भ्रम
मेरा एक दोस्त अपने परिवार वालों के साथ गाँव जा रहा था। क्योंकि किसी की शादी थी
और सबसे ज्यादा जरूरी उनका जो घर था। उसके पूजा के लिए । तो वो गांव पहुंचा।
शादी में गया और जब शादी हो गई तो अपने सबसे ज्यादा जरूरी काम ।
घर की पूजा कराने के बैठे – जिसके लिए वह गए थे। तो जो पूजा कराने आए थे।
वह कुछ मंत्र पढ़े – रात के 12:00 बजे थे। कमरे में अंधेरा था।
सिर्फ एक दीपक की लौ के अलावा – पंडित कुछ देर बात कर।
मेरे दोस्त के परिवार वाले को बताता है कि तुम्हारे घर के चार पूर्वज दो पुरूष –
दो स्त्रियां बंधक बनी हुई है इस घर में। क्योंकि उनके कुछ कर्म बुरे थे।
इसलिए जब-तक घर की पूजा नहीं होती – भूतों को भगा नहीं दिया जाता।
जब-तक इनको शांति नहीं मिल जाता तब – तक आपके घर में कभी खुशहाली नहीं आ सकती ।
हां! वह बताता भी था – कि भाई मेरे परिवार में इतने लोग कमाते हैं,
पापा की सारी सब्जियां भी बिक जाती हैं, पर फिर भी पैसों का पता ही नहीं चलता कहां गए ।
लगता है हमें अपने घर की पूजा करवानी होगी ।
तो जब यह बात उसके पापा-मम्मी और बड़ों ने सुना तो राजी हो गए।
फिर बाबा ने अगले दिन एक बड़ी पूजा घर में करवाई उत्तर- दक्षिण-पूर्व-पश्चिम
के भूतों को भगाने के लिए। तो इसमें भूतों ने बकरे की बलि मांगी – शराब मांगी।
दक्षिण की बहुत सबसे ज्यादा ताकतवर थी। वह जल्दी राजी ही नहीं हो रही थी।
तो बकरे की बलि शराब और भोज कराने के बाद रात को 12:00 बजे वह बाबा अपने जिन,
को जिस भूत ने मिलने के लिए बुलाया था। उससे बात करने को भेजा था।
बाबा इधर पूजा कर रहा था। भूतों के संग जबरदस्ती कर उन्हें भगाने की कोशिश कर रहा था।
भूत जिद्दी थे – जल्दी मान नहीं रहे थे। तो बाबा अपने तंत्र-मंत्र का पूरी शक्ति का प्रयोग कर
उन भूतों की इच्छा पूरी कर, चिल्ला-चिल्ला कर बात कर रहा था
और इस प्रक्रिया के दौरान मेरा दोस्त काफी डर रहा था।
बाबा ने भूत को बंदी बनाकर जिन को उसे एक जगह बांध लाने को बोला –
तो जब वह जुन और बाबा भूतों को लेकर निकले।
रात के उस कालमयी अंधेरे में – गांव के अंधेरे में।
तो वैसे ही कुत्ते रोने लगे। यह देख कर दोस्त निर्णय करता है
कि वह घर से बाहर नहीं निकलेगा पर शौचालय उन्होंने घर के बाहर ही बनवाया था।
पर वह सब कुछ कंट्रोल कर सकता था पर बाहर नहीं जाता।
बाबा ने जब उन भूतों को बांधा तो जहां पर बांधना था। उस जमीन को खरीदना पड़ता है।
उसके के लिए ₹22000 बाबा ने मांगे। मेरे दोस्त के पापा ने घर की खुशहाली और
अपने पूर्वजों की शांति के लिए दे दिए। पर जैसा मैंने आपको बताया सिर्फ दो भूत ही बंदी बनाए गए हैं।
अभी दो रही रहे हैं – क्योंकि दक्षिण वाली बड़ी ताकतवर है। वह मान ही नहीं रही है। उसकी मांग कुछ और है।
तो अभी और पैसे और यज्ञ करवाने – लगवाने बाकी है। यह सारा हाल मेरा दोस्त कॉल पर मुझे बताते हुए कहता है।
,” यार मुझे समझ में ही नहीं आता कि मेरे गांव के लोग अभी-भी किस भ्रम में है। जो इन सब पर भरोसा कर लेते हैं।
जब बाबा ने हमारे पूर्वजों के बारे में पूछा तो हमें तो पता नहीं था
तो एक बहुत पुरानी बुढ़िया ने उन्हें हमारे पूर्वजों के बारे में बताया और
फिर बाबा ने दो भूतों को जैसे – तैसे बंधी बनाया। गांव के सारे लोग आए थे।
भोज हुआ था। बकरा कटा था। भाई बहुत पैसे खर्च हुए।
अभी तो दो भूत रही रहे हैं। ना जाने मुझे समझ में नहीं आ रहा पूरा का पूरा गांव किस भ्रम में पड़ा हुआ है?”
तो जब यह बात मैंने अपनी मां से बताया तो मां बोली,
” देख पूजा करवाना। सुख-शांति के लिए अलग बात होती है।
पर अगर उसको यह भ्रम लग रहा है। पूरे गांव वालों को इसका दोष दे रहा है।
तो सबसे बड़ा हंसने का पात्र वह खुद है। क्योंकि सबसे पहला भ्रम उसके अंदर पनपा था।
गांव वालों को बाद में। तभी उसने गाड़ी पकड़ी थी – अपने घर की।”
पहली शुरुआत हम से होती है। पूजा – पाठ – यज्ञ, मन – आत्मा की शांति और
तसल्ली के लिए करवाना चाहिए। पर भ्रम लगे तो नहीं। भ्रम की शुरुआत सबसे पहले हमारे से-ही होता है।
उसके बाद बाबा और गांव वाले आते हैं। मुझे नहीं पता यह सच है – या झूठ पर इतना पता है उसके पापा –
बड़े पापा – छोटे पापा बहुत बड़े पियकर हैं। जो हर वक्त नशे में रहते हैं ।
और घरवाले पैसा ज्यादा उड़ाते हैं जैसा वह मुझे हर अगले दिन बताता था
भाई हमारे घर में सुबह तक ही कई बार चाय और कई तरह की सब्जी मुर्गा – पनीर – मीट बन जाते हैं।
सबकी अपनी-अपनी पसंद है । तो पैसे कैसे बचेंगे। पर इसका मतलब मैं उनको झूठा नहीं बोल
रहा क्योंकि यह झूठ और सच हमारे दिमाग की धारणा है। और भ्रम – भी और मेरा दिमाग वहां नहीं था
तो कैसे कह सकता हूं क्या सच है क्या झूठ!
पर मां ने सही कहा- गाड़ी उसी ने पकड़ी थी। लोग तो बाद में आया ।
भ्रम
भ्रम की शुरुआत हमी से है-
भ्रम और कहीं नहीं,
जग पर क्यों हंसते हो ?
इस तमाशे के लिए –
जब घर में तमाशे तुम्हारे हो रहा था तो।
————-Meri Kitabein ————
ज़िन्दगी भर – ज़िन्दगी के लिए !