रावण (कहाँ)
दशहरा का दिन था।कलयुग घर से निकला मेला देखने के लिए।
वो रावण को जलते देखना चाहता था।घर से मेले की दूरी यही 2-3 किलोमीटर थी।
राह मे चलने लगा पैदल, अच्छे कपड़े पहने थे और आँखो पर चश्मा लगाया था।
और पैरो मे जूते थे चमकदार। एक दम सज-धजकर रावण देखने गया।
रास्त मे उसे की लड़किया दिखती है तो यह उन्हे देख सिटी बजाता है और एक को आँख मारता है।
और एक भिकारी को अपने पास आता देख, उसे डाट कर भगाता है।
और फिर आगो बढ़ जाता है और बड़े स्टाइल से बालो मे हाथ घुमाता है।
तभी उसे उसका दोस्त दिखता है।वो उसे गाली देकर बुलाता है,उसके आगो उस वक्त एक परिवार जा रहा था।
मगर वो तनिक भी शर्म नि करके सिटी बजाता है और अपने दोस्त को बुलाता है।
दोनो अब बाते करने जाने लगो।एक दुकान पर रूके और बिड़ी जलाया और आगो बढ़े।
पैसे थे जेब मे तो थोड़ा ज्यादा काॅन्फिडेंस आ गया था।वो दोनो बड़ी छोर से हँस-हँसकर गाली दे-देकर बात कर रहे थे।
आज अच्छे कपड़े पहने थे और थोड़ा अच्छे मूड मे था। इसीलिए रोज की तरह कुत्ते को लात से नही मारता है।
मगर अक्सर वो उसी रास्ते से आता-जाता था। तो कुत्ते उसे देखकर वहाँ से भौंकते भाग गय।
इनकी सिग्रेट अब-तक खत्म हो गई थी, तो उसे एक कचरे के ढ़ेर पर फेंक दिया।
उन्होने उसकी चिंगारी नही बुझाई होती है। तो जो सूखा कूड़ा था वो जलने लगा।
तो लोग फिर उसे बुझाते है।मगर तब-तक वो बहुत आगो बढ़ गय थे।
आधा से ज्यादा रास्ता पार हो गया था। अब यही कुछ दस-बीस मिनट मे मेले मे पहुँच जाते।
मगर रास्ता अभी-भी बाकि था। एक छोटा सा लड़का शायद घर की जिम्मेदारी कंधे पर उठाई थी
तो वहाँ फटे कपड़ो मे कुछ काम कर रहा था। और शायद उस मे से बदबू भी आ रही थी।
जब यह दोनो वहाँ से उसके पास से गुजरते है तो छी बोलते है।
और बोलते है ना जाने कैसे-कैसे लोग आ जाते है। चलो हटो यहाँ से भिकारी कहीं के।
और फिर जोर-जोर से हँसने लगते है।और वहाँ से गुजरने वाले लोग भी थोड़ा-थोड़ा मुस्करा देते है
सिवाय एक छोटी बच्ची के। ये कारवाँ यूँ ही आगो बढ़ता है और फासला कम होते-होते मेले मे आ जाता है।
वहाँ वो खुद को कूल दिखाने के लिए भीड़ मे फिर सिगरेट जलाता है।
और बड़े स्टाइल मे सूटा मारने लगता है।
उसके बगल मे छोटी-छोटो बच्चियाँ भी थी मगर उसकी निगाहे कही
और थीफिर वो अपने दोस्त के साथ जाता है और थोड़ा चढ़ा लेता है।
और अब नशे मे लुढ़कने लगता है। कभी चिल्लाता है तो कभी गाली देने लग जाता है।
और शराब की गर्मी मे एक-दो थप्पड भी धड़ देता है।
और फिर क्या दो-चार कि जगह दस-बीस थप्पड बरस पड़ते है।
कुछ देर मे उसे शांत करवाया जाता है।और रावण जलता है।
रावण जलता है और यह घर की ओर निकल जाता है।
ज्यादा चढ़ गई थी तो इस बार कुत्त को भी रास्ते मे लात मारता है
और जहाँ आग लगाई थी वहाँ पेशाब करता है।
और अंत मे घर पहुँच के बीबी को भी दो-चार धर देता है।
और अगली सुबह उठकर के बोलता है कि मैंने कल रावण को जलते देखा।
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