भूख और ख्याली पुलाव
भूख लगी थी और घर पर खाना ख़तम था | बनाना नहीं आता था पर जैसे – तैसे बनाता था और भूख मिटाता था |
चलो यहाँ तक कोई रुकावट और कोई आश्चर्य की बात भी नहीं थी न है |
पर मेरी एक बहुत बुरी आदत है या कहुँ रोग तो भी गलत नहीं होगा
क्युकी मैं यह सच है की जाने-अनजाने सोचता हूँ भी या नहीं पर सोच हमेशा रहता है |
और कभी – कभी इतना प्रचंड होता है की मैं उठा हुआ भी सपने मे होता हूँ |
कोशिश करता हूँ सहज होने की पर वो सहजता एक तृष्णा मात्र होती है |
जैसे कोई मिराज रेगिस्तान में | तो भूख लगी थी और मैं सोच में पर गया
क्युकी वो रोटी बनाने से ज़्यादा आसान होता है |
की वह फलाने होटल में फलानी दावत उड़ा रहा हूँ|
कई दोस्त – वो भी पुराने बैठे है और बातें हो रही है –
“ वो पुराने दिन – आशिकाने दिन”
वाली बातें – और दबा कर खाए जा रहे है – इंडियन – चाइनीज़ – थाई अनादी प्रकार के फ़ूड टेबल पर है
और हम गपा – गप ठूंसे और पुरानी ज़िक्रो का लुफ्त उठाया जा रहे है |
आहा , क्या बात है – कितने स्वादिष्ट – और कितने रंगीन पल है |
वो दोस्त जिनके साथ टिफ़िन शेयर किया – जिनके कंधो पर ज़िम्मेदारियों के संग नहीं किताबों और हंसी – ख़ुशी के साथ बढ़े हुए है |
वो दोस्त और ऊपर से फेमस होटल की फेमस दावत हमारी पलेट पर और हम खाने और यादो की शोहरत पर |
काफी उम्दा और ख़ुशनुम्मा पल | पेट भी खुश और दिल की तबियत भी हरी हो गई |
और इतना वक़्त बीतगया की दो बजे से शाम के पांच बज गय |
और ऐसे बित गय की कुछ पता ही नहीं चला | पर हकीकत कुछ और थी फलाने होटल का नाम नहीं था –
और पेट में खाने की जगह दर्द था | पर पुलाव खाये थे – तो ये दर्द कैसा था |
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भूख और ख्याली पुलाव |