राधे – श्याम
त्रेता युग – गोकुल की गलियां। श्याम की बंसी और राधा का बेचैन होना।
भारतीय संस्कृति की वह बंसी और धुन जो अमर है ।किस लिए ?
यह बताने की जरूरत नहीं नहीं है। आप सबको पता है, राधा- कृष्ण की कहानी।
राधा – कृष्ण के लिए क्या नहीं थी, सब थी सखी – लक्ष्य – मार्ग यानी कि सब कुछ।
कुछ भी ऐसा नहीं था जो वो ना थी। श्याम बजाते ही इसलिए थे – ताकि राधा सुन सके। उनके पास आ सके।
यूं ही नहीं बांस के छेद वह सुर-ताल बजाते थे। राधा के लिए श्याम, श्याम के लिए राधा सब कुछ थे।
एक – दूसरे को ढूंढते रहते – ना देखते तो परेशान होते।एक दिन भी ऐसा ना था कि राधा-कृष्ण दूर होते थे।
फिर सवाल यह उठता है। श्री कृष्ण कैसे अपने सबसे प्रिय को छोड़ गए।
जिसे हर रोज ढूंढते थे – तकते थे – ना दिखने पर मरते थे। वह जो सब कुछ थी –
उसको छोड़ गए। जिसके बिना एक दिन भु नहीं कटता था। उसके बिना पूरी जिंदगी जिए।
आसान नहीं था। इतना खास होकर दूर होना।
पर फिर भी क्यों अलग हुए ?
जो मुझे लगता है :-
क्योंकि राधा जरूरी थी। पर जीवन का कर्म/मर्म महत्वपूर्ण।
राधा लक्ष्य होते हुए भी – लक्ष्य नहीं थी(क्योंकि लक्ष्य को पाया जाता है-
और राधा तो पहले से ही कृष्ण थी – और कृष्ण- राधे) क्योंकि संसार के सृजन के लिए –
संयम के लिए ज्ञान के लिए। राधा को त्यागना था। ताकि एकाग्रता से ज्ञान प्राप्त कर सके – तभी गीता जैसा सार उपज ।
बड़े – बड़े लक्ष्य के लिए बड़े – बड़े कदम उठाने पड़ते हैं।
क्योंकि जब तक राधा उनके संग होती तो ज्ञान की प्राप्ति सही एकाग्रता के साथ ना हो
सकती क्योंकि राधा-श्याम की एकाग्रता थी। तो एक एकाग्रता के साथ दूसरे पर एकाग्र कैसे हो सकते हैं?
और बिना एकाग्रता के महानता कैसे पाई जा सकती है।
महान लक्ष्यों के लिए – जन कल्याण के लिए – निजी लक्ष्य – सुखों का त्याग राधे -श्याम है।
पहले बेतलब आदत की लक्ष्य के लिए जहर पीकर बिछुड़ाना या छोड़ना राधे-श्याम होना है।
राधा – कृष्ण सच्चे प्रेम की निशानी है। जो साथ ना होकर भी साथ थे – हैं।
एक-दूसरे की लक्ष्य में – भविष्य में। भविष्य के लिए वर्तमान के सुखों का त्याग राधे-श्याम है।
राधेश्याम होना रासलीला की ही नहीं – सहनशील होने का भी प्रतीक है।
एक – दूसरे के लिए हद से ज्यादा बेहद होने के बाद भी मर्यादा में होना राधा-श्याम होना है।
तो बोलो, ” राधे – राधे”!
1. मेरे अनुसार राधा- कृष्ण ( एक – सिख)
2. नकरात्मक सोच से छूटकारा कैसे पाय ?
……….Meri Kitabe ……….
ज़िन्दगी भर – ज़िन्दगी के लिए !