भगवान का खत – इंसानो के नाम
अकाल पड़ा हुआ था और खत्म होने का नाम नहीं ले रहा था।
अकाल को आए 2 महीने से ऊपर हो गए थे। और अब ऊपर से बाढ़ आने वाली थी।
एक तो खाने को कुछ ना था। और अब रहने के लिए जगह भी कम होने जा रही थी।
भूख से तडप-तड़प के कई जाने जा चुकी थी। लोग पहले से ही भयभीत थे।
और अब और ज्यादा चिंता ग्रस्त हो गए थे। उनकी रातों की नींद उड़ गई थी।
दिन का तो कहना ही क्या ? बस जैसे-तैसे कट रही थी।
लेकिन जैसी ही बाढ़ की खबर आई लोग पहले से ही पलायन कर चुके थे।
जो बचे थे वह फस गए थे। तो भगवान को बुरा-भला कहने लगे।
मंदिर को बंद कर दी गई पूजा – अर्चना सब बंद क्योंकि उनका भरोसा उठ गया था ।
क्योंकि, हुआ यह था कि जब अकाल को पड़े दस दिन से ज्यादा हुए थे।
तो लोगों ने वहां के जिनके बारे में कहा जाता था, कि भगवान से जुड़े हुए हैं।
भगवान को एक खत लिखा – दरासल गांव में कुछ भी आपदा आती थी।
तो गांव के लोग उस आपदा के खत्म हो जाने की विनती।
भगवान से खत लिखकर करते थे। जिससे उनकी अपदाएं भी जल्द से जल्द खत्म हो जाती थी।
लेकिन इस बार अकाल के 15 दिन बाद जब खत लिखा लेकिन दो महीने तक वह अकाल खत्म नहीं हुआ।
लोग भगवान की पूजा-अर्चना और जोर-शोर से करने लगे थे , ताकि वो भगवान को मना सके।
उपवास रखा गया – लंगर हुए। पर अकाल खत्म ना हुआ – उल्टा लगता था
जैसे शिव ने तिसरी आंख खोल ली हो। लोगों ने कई चिट्ठियां भेजी, खून से लिखी हुई चिट्ठियां भी भेजी।
पर अकाल खत्म होने कि बजाय साथ-साथ अब बाढ़ भी आने वाली थी।
लोगों का विश्वास उठ गया था, भगवान पर से। और वो भगवान की पूजा-अर्चना बंद कर।
अपने दशा के लिए कोसने लगे। फिर भी बढ़ा आई। और ऐसी आई की पहले इतना कभी नहीं देखा था,
गांव वालों ने। गांव के लोग काफी परेशान थे – अब खाने के लिए मछली मिल जाती थी।
पर जलाय क्या ? परेशानी एक कम हुई तो दूसरी आ गई ।गांव वाले काफी परेशान और दुखी थे।
सरकारी सेवाओं के गांव को मिल पाना भी आसान नहीं होता था
क्योंकि उनका क्षेत्र काफी सूदूर और दुर्गम इलाकों में पड़ता था। लोग काफी डरे हुए और भयभीत थे।
जिसस फिर भगवान से विनती करने लगे। कोसने लगो। कि प्रभु क्या पाप हो गई?
हम पर दया क्यों नहीं कर रहे हैं ? क्या आपकी आंखें नहीं है ?
