परिस्थितियां और हम
परिस्थितियों का पक्का अनुमान रहे –
हम इंसान है ये ध्यान रहे !
एक पंडित था, जो कि काफी ज्यादा लोकप्रिय था। उसके कुछ शिष्य थे – जो उससे शिक्षा प्राप्त कर रहे थे।
तो क्या होता कि, गुरुकुल का एक नियम था – जिसके अनुसार एक निश्चित समय पर शिक्षा प्राप्ति के बाद
सभी शिष्यों को दक्षिणा लेने को जाना होता था। तो इस बार कुछ शिष्य अपने आश्रम के समीप स्थित राज्य के राजा के वहाँ गय,
इस उद्देश्य से कि एक बार राजा जी से माँग ले-तो रोज – रोज माँगने की नौबत ही नहीं आयेगी।
तो वो शिष्य निकल पड़े राजमहल की तरफा। राजमहल दो घंटे की दूरी पर था ।
आज से और आजम से राजमहल तक पहुंच कई रास्ते थे।और आश्रम से राजमहल पहुंचने तक के कई रास्ते थे।
उनमें से अधिकतर दो घंटे के आस-पास ही पहुंचाते। मगर एक रास्ता था – जंगल से होकर ।
जिससे राजमहल की दो घंटे की दूरी – डेठ घंटे में ही पूरी की जा सकती थी।
पर वो रास्ता अच्छा नहीं था इन्होंने – सुन रखा था। इसलिए उस रास्ते से कोई आता -जाता नहीं था।
और जो कभी आते-जाते थे। बड़ी विपत्ति का सामना करना पड़ता था – उनको ।
जो उस जंगलों से भी आय थे । वो बताते थे कि वहाँ पर एक गौंग रहता है।
पर यह काकी साल पहले की बात थी – अब उस जंगल से आना-जान सुगम हो गया था।
कुछ लकड़हारे उसी जंगल में रहने लगो थे।
रास्ता |
क्योंकि जो गैंग थी – वो राजा के डर से कहीं और चली गईं थी- ऐसा सुनने में आया था।
तभी-से वहां लकड़हारे रहने लगे थे। तो जो शिष्य थे – वो थोड़े निडर थे।
निकल गय उसी रास्ते – से राजा जी के के पास जल्द से जल्द पहुँचने के लिए।
जाते समय उन्हें कोई तकलीफ नहीं हुई। लकड़हारों ने उन्हें पानी-वानी भी पिलाया और
बातों- बातों में उन्हें पता चला कि वे आश्रम से आय शिष्य है – जो राजा जी के पास जा रहे हैं –
भिक्षा मांगने। लकड़हारों ने उनकी और मदद की राजमहल जल्दी-से-जल्दी पहुंचने में ।
ये राजमहल पहुंचे। राजा से भीछा ली और यह सोचते-बतियाते खुशी से आ रहे थे।
कि हम तो जय हनुमान ने गए थे राजा साहब कितने अच्छे हैं इतने सारे अन्नों के साथ सोने-जवाहरात भी दे दिया है।
अब हमें मांगने की कोई जरूरत नहीं पड़ेगी और गुरुदेव भी हमारी बहादुरी से खुश होकर।
हमें इनाम देंगे। पर वो जब गुरुकुल पहुंचे तो – काफी डरे हुए और खाली हाथ लौटे थे।
जब गुरु जी ने पूछा, ” क्यों भाई आज तुम लोगों को किसी ने डराया है क्या ?
और भिक्षा भी नहीं दिया क्या ? और तुम लोगों की भिक्षा पात्र पोटली कहां है,
जो तुम लोगों के शरीर से लटकती रहती थी?” तो उन शिष्यों ने डरते-डरते सारी घटना सुना दी कि गुरुदेव हम राजा के पास गए थे।
भिक्षा प्राप्त करने। जल्दी जाने के चक्कर में हमने जंगल वाला रास्ता पकड़ लिया।
जाते वक्त तो कुछ नहीं हुआ बल्कि उन लकड़हारों ने मदद भी की थी।
आते वक्त उन्होंने हमें पानी पिलाकर बेहोश करके हमारा सारा धन समेत –
भीक्षा भी उन्होंने ले -लिया।
और हमें अचेत अवस्था में वही जंगल में ही छोड़ दिया। जब चेतना आई तो – पाया कि अंधेरा होने लगा है
और हम लोग भटक गए थे, जंगल में कहीं। पर जैसे-तैसे हम लोग वहां उस जंगल से बच के आए।
गुरुदेव ने समझाया कि, वह जो लकड़हारे – हैं असल में वही वह गैंग वाले हैं ।
और जिन्हें वो उस जंगल से आने-जाने देते हैं वो उनके ही संगी-साथी होते हैं।
और या वो लोग जिनके पास ज्यादा कुछ नहीं होता है।
पर तुम लोगों ने मुझे बिना बताए राजा के पास गए और वह भी सोना-चांदी मांगने ।
इसकी मैं – तुम लोगों की अवश्य सजा देता पर तुम लोग पहले ही सजा पा चुके हो – तो मैं क्या दूं!
For more stories click on the links 👇👇
1.हाथ जोड़ ली – और शक्ति छोड दी : समझ ज़रूरी है! (Hindi Edition) Kindle Edition
2.अंधेरों का उजियाला (Hindi Edition) Kindle Edition
3.जिंदगी – पाप और कर्म (Hindi Edition) Kindle Edition
ज़िन्दगी भर – ज़िन्दगी के लिए !