प्रेम भोगने का नाम नहीं है
प्रेम एक दूसरे को भोगने का नाम नहीं है –
एक दूसरे को खोजने का नहीं है –
प्रेम दूसरे को अपने में पूर्णता – सम्मिलित – समाहित कर लेना है |
खुद में दूसरे को अपनाना है | जैसे श्री कृष्ण ने राधा को अपने में पा लिया था |
राधा और वो अभिन्न हो गए थे | यह है प्रेम !
प्रेम किसी दूसरे को अपने समान – सम्मान – इज्जत – प्रतिष्ठा – मुक्ति – चुनाव – न्याय देने का नाम है |
कृष्ण नर है और राधा नारी |
कृष्ण ने राधा को अपने-आप में सम्मिलित किया – क्योंकि केवल प्रेम में ही एक नर – नारी को अपने समान या ऊंचा मान सकता है |
केवल प्रेम में ही कोई नारी या नर को ऊंचा – बराबर मौके – सम्मान – पहचान – चुनाव – न्याय दे सकता है |
अगर मैं अपनी समझ के अनुसार कहूं तो कृष्णा सबसे बड़े नारी तत्व के सम्मानक है |
राधा – कृष्ण के रूप में या 16000 पत्नियों वाले के रूप में |क्योंकि उन्होंने 16000 पत्नियां अपने भोग के लिए नहीं |
उनके मान-सम्मान-प्रतिष्ठा के लिए बनाया था | और वो आज तक ब्रह्मचारी ही है |
कृष्ण प्रेम के अवतार हैं | क्योंकि दूसरा कृष्ण तत्व ही है |
कृष्ण में ही है , कृष्ण से ही है , और कृष्ण से अलग नहीं है |
राधा-कृष्ण प्रेम है !
तो बोलो राधे राधे !
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और अंत में कबीर वाणी :-
पोथी पढ़ – पढ़ जग मुया
पंडित भया न कोई
ढाई अक्षर प्रेम का
पढ़े सो पंडित होय !