगी
वैसे ही वापस पकड़कर चले-आना।
और हम चले आय ट्रेन पकड़ के।
और मैं खुशी-खुशी ट्रेन में बैठ गया। मगर मेरी ट्रेन ने अभी-तक एक-भी स्टेशन पार नही किया था कि मैसेज आ-गया।
कि कोई कहीं नहीं जायेगा। अब क्या कहना ये हमारी किस्मत है जो ऐसी है(जैसे कि अधिकांश लोग कहते हैं) या लोगों का स्वभाव।
पक्का तो पता नहीं किसका दोष है किस्मत की या लोगों कि क्योंकि दोनों मेरी नहीं है। और किस्मत पर हमारा कोई ज़ोर नहीं है।
मगर इस उम्र तक इतना तो जान ही गए हैं उस पुरानी कहावत को कि “जो तन बिती-सो तन जानी।”
और पराया तन बने बड़ा ज्ञानी। खैर छोड़ो ना इसमें किस्मत का दोष हैं ना ही किसी और का।
यह जिंदगी है यह अपने हिसाब से चलती है ना कि हमारे मुताबिक मगर एक चीज हमारे मुताबिक ही चलतीं है वो है अपना शरीर।
किस्मत कैसी भी हो आप के फैसले आपके रास्ते तय करतें हैं। क्योंकि हमेशा – हर जगह दो रास्ते होते हैं एक लड़ो दूसरा भागों।
और इसका फ़ैसला करने का हक किस्मत तो छोड़ो जिंदगी भी नहीं छिन सकतीं हैं आप-से।
जैसे कि अभी-मैं मैडम कि बात को इग्नोर कर छूट्टी ले रखा हूं। मगर यह मेरा हक है और मेरा ही फैसला।
किस्मत अपने भरोसे और हम और हमारे फैसले हमारे भरोसे।
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(साथ निभाने वाले लोग यहां के)
(साथ निभाने वाले लोग यहां के)
ज़िन्दगी भर – ज़िन्दगी के लिए !