😊😊सिर्फ खुशी-😓😓गम नहीं!
राहुल एक बहुत बड़ा बिजनेसमैन था। लोग कहते थे चांदी का चम्मच लेकर पैदा हुआ था वह।
और सच भी था। जहां आम आदमी के 10 से 15 साल कभी-कभी बाल सफेद हो जाते हैं
सफलता पाने में और वह जिस भी क्षेत्र में हाथ रखता सारे काम एकदम सोना हो जाते।
उसका हाथ पारस पत्थर समझा जाता था। शेरहोल्डर्स-इन्वेस्टर-सारे उसकी आईपीओ में पैसा लगाने को बेताब रहते।
बचपन से हर काम में खुशी मिलती थी।जो भी छूले हीरा हो जाता था। अमीर खानदान का था।
मां लक्ष्मी का आशीर्वाद उसके सिर पर था। और शादी भी हो गई उसके प्यार से।
और शादी के 10 साल तक उसके चार बच्चे हो चुके थे। सब खुश और सिर्फ खुश रहते ।
कोई गम नहीं था क्योंकि कुछ भी काम नहीं था। ना पैसा-ना व्यापार-ना परिवार और ना शरीर।रहीश थे, समाज में मान-सम्मान था।
बच्चों की स्कूल लाइफ ही शुरू हुआ था अमेरिका में और खत्म हुआ कैम्ब्रिज में। वहीं लंदन में ही शादी कर ली। वहीं रहने लगे। थे
भारत-भारत में करते क्या? उनके पापा थे ना। और कोई दुख थोड़ी था, उनकी फैमिली को, उनके सारे बच्चों को नशे की लत थी
और कच्ची उम्र में हद से ज्यादा मिल जाने का घमंड और ऊपर से कोई दुख देखा नहीं था।
सब काम पैसे से प्यार से सही समय पर हो जाते। तो किसको किसकी जरूरत होती।
सारे भाई-बहन अपने दुनियां में रहते। और राहुल यहां अपने काम में व्यस्त और मस्त रहता।
बिजनेस मैन था, लड़कियों की कमी थोड़ी थी। बीबी भी अपने में रहती।
राहुल ने उसे फिल्म उद्योग का प्रोड्यूसर बना दिया था।वो उसमें बिज़ी रहती।
कभी हफ्ते में घर पर मिल लिए तो ठीक, ना तो फोन पर तो हर रोज बात होती ही थी।
भले ही मुश्किल से कुछ मिनट, मगर होती थी। क्योंकि सबको पता था सब कुछ अच्छा ही होगा।
और सबकुछ अच्छा होता था तो बात ही क्या होती।
क्योंकि सबको पता था सब कुछ अच्छा है। और रही बच्चों की बात तो वह तो दारु ड्रग्स और विलायती शादी के दीवाने थे।
फोन पर बात महीने में करते । क्योंकि कुछ जरूरत ही नहीं थी। और माता-पिता का विश्वास, की सब कुछ अच्छा होगा।
और रहीस थे। तो बच्चों पर ध्यान नहीं दिया। सब कुछ अच्छा था। मगर वक्त ढलता गया। उनके बाल सफेद होने लगे थे।
डाई तो खैर करते। मगर डाई सिर्फ आवरण ढकते है- प्रकृति नहीं। वो बूढ़े हो चुके थे।
राहुल अब अपनी बीवी के साथ रहता। मगर उन दोनों में नाराजगी थी,
क्योंकि उसकी बीवी को पता चल गया था उसके अफेयर्स के बारे में।
रोज मन-मुटाव होता, बाकि सब कुछ अच्छा था। डाइवोर्स लेने की सोची, मगर कैसे भी करके एक साथ रहने लगे।
बुढ़े हो चले थे, बच्चों की याद आती। तो उनके यहां चले जाते। मगर बच्चे घर कभी आते-कभी नहीं भी आते।
आते भी तो रात के ढाई 2:00 बजे और पड़े रहते बिस्तर पर दोपहर के 12:00 बजे तक।
क्योंकि गम नहीं था। सब अच्छा था। कभी गम देखा नहीं था। और किसी भी चीज की कमी नहीं थी।
बूढ़े मां-बाप वापस आ गए।
अभी-भी सब कुछ था अंदर नहीं बाहर ! अंदर सिर्फ खालीपन था।
उनकी लाइफ कभी-भी राॅयल थी। पार्टीश में जातें- मुस्कुराते।
