माँ और मैं
मैं और मां नहीं, मां और मैं| यह बिल्कुल उपयुक्त और प्रगाढ़ संदेश है|
हम मां से हैं- वह हमसे अवश्य हैं|
पर हम उनकी बराबरी कभी नहीं कर सकते| हमको अपने आंचल की सारी ममता –
प्रेम- से हमको ढककर दुनिया के कांटे -छल -माया वह अपने आँचल के ऊपरी भाग में रख लेती है|
और देती है सिर्फ और सिर्फ अथाह और परम अनुभूति ममत्व ,
नासमझ-अज्ञानी(यानि हमको ) को इस ईश्वरत्व की प्रेम की |
मां को अक्सर कहते सुना है, रात को नहीं सोने वाला मैं -दिन में कोटा पूरा करता |
और उसी की ओट में मां अपने गृहिणी की धर्म पूरा करती और रात में लोड़ियो के
साथ-साथ अक्षरों के आंचल से ढक कर सुलाने की कोशिश करती |
क – ख – ग , एक – दो – तीन , वन – टू – थ्री मुझे सीखा |
एक लंबे वक़्त की गति में सब कुछ भूल गई | या कहुँ उनको याद नहीं रहा |
खैर ये दोनों ही एक ही अर्थ देते है | फिर मैंने जिम्मा संभाला उन्हें वही सब देने की – जिसे मैंने उनसे पाया |
वो घर में पिता के समान ही अर्थ कमा के लाती – थकी आती – पर पढ़ने की जो छड़ी हमको पड़ी है –
उसका डांट मात्र या ज़िद्द मात्र भी माँ को जरूरत नहीं थी | जुनून पहले से ही था | और वह भी मुझसे पढ़ने का |
पर माँ और मैं अपनी बात आज फिर क्यों करने लगा – हूँ |
तो हुआ यह कि मैं एक संस्मरण पढ़ रहा था ‘फादर कामिल बुल्के’
जो हमारी दसवीं के हिंदी की किताब में जो शामिल एक संस्मरण है|
उसमें एक पड़ाव आया,
“ की माँ की याद आती है -बहुत याद आती है |”
खैर मैं माँ से दूर तो नहीं – पर यह सोच मेरी उस वाक्य से जा मिला जो मैंने माँ को कहा था |
मैं उसे अपनी नादानी कहुँ या शैतानी पर माँ से मैंने एक शाम यूँ ही नहीं पर कह दिया, “तू मेरी आखिर में सबसे बड़ा दर्द होगी | “
मेरी आशय था मेरी माँ के मौत से | न जाने कौन से बेटे ने अपनी माँ से यह वाक्य कहे होंगे और मैंने साहस कहे जुटा लिया |
पर मैंने कह दिया | पर मेरा आशय बिलकुल जड़ – मूल – मेरे आधार पर सही था | माँ ने समझा ,
पर मौत से अक्सर घबरा जाने वाले इंसानी प्रवत्ति के उस चेहरे पर इस वाक्य के बाद एक मुस्कराहट प्रकट – प्रासुफित होती हुई दिखाई दी |
यह डर को नकाब देने वाली बिलकुल भी नहीं थी | पर मैं शायद समझाता हूँ – वो मुस्कान |
क्युकी मुझे मुस्कुराना और मुस्कराहट सबसे पहले उन्हों ने ही सिखाया था |
ना जाने कब मुझे ये दर्द और वाक्य को सहना पड़ेगा |
पर जो भी हो – माँ कहीं भी रहे – पर मुझमे और मेरी रोम-रोम में अंत तक रहेगी |
माँ और मैं | माँ मेरी पूरक है और मैं माँ का पहला पूरक आखिरी नहीं | पर माँ और मैं हमेशा रहेंगे |
मेरे सबसे आखिरी दर्द में माँ और माँ के उस मुस्कुराहट में मैं |
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