दुनियादारी और हम!
बहुत मामूली सा कपड़ा – जो कभी ₹10 के पूरा पैकेट मिलता था। अब 10 रूपय का एक मिलता है।
दरअसल मैं बात कर रहा हूं कोविड से बचाव के सबसे धारदार हथियार की। यानि मास्क की।
यूं तो चार दिन ज्यादा ठहर जाए तो मेहमान भी – शैतान लगने लग जाता है।
और काफी देर तक चलने वाला ताजा खबर बस कुछ दिनों बाद अखबार के काॅनर्र में दब के रह जाता है।
ठीक वही कोविड-19 के मास्क के साथ हुआ । ट्रेंड में रहा तो पुलिस ने फाइन काटी –
वेजिटेशन ज्यादा हो गया तो मास्क का फाइन लेने वाले ही – मासृक पहनने वालों को अजीब तरीके से देखने लगे।
और फिर हमने भी मास्क पहनना बंद कर दिया। पढर आज मैं माक्स लेकर निकला था –
पर अस्पताल पहुंचा तो पता चला माक्स गायब है। मेरा नंबर पीछे छूट गया और बिना माक्स के प्रवेश निषेध था।
सोचा कि कैमिस्ट पर मिल जाएगा – वहां पूछा तो बोला बाहर से ले लो ।और बाहर गया तो चाय की टपरी थी और आसपास कोई और दुकान तो थी नहीं।
चाय कि दुकान मामूली सी थी और जैसी होनी चाहिए ठिक वैसे ही थी। उसके स्टाॅल को देखकर नहीं लगता था कि वहां पर मास्क मिल सकता है।
पर मैं 18 साल गुजर चुका था तो इतना तो जानता था
। जो चीज इमरजेंसी में चाहिए होती है – वह महंगी बिकती है। और महंगी है तो प्राॅफिट भी होगा-जो कि हर दुकानदार चाहता है।
तो चाय वाले से पूछा। तो बोले, ” हैं माक्स, तुम ₹10 निकालो।”
₹10 उसे ₹1 की चीज की कीमत अदा की। वह ₹1 का बना जरूर था पर उसकी कीमत ₹10 की थी।
क्योंकि वह जरूरत के समय पर मिला था। और मैं यह भी जानता था कि आदमी चाहे कितना ही मोल भाव क्यों न करता हो –
पर जब जरूरी होता है, तो वह हर रकम अदा करने को तैयार रहता है।और वैसे भी :-
जिंदगी का एक ही उसूल है। वक्त रहते कुछ रुपए लगाने से कतराओगे –
तो जब वक्त नहीं रहने वाला होगा तो जितना बचाया होगा वह सब गवाओगे।
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दुनियादारी और हम!
ज़िन्दगी भर – ज़िन्दगी के लिए !