दो-चार गज की दूरियां
रात को निकले थे कि, रास्ते में कहीं भटक गए।रात जैसे काली होती है-वैसे ही काली और रहस्यमई शांति थी।
रमेश अपनी मासूका के साथ था।तो भटकने का भी उसे कोई ऐतराज ना था, नहीं उसकी मासूका को ही।
वो एकदम घोर अंधेरे में। वो चुपचाप एक-दूसरे की आंखों में झांक रहे थे।👇
तभी उसकी मासूका ने एक सवाल पूछा,” कि रमेश तुम मुझसे कितना प्यार करते हो?” सवाल वही घिसा-पिटा था।
मगर था बहुत महत्वपूर्ण। क्योंकि सवाल माशूका ने पूछा था। रमेश ने मुस्कुराया और बोला बहुत, इतना कि तुम्हें बता नहीं सकता।
बहुत यानी कितना? इतना जितना कि समुद्र की गहराई है। समुद्र की गहराई। बस उतनी ही।
उसका भी तो कोई-न-कोई तल तो होता ही है। इसका मतलब कि तुम मुझसे बस एक हद तक ही प्यार करते हो। फिर जाओ मैं तुम स नहीं बोल रही।👇
रमेश लगा मनाने,” अरे! बाबा मैं तुम्हें कैसे बताऊं तुम मेरे लिए कितने जरूरी हो!”
जब-जब मैं नहीं देखता तुम्हें मुझे बेचैनी सी होने लगती है। तो इसे सुन उसकी मासूका बोली,
“सच्ची! ओ-ऽ-ऽ-ऽ मेरा बाबू! यह कह उसकी मासूका गले लगा लेती है।👇
उसे लगता है कि वह सफल हो गया।मगर कुछ सालों में उनके प्यार में दराड़ आ जाता है। और कोई सीमा ना होने के कारण वह बेपनाह प्यार उसे एक समुद्र की तल क गहराई को बता देती है। मगर अफसोस उसको तल का पता नहीं था तो वह समंदर के ऊपर ही तैर रहा था बिना सांसों के। मरने से पहले उसे समुद्र का तल तो मिल जाता है, मगर अफसोस वह प्यार नहीं, जिसकी कोई सीमा नहीं थी।
प्यार करो-व्यापार करो ,मगर एक लिहाज में करो। बेपनाह प्यार -बेपनाह दर्द भी दे सकता है। इसीलिए किसी पर ज्यादा डिपेंडेंट होने से अच्छा है कि हम उनके और अपने बीच में एक रेखा बनाकर रखे वह रेखा लक्ष्मण रेखा का काम करेगी। मगर सावधानी सीता को ही रखनी पड़ेगी। वर्ना रावन तो बाबा था-है और बाबा ही रहेगा। और ज्यादा करीब आने पर रावण बन जाएगा।
सिर्फ दोस्तों पर ही डिपेंडेंट ना रहे- दुश्मनों को भी इस्तेमाल करना सिखों!
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(दो-चार गज की दूरियां)
ज़िन्दगी भर – ज़िन्दगी के लिए !