संभावनाएं
एक लडका था वह जंगल में भटक गया था वह हर मुमकिन प्रयास कर रहा था
अपने आप कोजीवित रखने की जब रात हो जाती तो सोने की तलाशी कर लेता।
चोट लग जाती तो कपड़ा बांध लेता,मगर कभी हर नहीं मानता ।
क्योकि जीने से ज्यादा अच्छी आदत कोई नहीं होती। वह कभी हारता ही नहीं था।
एक दिन क्या हुआ उसका आधा पेट तो क्या एक-दो कवर की जितनी भी खाना नहीं मिला।
और वह पूरा दिन तड़पता रहा। और शाम को एक भालु को उसने सामने मे देख लिया।
पैर में चोट लगी थी। मगर जिंदा रहने की उम्मिद मे वह भाग ने लगा ।
जब उसे लगा की वह नहीं भाग सकता ।तो उसने भालू और दो दोस्त की कहानी सुन रखा था ।
तो वह भी अपना साँस रोककर भूमि पर लेट गया। और भालु ने उसे उस लड़के की तरह ही छोड़ दिया।
अब ये थोड़ी देर मे उठता है और साँस।पर साँस लेने लगती है।
और अंधेरा में कही छूपने , तो पैर के चोट को कम करने तो ,
तो पेट की ज्वाला को शांत करने की कोशिश करता है।
इसे समझ में नहीं आता क्या करें। मरना भी नहीं चाहता था।
तो वह पेड़ो के किड़ो को खा लेता है। जख्म को स्वच्छ जल से धन लेता है।
और वही एक ऊँचे स्थान पर जाके अंधेरे मे ही बड़ी मुशिकल से आग जलाता है।
और थक-हार के सोने की कोशिश करता है।वैसे थकान मे तो नींद आ-जाती है, मगर वो जंगल था।
वहाँ जानवरो को सही से नींद नही आती तो, एक भटके हुए को कैसे आय।मगर वो हार नही मानता है।
उसको मलूम नहीं था की अगली सुबाह उसके साथ क्या होगा।
वो उस जंगल से निकल पाएगा भी की नहीं ।मगर वाह कोशिश करने को तैयार था।
क्योकि संभावनाएं अनेक थी। खाना नहीं तो पानी से पेट, चोट पर मलहम नहीं तो मिट्टी की लेप।
मगर हार मान जाना उसकी डिक्शनरी मे नही था।
वह ऐसे ही कई दिन गुजारा बिल्कुल थक-हार के हताश था, चेहरे पर निशान था।
कुछ और करने कि ताकत उसके अंदर नही थी, सिवाय जीवित रहने कि।
वह कई दिनो से एक नदी को फाॅलो कर रहा था। वो नदी खत्म होने का नाम नही ले रही थी।
हमेशा याद रखना, हर सिक्के के दो पहलू होते है।चाहे परिस्थित कैसी भी हो।बस तुम्हे लड़ना आना चाहिए। अपने साथ खड़ा होना आना चाहिए!….वरूण
ज़िन्दगी भर – ज़िन्दगी के लिए !