जो ढूंढ रहे हो – वो मिलने योग्य है कि नहीं ?
मैं जैसा की आप लोगों को पता है – लिखने का आदी हूं। लिखूं चाहे ना लिखूं फिर-भी
कलम-कॉपी हमेशा अपने पास ही रखता हूं।
तो सुबह – सुबह उठा, सुबह की सारी प्रक्रिया कर – जैसे ही फोन उठाने वाला था –
उससे पहले सोचा कॉपी कहा है ?
तो लगा ढूंढने कभी कमरे के एक कोने में पड़ी किताब कुदेड़ता तो –
कभी कमरे के दूसरे कोने की किताबों को।
10 – 15 मिनट हो गया, इतना ढूंढा फिर भी उस छोटे से कमरे से कॉपी गायब थी।
मैं परेशान हो गया, मम्मी को बोला।
मम्मी मेरी कविता – कहानी वाली कॉपी नहीं मिल रही है। ना जाने कहां है? तो मां आई और जिस जगह को मैंने ज्यादा कुदेड़ा था –
उसके ऊपर से उठा के एक कॉपी मेरे हाथ में थमा दी। जो कॉपी थमाई , वही वाली कॉपी थी।
मैं चक्करा गया, यह क्या ?
तो कॉपी को हाथ में पकड़ते हुए पता चला कि मैं लाल कवर की कॉपी ढूंढने में लगा था।
क्योंकि मेरे कमरे में काफी लाल कवर वाली कॉपी थी।
पर यह नीली कवर की थी। इसको देखते हुए भी नहीं ढूंढ पा रहा था। और परेशान हो रहा था।
पर अब मेरी परेशानी हल हो गई है ,
क्योंकि जो ढूंढ रहा था वो मिल गई है।
वो मिलने योग्य है कि नहीं
( दूसरा – लेख)👇
एक तबका – दूसरे तबके को क्यों दबात है ?
यह जो दबाए रखने की कोशिश है एक तबके को दूसरे दूसरे तबके द्वारा। यह कोशिश हाल ही की –
घटना या विषय नहीं है।
यह कोशिश वंशानुगत है। वंशानुगत ना केवल वरन् सांसारिक है।
चूहे बिल्लियों से डरते हैं – बिल्लियां कुत्तों से –
कुत्ते भालूओ और भालू हाथियों से – हाथी शेरों से – शेर इंसानो से। इंसान अपने से ऊपर वाले से।
और उसके ऊपर वाला – अपने ऊपर वाले से। और इन ऊपर वालों की कोई अंत नहीं है।
क्योंकि भीमराव अंबेडकर के अनुसार ‘समाज की सबसे छोटी जाति भी – अपने से छोटी जाति ढूंढ ही लेती है।’
इसलिए ऊपर वाले कभी खत्म नहीं होते। पर सवाल यह है कि यह दबाए रखना क्यों जरूरी है?
गर यह प्रकृति है – और इंसानी है जैसे ‘हिटलर-स्टालिन-औरंगजेब’ आदि।
तो।
तो ।
पहले बताइए संसार में व्यवस्था आती कैसे हैं?
परिवार में जैसे आती है वैसे ही ना। यानी कि एक मुखिया जो सबको आदेश दें और
सब उसके नीचे उसके नियम-कानून मानने वाले हो ।
तो यही व्यवस्था बनाए रखने के लिए एक तबके को – दूसरा तबका दबाना चाहता है।
क्योंकि कोई भी दबना नहीं चाहता।’ हिटलर’ ने खुद को गोली मारी ताकि रूसी सैनिक उसे दबा -ना सके।
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इसलिए दबाते हैं और ना केवल दबाते हैं बल्कि मारते भी हैं और कुचलते भी है ।
ताकि डर बना रहे और यह डर बहुत बड़ी ताकत है – चाबुक है । किसी को भी दबाने के लिए।
इसलिए दबाना बना रहेगा और डराना भी। यह आप पर निर्भर करता है – कि आपको करना क्या है? दबना है – या दबाना है ?
क्योंकि यह दबाने की प्रकृति नजर नहीं नजरिया है। और जैसा कि आप जानते ही हैं कि
‘नजर का इलाज तो मुमकिन है –
पर नजरिया का नहीं।’
पर हां। यह बिना दबाय व्यवस्था नहीं आ सकी है – ना आ सकेगी।
क्यों डांट सुने बिना कर्मों में कइयों के श्रेष्ठता नहीं आती ।
पर यह अवश्य हो सकता है कि दबाने वाले ऐसे दबाए कि आपको लगे कि आपने उसको दबा रखा है –
या आप पर कोई दबाव ही नहीं है।
और यह दबाना दबाने की लिस्ट में सबसे ऊपर है। और यह प्रकृति है। इसीलिए दिलेर बनो।
क्योंकि अगर जूते बनोगे तो पैरों की शोभा ही बनोगे।
सिर कि नहीं और वैसे भी तुम्हें बनना तो कुछ है ही। तो कुछ बनने से अच्छा है –
कुछ बेहतर बनो।
ऐसी नहीं कि जो चल रहा था चलने दो क्योंकि समय बहुत तेजी से कुचल रहा है ।
4 गुना तेजी की रफ्तार से। …..
————–<Meri Kitabe >————-
ज़िन्दगी भर – ज़िन्दगी के लिए !