पता- लापता होने के बाद हुआ
एक वक्त वो भी था – जब हम स्कूल ना – जाने के लिए कई बहाने बनाते थे- आज एक वक्त यह भी आया-चेहरे मुस्कुरा रहे थे।
पर अंदर से हम सब-रो रहे थे। कुछ तो अंदर के संग-संग बाहर से भी रो पड़े। यह स्कूल का आखिरी दिन था।
दिल हमारे सीने में भी थी और है पर रोय नहीं-पर इसका मतलब यह बिल्कुल भी नहीं कि उन 12 सालों की यादों
को हम याद ना कर रहे हो या उनमें उतनी ताकत ना थी कि हमें ना रूला सके।पर अंदर से रो रहे थे और यह डर था
कि अंदर कि नमीं कहीं बाहर ओश ना बन जाए। पर बना नहीं और मर्द जाति की छाती ऊंची की ऊंची रही।
पर हम अंदर से टूटे जरूर थे।
हैं 👉 सीधी-सादी पर हम है ना इसके रोज-रोज के स्टूडेंट इसलिए यह हमें बोझ लगती है।
जैसे हमें अ से अनार वाली कक्षा से अध्यापक के सामने मजाक करने वाले पलों तक रोज आते-जाते लगता था।
यही तो जिंदगी है:-होती है- तो कद्र नही- जाती है- तो छोड़ा नहीं जाता ।
हमें तो पता-लापता होने के बाद ही चलता है।
ज़िन्दगी भर – ज़िन्दगी के लिए !