दो-चिड़िया
एक जंगल मे एक आम का पेड़ था।बड़ा स्वादिष्ट फल लगते थे उस पे। मगर उस जंगल मे दो चिड़िया भी रहती थी। दोनो एक-दूसरे को पसंद नही करते थे।मगर हो ये गया कि उन दोनो की नजरे उस पेड़ पर आ पड़ी। टहनियां तो उस पेड़ पर बहुत थी, मगर वो रोज एक-दूसरे का शक्ल देखने को राजी नही थे।और ना-ही उस पेड़ को छोड़न को ही वो राजी थे।दोनो हठ पर अड़ गय।
हठ से लातों पे आ-गय।और फिर चोंच से चोंच भिड़ने लगी।ईधर-इसकी एक आँख फूटी तो उधर उसकी दूसरी आँख फूटी।
मगर वो अभी-भी किसी को छोड़ने को तैयार नही थे।और ना-ही पेड़ को इससे ज्यादा कुछ हुआ, बल्कि दो आँखे फूटी एक-दूसरे की।पंखो पर चोट आई और जा के नीचे गिर पड़े।मगर जमीं पे गिरे पेड़ पर नही। अंत मे कुछ और खून बहने के बाद वो ठंडा हुए और चित लेट गय।और बहुत दिनो तक ऐसे ही वो वहाँ दर्द मे पड़े रहे।मौत से लड़ते रहे।मगर उनके पर बेजान थे और रोज एक-दूसरे का शक्ल देखते वही बैठे-बैठे ।जलन अभी-भी थी मगर उनकी खून की गर्मी ठंडी हो गई थी। अब उन्हे पता चल गया था, कि एक टहनी पर नही मगर एक पेड़ पर रहा जा-सकता है। और दुश्मन को देख-देख कर भी जीया जा सकता है। लेकिन क्या फायदा इस समझदारी का, जब जान ही नही रही, बेचारीयो का। और अंत मे वो समझदार बनकर मर गय।
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2…अपनी संस्कृति को बचाना और मातृभाषा को जानना-उन पर गर्व करना जरूरी क्यों है?
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दो-चिड़िया
ज़िन्दगी भर – ज़िन्दगी के लिए !