क्या आपको हमारी दुर्दशा नहीं दिख रही? पर बाढ़ के पानी सूखने में लगे फिर
2 महीने इन 4 महीनों में लोग ना जाने क्या से क्या कर गए थे।
कितना कुछ भगवान को सुना गए थे। बाढ़ सूखा तो दलदल था।
यानी की समस्या टोटल लबा-लब था। अब उस समस्या को लेकर लोग भगवान को कोसने लगे।
जरा भी रहम नहीं आ रहा है – हम जैसे गरीबों के साथ मजाक करता है।
लोग कहते हैं, कि तू हमारा कुछ नहीं होने देगा।
और तू है कि सिर्फ एक के बाद एक समस्याएं देते जा रहा है।
पर कुछ दिनों में वह दलदल भी सूख गया। वापस गांव में खुशहाली आई।
बीज नहीं थे तो शहर से लाए गए खेती शुरू हुई ।
खेती हुई तो पूर्व सभी सालों से ज्यादा और अचृछी। लोग खुश थे -
कि उनके दर्द खत्म हो गए हैं। जब उनका फसल पककर तैयार थे कटने को –
तो ओले-वृष्टि और भारी वर्षा ने फसलों को तबाह कर दिया।
लोग अब भगवान से काफी नाराज हो गए थे। गाली छोड़ो – फांसी लगा रहे थे।
लोगों को लग रहा था कि भगवान कुछ नहीं होता। होता तो वह उनके दर्द को नहीं समझता।
लेकिन फिर भी कैसे भी ये पल भी कटे जैसे-तैसे रोते-सोते ।
और फिर कुछ महीने बाद बीज बोए गए। खेती की गई।
क्योंकि किसान थे और खेती ना करते तो कब – तक सरकार से अगल – बगल से मांग – मांग कर खाते।
और उसके लिए भी तो पैसे चाहिए। फिर जैसे – तैसे खेती शुरू हुई और इस बार पिछले वाली फसल से
भी ज्यादा फसल हुई थी। इतनी की खा भी ली- बेच भी ली और फिर भी काफी बच गई।
तो जब उनको(फसलों को) काटा जा रहा था। भगवान की मंदिर खोली गई।
पूजा -वंदना के लिए। थालियां सजाई गई। सारे गांव वाले मंदिर, भगवान दर्शन को पहुंचे थे।
तो वहां एक खत पड़ा हुआ था। बहुत ही अनमोल खत और नयाब।
जिसे देखते ही लोगों ने पहचान लिया कि यह खत हो ना हो भगवान की ही है।
पूजा के बाद वह खत पढ़ा गया। उसमें कुछ वाक्य लिखे हुआ था । जो कुछ इस प्रकार है-
” जिस प्रकार तुम किसान अपने खेत को कब जोतना है – कब बोना है – कब सिचना है –
और कब काटना है। जानते हो। ठीक उसी तरह यह पूर्ण संसार – तुम सब मेरी कृषि हो।
मेरी फसलें हो और मैं इसका इसका कृषक।
मैं जानता हूं कि इसका अच्छे से देखभाल कैसे करते हैं।
जिस प्रकार कीड़ा लगने पर आप दवाइयों का छिड़काव करते हो –
जो जहरीली होती है। ठीक उसी प्रकार कृषक के तौर पर
मैं अपने फसलों का ध्यान रखता हूं। तो मुझे मत बताओ मुझे क्या करना है!
मैं किसान हूं। और मुझे अपनी फसलों का आपसे ज्यादा ख्याल है।
दूसरी बात :-
जिस प्रकार से आपकी खेती खत्म हो गई। फिर बाढ़ की वजह से हो गई।
फिर खेती हुई और फिर भारी वर्षा के कारण वह भी खत्म हो गई थी।
इसी प्रकार बार – बार आप की फसलें खत्म होने के बाद भी
आपका फिर जमीन पर कृषि करना – भरोसा करना ही भगवान (विश्वास) है।
विश्वास का मार्ग कभी सुगम नहीं होता। क्योंकि विश्वास सिर्फ वही पनपता है –
जहां पर दुर्गम संघर्ष होता है। वहां नहीं जहां सुगम मार्ग होता है।
विश्वास के मार्ग में तूफान ना आए तो विश्वास कितना ताकतवर है पता नहीं चलता।
इसी कारण मैं भगवान हूं क्योंकि मैं आपके द्वारा पूज्य-दूरज्य होने के बावजूद।
मुझ पर से भरोसा उठ जाने के बाद भी – विपत्ति में मुझ पर भरोसा करना मुझसे ही गुहार करना।
मुझे भगवान बनाता हैं। विश्वास गिरा सकता हैं पर पकड़े रखिए क्योंकि अंत तक जीने की साहस यही देता है।
और तिसरी बात :-
मैंने आपके खत को पढ़ा था और उससे पहले से ही आपकी समस्या को हल कर रहा था।
वह समस्या को सिर्फ खत्म नहीं जड़ से खत्म करना था।
कि आप लोगों को जल्दी-जल्दी उन समस्याओं का सामना ना करना पड़े और
जड़ से सावधान करने के लिए जड़ तक जाना पड़ता है। और वह जल्द नहीं होता।
वह वक्त लेता है। क्योंकि समस्या बहुत विकल – हो जाती है समय के साथ।
इसीलिए उनको खत्म करने के लिए समय चाहिए होता है।
आपको समस्याओं में देखकर मैं ज्यादा दुखी होता हूं।
आपका यूं मर जाना – समस्या से डर कर जबरन मेरे अंश को मारना है।
कृपया ऐसा ना करें – समस्याओं का आना-जाना लगा रहता है।
लेकिन आप बार-बार नहीं आते।
सर्व भवन्तु सुखिना ! |
======Meri Kitabe ========
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ज़िन्दगी भर – ज़िन्दगी के लिए !