मगर खिलखिलाते नहीं। एक वक्त अब ऐसा आ-गया था। उनसे अब चला नहीं जाता था, मगर मशीन तो थी।
मगर एक दिन इन दोनो ने खुद को गोली मार ली।
मगर बच्चे खुद नशें के कारण किसी और ही दुनिया में रहते थें। जहां इस दुनिया से कोई रिश्ता नहीं था।
उनके अंतिम संस्कार में एक बेटी एक बेटा पहुंचा तब तक 2 दिन बीत चुके थे।
पुलिस ने पोस्टमार्टम कर शव को रख। रखा था। आए तो अंतिम संस्कार किया गया।
मगर इतने खुशहाल लोगों ने खुद को गोली मारी क्यों? यह सबूत पुलिस जुटान में लगीं।
सभी दोस्तों से पूछा सबने बोला सब अच्छा था। किसी की इन्हे जरूरत नहीं थी।
अरे इनका बिजनेस तो और प्रगति पर था। पार्टी इसमें तो हर रोज आते थे। रात 12-02 बजे तक जाते थे।
वहां से पुलिस को हाथ लगा, ‘सब कुछ अच्छा था’। काम वालों-असिस्टेंट से पूछा गया।
अफेयर्स के मामले सामने आए, मगर वह तो बहुत पहले ही सॉल्व हो गए थे।
और उन्होंने ने ही तो फैसला लिया था। साथ रहने का। घर के काम करने वाले दाइयों-कुकश से पूछा गया,
तो पता चला सब अच्छा था। मगर साहब और मैडम नींद की पांच से छ: गोलियां रोज खाते थे।
शराब बहुत पीने लगे थे। रात को भी घर पर लेट से आते थे। वह पार्टी साहब। बेटे-बेटियों को फोन करते थे।
तो वह उठाते नहीं थे। उठाते क्यों सब अच्छा था। हमसे बातें भी बहुत करते थे और पता नहीं उन्होंने खाना कम कर दिया था
वह अक्सर हमसे बहुत बात करते। मुस्कुराने की कोशिश करते । मगर मुस्कुराने की आदत इतनी हो –
गई थी कइ छोटी-छोटी खुशियों से उनके होंठ ऊपर तक नहीं उठते थे। मगर पता नहीं फिर भी खुद को क्यों मार लिया।
सब कुछ तो अच्छा था। अच्छा तो उनके बच्चे कहां थे?
वह क्या है ना साहब, सब बचपन से ही लंदन में रहे हैं। वहीं पर रहते थे।
वह तो वहीं पर थे। तो वह क्यों नहीं आए थे, उसी दिन ?
वह क्या साहब वह फोन नहीं उठाते । नशे में रहते हैं इसलिए उन्हें पता ही नहीं चलता।
और साहब दो बच्चों का एक्सीडेंट हो गया था ऐसा हमें साहब-मैम की मौत के बाद पता चला ।
पता नहीं साहब सब तो मुस्कुराते थे। सब अच्छा था पैसा-बंगला-गाड़ी सब बड़ा था।
पता नहीं क्यों बुढ़ापे में यह कदम क्यों उठाया? पुलिस को कुछ हाथ नहीं लगा ।
ऊपर से सब कुछ अच्छा भरा था। बस अंदर खाली रह गया था, आपने जो नहीं थे बात करने को। समझने को।
बीवी को पति पसंद नहीं था। पति को बीवी। और बच्चों का यह दुनिया ही नहीं था।
उनकी दुनिया कहीं और थी जाहां सब कुछ था बस गम नहीं।
मगर ऐसा हुआ क्यों?
क्योंकि जोड़ने का काम गम करता है। जो उनके संसार में था ही नहीं। और ऐसा वक्त अब तक रहेगा- यह भी तो नहीं मालूम।
थोड़ा गम आना जरूरी है मित्रों!….
अपनों में छूटे गौरों का पता चल जाता है:- हम थोड़े और मजबूत हो जाते हैं।
पर दुआ करता हूं:- भगवान तुम लोगों को खुशियां दे। और गम में साथ!…
(धन्यवाद)
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(😊😊सिर्फ खुशी-😓😓गम नहीं!)
(😊😊सिर्फ खुशी-😓😓गम नहीं!)
(😊😊सिर्फ खुशी-😓😓गम नहीं!)
ज़िन्दगी भर – ज़िन्दगी के लिए !