इंतजार 😞👀
इंतजार 😞👀
वक्त बितते जा रहा है, – आशा मरती जा रही- उत्साह मेरा ठंडा पड़ता जा रहा है।
वैसे तो मैं बड़ा समझदार हूँ – पर हूं तो इंसान ही ये मुझे आज कुछ ज्यादा ही बारीकी से अनुभव हुआ।
हुआ यह कि कल मेरे एक करीबी दोस्त का फोन आया। इस विश्वास के साथ कि कल तुझे(यानिकि मुझे) जॉब लगा लग जाएगी।
मैं तुझे कल लेने आऊंगा – तेरे घर। और दोनों चलेंगे फिर एक साथ काम की दहलीज पर दरवाजा खटखटाने।
मैं बहुत खुश हुआ क्योंकि मैं काफी दिनों से काम की खोज कर रहा हूं।
मिल रही है जो – मुझे वह पसंद नहीं है और जो पसंद है वो मिल नहीं रही।
तो कल रात मैं इस आश के साथ सोया कि कल मैं इंटरव्यू देने जाऊंगा और काम लग जाएगा।
जगा भी इस उम्मीद के साथ। फ्रेश हुआ – नहाया, जैसे मर्जी वैसे रहने वाला मैं आज मैचिंग-मैचिंग कपड़ा पहना –
बाल संवारे एक बार नहीं दो-तीन बार खाना खाया। डाक्यूमेंट्स ढूंढे – पैसे निकाल कर ले आया।
सब कुछ कर लिया और फिर मैं बड़ी शिद्दत से इंतजार करने लगा।
एक बार तो पहले वक्त नहीं कट रहा था और जब वह मुझे लेने आने वाला था।
वह वक्त के पास आया तो जल्दी-जल्दी बीतने लगा। मैंने कॉल लगाया पर कॉल लगा नहीं एक बार नहीं 2 बार लगाया ।
पता नहीं मेरे फोन की गलती थी शायद पर फोन लगा नहीं- मैंने उसका घर देखा नहीं था – ऑफिस का पता नहीं था।
और मैं इंतजार कर रहा था क्योंकि जितने बजे ऑफिस खुलता है। अभी उसका वक्त हुआ नहीं था।
मेरा इंतजार अब तक सांत्वना में बदल गया था। मुझे लगा जरूर वह कहीं-किसी काम में उलझ गया होगा।
क्योंकि उसके पास घर के बहुत जिम्मे होते हैं। अभी तक पता नहीं वो क्यों नहीं आया – ना उसका फोन।
पर इतना समझ में आ-गया कि कुछ करने के लिए इंतजार और किसी के साथ की जरूरत नहीं होती है।
बस जरूरत होती है तो जरूर्त करने की और खुद का साथ देने की बिना इंतजार किए काम करने की।
क्योंकि जिंदगी और वक्त किसी का इंतजार नहीं करते ना ही किसी के भरोसे से उत्साहित –
निरूत्साहित होते हैं। अकेले होते हैं अकेले चलते हैं साथ मिल गया तो अपना-पराया बना लेते हैं।
61 पर किसी का इंतजार नहीं करते – ना रुकते हैं। और यह बात हमेशा याद रखूंगा
भरोसा भले ही कितना भी कर लूं पर यकीन सिर्फ अपने आप पर रखूंगा। वक्त बीत चुका है।
अब वो आया भी तो फायदा नहीं होगा क्योंकि मेरा उत्साह और ऑफिस दोनों का वक्त बीत चुका है।
अब इंतजार उसका नहीं बस अपनी खुद की शुरुआत की है।
क्योंकि अपने कदमों ही रास्तों के फासले – तय होते हैं – संग वाले तो बस मन बहलाने के लिए होते हैं।
तो फिर इंतजार कैसा ? निकलो सफर पर। सच कहता हूं कड़ी धूप हो –
मूसलाधार बारिश हो या हो बेजान सड़क पर तुम कभी अकेले नहीं होगे
क्योंकि सफर पर निकले हुए को ड्राइवर जरूर मिल जाता है।
इंतजार करने वालों को हर गंतव्य जो चाहते हैं नहीं मिलता पर चलने वालों के पैरों तले सारा जहां होता है।।
इसलिए मैं इंतजार नहीं कर रहा । बस-अब खुद पर और ज्यादा भरोसा हो
और खुद के साथ देने की हिम्मत और बढ़ गई। अब सफर तय करूंगा किसी के सहारे या
किसी के इंतजार में नहीं खुद के सहारे – खुद के लिए – खुद के संग। क्योंकि वह मुझे चाहिए – किसी और को नहीं।
( पर दोस्त आया। काफी देर बाद आया और लेकर भी गया। काम भी मिला।
पर मेरी पसंद का नहीं – इसलिए मैंने मना कर दिया ।
इससे ये भी पता चलता है कि हर कोई झूठा नहीं होता।
आप भरोसा कर सकते हैं क्योंकि हम अभी-भी इंसान ही है।
पर हमेशा याद रहे इंतजार नहीं करना – जब तक पक्का ना दोनों तरफ से इकरार हो।
शुरुआत अपने कदमों से करना भरोसा कर सकते हो पर यकीन अपने आप पर करना)
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