🏃♂️🏃♀️दौड़🏃♀️🏃♂️
एक दिन मै ऐसे दौड़ पर खड़ा था,जहाँ से हर दौड़ या तो आखिरी लगती थी;
वापस वही जिंदगी जीने पडती जिसे मै जीना नही चाहता था।मै समझ नही पा रहा था,
क्या फैसला लू।क्या उस दौड मे शरीक हूँ या ना हो के गरीब रहूँ।
दोनो तरफ आश थी ,हार-ही जाने कि मगर फैसला क्या लूँ यह समझ नही पा रहा था।
मगर मैने फैसला लाया और दौड पडा जितनी भी बची-कुची ताकत थी के साथ।
मगर हार गया।दर्द हुआ मगर पछतावा नही।क्योकि मै रूका थोड़ी ना था ट्राई किया था।
लेकिन अगर पिछे मुड जाता तो जरूर पछताता,
भले ही शायद मै पिछे मुड जाने के बाद मै कुछ ताकत जुटा के फिर से वार करता।
और शायद जीत भी जाता।
जो इस वक्त मेरे दौड मे हिस्सा लेने से नही हुआ। मगर मेरे पास पछतावा नही है,और मै कुछ समय के बाद फिर वार करूंगा।
मगर , अगर मै पिछे जाने के बाद वहाँ रूककर यह मान लूँ,कि मेरे से कुछ नही होगा ,तो क्या मै सफल कहलाता।???
मगर हमेशा याद रखना या तो थोड़े देर के लिए पिछे जा के ताकत जुटा या फिर एक बार टक्कराओ।मगर कभी रूको मत और नाही कांपी करो।क्योकि सबकी दौड अलग है।
यह जिंदगी की रेस है “जहां काॅपी नही होता।”
सिर्फ फैसला होता है।…
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ज़िन्दगी भर – ज़िन्दगी के लिए !