चापलूसी का घड़ा
एक शक्तिशाली राजा था। उस वक्त उससे लड़ने की क्या कोई और राज्य आँख उठाने तक की कोशिश नही करता था उस पर।
मगर उसका एक बेटा भी था। वो थोड़ा बिगड़ हुआ था। बिगड़ हुआ का मतलब यह नही वो लड़ता था।
मतलब यह कि उसको अपनी चापलूसी सुनना बहुत पसंद था। दरअसल वो राजा का बेटा था ना, तो लोग उसे प्रसन्न रखन की कोशिश करते।
जिससे उन्हे ईनाम मिलता था राजा के बेटे कि ओर से। उसको अपनी तारीफ सुनने की लत लग गई। उसको बिना भनक लगो वो इस आदत का शिकार हो गया।
राजा; अब वृध्द हो चला था।तो वो अपनी राजगद्दी छोड़ देता है।और उसका बेटा उस गद्दी पर आश्रित हो जाता है।
मगर जैसे मक्खी के पास मक्खी आते थे। उसी प्रकार इस चापलूसी सुनना वाले राजा के पास चापलूसी करने वाले लोग आ-गय।
और काम-काजी लोग कण हो गय। मगर इसको इन सब से कोई दिक्कत नही थी।
क्योंकि इसको अपनी चापलूसी के अलावा और कुछ ना तो सुनाई देता था।ना और कुछ दिखाई देता था।
इससे इसके राज्य के लोग दुखी हो गय, राज्य की अर्थव्यव्स्था कम हो गई।
और अब दूसरे राज्य के राजा ने इसकी इस कमजोरी का फायदा उठाने की सोचने लगो।
इसके पिता ने इसको समझाया और मंत्रीय ने भी मगर यह उन सब की अनसुनी कर देता है।
मगर बहुत जल्द ही इसके राज्य पर दूसरा राज्य आक्रमण कर देता है।
यह उस युध्द मे हार ही जाता मगर इसकी बहुत बड़ी संख्या मे सेना ने जैसे-तैसे युध्द जीता।
युध्द जीत तो लिया मगर हालत बहुत खराब हो गई थी।तब जाके इसको अक्ल आता है,
और यह सोचता है कि जिन राज्य ने कभी हमारी तरफ आँख तक ना उठाई थी
उन्होने आज तलवार कैसे उठा लिया। यह उत्तर जानने के लिए यह की विद्वानो से मिलता है।
उसको सलाह मिलती है कि वो अपने आस-पास के लोगो को हटा के कुछ नय लोगो को भर्ती करे।
तो वो कितने लोगो को हटाय। और कैसे इतने सारे को हटाय।वो भी बिना वजह बताय।
तो यहाँ से उसके दिमाग मे एक खिचड़ी पकती है, जो अधिकतर कर्मचारीयो को हजम नही होती।
राजा कुछ आस-पास के मंत्रीय से मिल अपने राज पंडित के साथ एक प्लान बनाता है।
और जहाँ राजा बैठ के मंत्रणा करता था, वही पर बगल मे एक सोने का बहुत आकर्षक मटका रख दिया था।
उस पे लिखा था-चापलूसी का घड़ा।
राजा सुबह-सुबह वहाँ पहुँचता है, तो वह देख कर हैरान हो जाता है।
उस विचित्र से मटके/घड़े को देखकर।अपने प्लान के मुताबिक वो पूछता है कि
यह चापलूसी का घड़ा आखिर यह क्या है?
तो राज पंडित को बुलाया जाता है क्योकि वो घड़ा थोड़ा पौराणिक था।
तो पंडित ने बोला महाराज यह कुबेर के धन कोष का एक बड़ा ही विचित्र घड़ा है-
जो चापलूसो को इनाम के तौर पर धन राशि देता है। वो भी स्वर्ण।
तो राजा बोलता है मै यह सब नही मानता भला ऐसा कैसे हो सकता है?
तो राजा यह जानने के लिए एक दरबारी को बुलाता है।दरबारी राजा के साथ मिला हुआ था,
तो राजा के ईशारे पे वो अपना नाम लिख उस घड़े मे डालता है।
तो फलस्वरूप उसे वहाँ सोना मिलता है। इसे देख सब हैरान हो जाते है।
और रात मे लोग छूप-छूपकर सब अपना नाम डालते है।
सुबह का नजारा बहुत ही अचरज भरा होता है-चापलूसी का घड़ा कागज़ से भरा होता है।
और राजा उन सब को वहाँ से निकाल देता है।और नय कर्मचारी की भर्ती करता है।
मगर सिर्फ चेहरे ही नय होते है; काम वही पुराने करते था। राजा इससे परेशान फिर से वही नाटक करता है,
और फिर नय लोगो कि भर्ती करता है। मगर वो राहत साहब ने कहा है ना;
“कि बस किरदार बदल रहे है, काम वही पुराना चल रहा है।” वही हाल यही था।
इस तरह राजा ने दस-बारह बार करके इतने बार नाटक किया।
मगर फल कुछ नही हुआ। इससे परेशान राजा फिर विद्वानो से मिलता है।
मगर सब का जवाब वही था लोग बदलो।
मगर वो इस उत्तर से परेशान थक-हार के अपने पिता के पास जाता है।
पिता ने प्यार से बोला बेटा, तुमने लोगो को बदला मगर उसको नही जो लोगो को रखता है।
वह जो लोगो को तनख्वाह देता है और वह हो तुम तुमने सब को बदला,
मगर अपने कानो को नही जिसे सिर्फ चापलूसी सुनना पसंद है।
और एक मक्खी के पास मक्खी ही आते है, तितलिया नही।
राजा बात को मानता है। और अपने आप को बदलता है।
और फिर कुछ ही सालो मे उसका यश-धन-वैभव-सब बढ़ जाता है।
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