हिंदी की अध्यापिका
यह किस्सा भी नाइंथ क्लास से स्टार्ट होता है। इनका चित्र और चरित्र बिल्कुल अलग है, सबसे हटके।
शांत स्वभाव-चेहरे पर संतुष्टि का भाव-उमंग और पढ़ाने की जिज्ञासा से भरपूर।
पता नहीं इनमें ऐसी कौन सी अद्भुत शक्ति है जो बिना डाट के पढ़ाती है
तो उस पूरी की पूरी क्लास एकदम मौन रहती है।मौन! जबकि जो टीचर मारते हैं
उनकी कक्षा में भी शांति नहीं होती। जितना इनकी कक्षा में होती है। पर इसका मतलब यह नहीं है, कि वोमारती नहीं है।
शांत स्वभाव रखती है। हमेशा एक संतुष्टि का भाव रखती है। लेकिन जब कुछ गलत देखती है
तो दोनों कान ऐंठ के गाल को पकड़ के अच्छे से मस्लती है। और थप्पड़ लगाती है।
मेरी मुलाकात भी इनसे कुछ इसी अंदाज में हुई थी। दरअसल हुआ यह था कि पेपर्स हो रहे थे
और इनका पेपर सबसे पहले हो गया था। और ये उन्हें जल्दी से चेक भी कर दी थी।
और उन्होंने यह ढूंढ निकाला कि मेरी और मेरे दो और दोस्तों कि पेपर में सेम माक्स है।
तो इन्होंने हम तीनों को कक्षा के बाहर बुलाया और अपने अनुसार दंड देने लगी।
पहले कान खिंचे- फिर गाल और फिर थप्पड़। यह सही बात है जब मनमोहन को करीब से देखा
और ज्यादा था वरना तो मुझे बहुत शरीफ लगती थी।
यह बहुत ही अलग किस्म की अध्यापिका है। यह हमें पढ़ाने के लिए मोटिवेट भी करती है और
यह भी कहती है कि सरकारी नौकरी ही सब कुछ नहीं होता अगर आप छोटा-सा कोई कर सकते हो
आप लोगों को नौकरी दे सकते हो तो वह भी बहुत बड़ी बात है। मुझे बहुत पसंद है
और दूसरी बात यह है कि यह अपने काम में कभी भी आना-कानी नहीं करती ।
इन्होने पीएचडी का रखा है और इनका भाषण बहुत ही मस्त और आसान होता लगता है।
जब भी किसी समारोह बोला यह बोलती है।तो ऐसा लगता है कि
जैसे सरस्वती मां स्वयं इनके जुबान पर विराजमान हो चुकी है।
और उस वक्त भी सारे बच्चे चुप हो जाते हैं। भगवान की लीला के समय भक्त।
इनमें भी कुछ कमियां है जैसे हर इंसान में होता है। कबीर साहब ने वो कहां है ना :-👇
कबीर साहब कहते हैं:– कि पानी की बुंद अगर सांप के मुंह में पड़ती है तो विष बन जाती है, और वही अगर सीप में गिरे तो मोती। उसी प्रकार मनुष्य है, जैसी संगति करता है-वैसा हो जाता है!.. |
ठिक ऐसा ही यहां हुआ जैसा कि मैंने आपको बताया था, हमारी अंग्रेजी की अध्यापिका भले ही नहीं पढ़ती हैं-पर दोस्ती सबसे बड़े आसानी से कर लेती है। इनकी दोस्ती अंग्रेजी की अध्यापिका से जम गई। तो हुआ यह की इन्होंने भी पढ़ना तो जारी रखा पर , वो पहले वाली बात नहीं रह गई। पर वो जब सच में पढ़ती तो मन रम जाता। मगर इनका यह कारवां एक-दो साल चला और हम सब कहते रहे की यह भी अंग्रेजी वाली अध्यापिका की तरह होती जा रही हैं। मगर फिर जब उन्होंने अपने आचरण में आई तब फिर से समा बांधा और पढ़ाने लगी और कैसे हम बारहवीं के अंत पर आ गया ये एहसास ही नहीं होने दिया इनके पठन-पाठन ने।
बड़ गहराई से सोचती है और अध्ययन करती हैं। इनके बारे में क्या लिखूं एक यही है स्कूल भर में जिनका मैं और मेरे दोस्त कभी ज्यादा मजाक नहीं बनाते।
(धन्यवाद)
और सीखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दबाये
1..नई अनगुंजे (पार्ट-2) हमारे इतिहास के पन्नों के अध्यापक
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2..नई अनगुंजे (पार्ट-1) हमारी अंग्रेजी की अध्यापिका
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5..लाख बीमारी का सिर्फ एक इलाज 👉
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हिन्दी कि अध्यापिका
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