मुसाफिर जाग ज़रा !
तेरी गठरी में लागा चोर –
मुसाफिर जाग ज़रा !
मुसाफिरों को आराम कहां –
खुदा मिले ना मिले-
रास्तों पर चलते जाना है –
मंजिल की ओर बढ़ते जाना है-
मंजिल मिले ना- मिले ,
पर मुसाफिर है – चलते जाना है !
तेरी गठरी में लागा चोर-
मुसाफिर जाग जरा !
कबीर कहते हैं:-
मुसाफिरों को आराम में नहीं –
चलते जाने में चैन है -चलते रहने में चैन है |
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मंजिल मिले- ना मिले,
जिंदगी के मुसाफिर हो –
चलते -चलो
चलते जाने में चैन है|
मंजिल तो बाद की बात है-
चलना हमारा धर्म है,
बस इसलिए चलो |
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जिंदगी मिली है तो यूँ ही गवाओगे क्या ?
कुछ करो यार की मौत में आराम हो !
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सपनों का शहर
- और काली रात
सपनों का शहर है:-
बहुत प्यारा – न्यारा – शानदार – जबरदस्त ,
लोग रह ही नहीं पाते हैं –
उसके बगैर,
खींचे चले जाते हैं –
चाहे रास्ते कितने भी कठिन क्यों ना हो –
लोग देखते हैं सपने –
अपने प्यारे-प्यारे सपने-
आसमां को छूने की,
घर बड़ा और बड़ा बनाने की ,
अपनों के संग जीने की,
मस्त खुशी से पल बिताने की ,
बिना मेहनत के कमाने की-
एक दिन सब सच हो जाने की-
पर भूल जाते हैं कि आकाश कभी एक सा नही होता-
सावन है तो बरसात है –
पर बिन मौसम भी बरस जाता है-
होती है हानि फसलों की-
कहानी और दुखदायक हो जाती है-
लोग सह नहीं पाते-
घर बाढ़ में डूब जाते हैं|
आसमां में हर रोज चांदनी नहीं होती-
कभी-कभी काली रात भी आती है-
पर लोग जीते हैं बचे-कूचे लोग नहीं-
फिर से सपने देखने वाले !
फिर से आसमान को छूने वाले
इन्हे ही कथाओं में हिम्मती कहा जाता है |
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3@..रिश्तों में दरार कैसे आ जाता है ?
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4@..लाख बीमारी का सिर्फ एक इलाज 👉
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मुसाफिर जाग ज़रा !