पता- लापता होने के बाद हुआ
एक वक्त वो भी था – जब हम स्कूल ना – जाने के लिए कई बहाने बनाते थे- आज एक वक्त यह भी आया-चेहरे मुस्कुरा रहे थे।
पर अंदर से हम सब-रो रहे थे। कुछ तो अंदर के संग-संग बाहर से भी रो पड़े। यह स्कूल का आखिरी दिन था।
दिल हमारे सीने में भी थी और है पर रोय नहीं-पर इसका मतलब यह बिल्कुल भी नहीं कि उन 12 सालों की यादों
को हम याद ना कर रहे हो या उनमें उतनी ताकत ना थी कि हमें ना रूला सके।पर अंदर से रो रहे थे और यह डर था
कि अंदर कि नमीं कहीं बाहर ओश ना बन जाए। पर बना नहीं और मर्द जाति की छाती ऊंची की ऊंची रही।
पर हम अंदर से टूटे जरूर थे।
उस वक्त से इस वक्त तक का सफर छोटा नहीं था। थे कई रंगमंच और हम उसके खिलौने।
खिलौने जैसे मैंने कहा-हम यही मानते थे कि स्कूल एक कैद है यार! जहां रोज-रोज आना पड़ता है-
जाना पड़ता है। टीचर्स के हाथों के नीचे दबाया जाता है। डर के हमको रहना सिखाया जाता है।
12 साल से जिसको जहर समझा था जब उसे छोड़ने का वक्त आया तो वह पल बिछड़ने का जहर लगने लगा था।
जिसको कैद समझा उससे रिहा होने का समय :- सजा-ए-मौत लगा। तब समझ में आया जिंदगी ऐसे ही है :-
हैं 👉 सीधी-सादी पर हम है ना इसके रोज-रोज के स्टूडेंट इसलिए यह हमें बोझ लगती है।
जैसे हमें अ से अनार वाली कक्षा से अध्यापक के सामने मजाक करने वाले पलों तक रोज आते-जाते लगता था।
पर जब अलविदा कहने का वक्त आता है ना – तब लगता है – क्यों जा रहे हैं यार!
वो टेंशन ही सही थी- वो लड़ाई ही सही थी- वो अध्यापक के डंडो से पीटना ही सही था -काश ना जाते, तो अच्छा होता।
पर क्या करे? हमारी ही तो इतनी सालों कि मन्नत होती है –
जिसे बदुआ समझ रहे होते हैं- वो असल में दुआ थी – यह तब समझ में तब आती है-
जब अलविदा कहने का वक्त आता है। और हम लाचार जब ना चाहते हुए भी मुस्कुरात है ! क्या करे ?
यही तो जिंदगी है:-होती है- तो कद्र नही- जाती है- तो छोड़ा नहीं जाता ।
यार, हम इंसान ऐसे क्यों है ? पता नहीं!🥀
पर एक पते कि बात बताऊँ:-👇
जो अभी है- ना चाहे-जैसा भी है-जिंदगी है- जो पता नहीं दुबारा मिले या ना मिले।
इसलिए इसको अंदर ज्यादा जीने की बजाय सच में इसमें जीना सीखों ना ।
कैद जिसे समझते रहे उम्रभर – उम्रभर आई तो पता चला इसे ही जिंदगी कहते हैं!💐💐💐👇
हमने बस पत्थरों पर ध्यान दिया – रोड़ों पर- जो रास्ते मे रुकवाट बन के आई थी-
जबकि हमें तो नदी बनना चाहिए था – कोमल-तरल पर मार्ग ना भटको वाली –
पर्वत का सीना चीड़ कर उसका – बालू बनाने वाली। जो रास्ते में आय उसको ही माध्यम बनाने वाली।
हम बनाए तो गए थे इंसान गलतियों के पुतले पर ना जाने हम समझदार कब बन गए।
और हमें गलती करना गलत लगने लगा और गलत करना- सही! पता ही नहीं चला यार।
मैं तो भूल ही गया
हमें तो पता-लापता होने के बाद ही चलता है।
हम इंसान जो ठहरे। इंसान जनाब!
और एक बात बताऊं हम-भी इंसानी है। अभी-भी हम जी रहे हैं।
अभी-भी वक्त है- हमारे हाथ में। मरे नहीं है- सांसें चल रही है।
*******Meri Kitabein *******
*******Meri Kitabein *******
(पता- लापता होने के बाद हुआ)
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ज़िन्दगी भर – ज़िन्दगी के लिए !
ज़िन्दगी भर – ज़िन्दगी के लिए !